जब भी कभी मैं उम्मीद को तलाशती
उसके आकार का
अस्तित्व खंगालती
तो पाती निराकार ही उसे
आखि़र उसका राज़ छिपा कहां है
...
उम्मीद के टूटने पर बस
यही देखा है
आहत मन, निरूत्साहित सा होकर
खुद को नाकामयाब पाता
सारा जीवन दर्शन छोटा हो जाता
हम खो बैठते अपना ही अस्तित्व
...
मेरे इन सवालों पर उम्मीद मुस्कराती
झाँकती मेरी आंखों में गहराई से
कहती तुम बस हौसले से मुझे देखो
मैं तुम्हें हर बार
एक नये रंग में दिखाई दूँगी
मैंने कभी हारना सीखा ही नहीं
ना ही घबराना उसने वो सब कुछ पाया है
जिसने मुझे हौसले से अपनाया है
...
मैं भाग्य की लकीरों की तरह
तुम्हें हथेलियों में नहीं मिलूँगी
ना ही तुम पाओगे मुझे
जन्म कुण्डली के किसी चक्र में
मैं तो बस आंखों में मिलती हूँ
हौसले से पनपती हूँ
दिल में घर बना लेती हूँ
और रूह तक उतर जाती हूँ
बिना किसी से कुछ कहे
साकार होने के लिए ... !!!
भावपूर्ण!!
जवाब देंहटाएंमैं भाग्य की लकीरों की तरह
तुम्हें हथेलियों में नहीं मिलूँगी
ना ही तुम पाओगे मुझे
जन्म कुण्डली के किसी चक्र में
मैं तो बस आंखों में मिलती हूँ
सदा बहन
जवाब देंहटाएंना ही तुम पाओगे मुझे
जन्म कुण्डली के किसी चक्र में
सच ही कहा
सादर
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 18/08/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंकहते हैं न कि जब सभी दरवाज़े बंद हो जाते हैं तो कहीं खुलती है एक खिड़की.........
सस्नेह
अनु
बहुत सुन्दर रचना... शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंमैं भाग्य की लकीरों की तरह
जवाब देंहटाएंतुम्हें हथेलियों में नहीं मिलूँगी
ना ही तुम पाओगे मुझे
जन्म कुण्डली के किसी चक्र में
मैं तो बस आंखों में मिलती हूँ
हौसले से पनपती हूँ
दिल में घर बना लेती हूँ
और रूह तक उतर जाती हूँ
बिना किसी से कुछ कहे
साकार होने के लिए ... !!!.... बेहतरीन भाव
उम्मीद के टूटने पर बस
जवाब देंहटाएंयही देखा है
आहत मन, निरूत्साहित सा होकर
खुद को नाकामयाब पाता
सारा जीवन दर्शन छोटा हो जाता
हम खो बैठते अपना ही अस्तित्व
बहुत सुन्दर............सच ही कहा.............
बहुत ही गहन और सुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंशीर्षक ने ही मोह लिया...सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबेहद गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंरूह तक उतरती अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंमैं भाग्य की लकीरों की तरह
जवाब देंहटाएंतुम्हें हथेलियों में नहीं मिलूँगी
ना ही तुम पाओगे मुझे
जन्म कुण्डली के किसी चक्र में
मैं तो बस आंखों में मिलती हूँ
हौसले से पनपती हूँ
...वाह! यह हौसला कायम रहे...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
कहीं गहरे उतरती हुई रचना....
जवाब देंहटाएंसादर।
अंतिम छंदों ने जिस प्रकार भावनाओं के शिखर छुआ है वह सराहनीय है.. आपकी रचनाएं अकारण शब्दों का जंगल नहीं होतीं, बल्कि शब्दों की सरिता की तरह प्रवाहित होती रहती है!!
जवाब देंहटाएंजब हौसला का साथ हो तो हर उम्मीद सफल होने को उतारू हो जाती है।
जवाब देंहटाएंKabhi kabhi hausale past ho jate hain....bada bhayawah samay hota hai wo....
जवाब देंहटाएंमैंने कभी हारना सीखा ही नहीं
जवाब देंहटाएंना ही घबराना उसने वो सब कुछ पाया है
जिसने मुझे हौसले से अपनाया है
...बहुत सुंदर उम्मीद भरा ।
भावनाओं की सराहनीय प्रस्तुति,,,,बेहतरीन शीर्षक ,,,,
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
RECENT POST...: शहीदों की याद में,,
उम्मीद झांकती है आँखों की गहराई में , रौशनी में ...हाथों की लकीरों में उसका पता कहाँ मिलता !
जवाब देंहटाएंमैं तो बस आंखों में मिलती हूँ
जवाब देंहटाएंहौसले से पनपती हूँ
दिल में घर बना लेती हूँ
और रूह तक उतर जाती हूँ
बिना किसी से कुछ कहे
साकार होने के लिए ... !!!
Bikul Sahi..... Sunder Panktiyan
हौसला गजब का है
जवाब देंहटाएंरुह तक उतरने का
पता नहीं चलता इसका
अच्छा है क्योंकी
डरता होगा तब भी कहेगा
मैं भी नहीं डरने का !
मैं भाग्य की लकीरों की तरह
जवाब देंहटाएंतुम्हें हथेलियों में नहीं मिलूँगी
ना ही तुम पाओगे मुझे
जन्म कुण्डली के किसी चक्र में
मैं तो बस आंखों में मिलती हूँ
हौसले से पनपती हूँ
दिल में घर बना लेती हूँ
और रूह तक उतर जाती हूँ
बिना किसी से कुछ कहे
साकार होने के लिए ... !!!
ye lines bauhat pasand aayin...kitni sach hain!!
उम्मीद जगी रहे तो सपनों को साकार होने से कोई नहीं रोक सकता...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावो से भरी रचना..
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट :-)
मैं भाग्य की लकीरों की तरह
जवाब देंहटाएंतुम्हें हथेलियों में नहीं मिलूँगी
ना ही तुम पाओगे मुझे
जन्म कुण्डली के किसी चक्र में
मैं तो बस आंखों में मिलती हूँ
हौसले से पनपती हूँ
दिल में घर बना लेती हूँ
और रूह तक उतर जाती हूँ
बिना किसी से कुछ कहे
साकार होने के लिए ... !!!
ये पंक्तियाँ एक ऊँचे जीवन दर्शन की ओर इंगित करती है जिसे आपकी कविता ने बखूबी समेटा है.
सीमा जी नमस्कार...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग 'सदा' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 18 अगस्त को 'रूह तक उतर जाती हूं...' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhakarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
अन्दर से अभिव्यक्त..
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....
जवाब देंहटाएंउम्मीद का एक नया चेहरा दिखाया है आपने....आभार
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