जिन्दगी की किताब को
जरा आराम से पढ़ो तो इसके
हर पृष्ठ के हर शब्द का भाव तुम्हें
समझ आ जाएगा
मुमकिन है कुछ अंजान शब्द होंगे
जिनके मायनो से तुम अनभिज्ञ होगे
तो क्या हुआ हर कोई होता है
पर सीखने के इस क्रम में यह मत भूलो
जो सीखता है ...समझता है ...उसे
व्याकुल नहीं होना होता
फिर परिस्थितियां अनुकूल हों या प्रतिकूल
क्या फ़र्क पड़ता है
...
माना कि आडम्बर की दुनिया है
तुम आडम्बर में मत पड़ो
तुम्हारा व्यक्तित्व हर बात पर
खरा सोने से दमकता है
तपोगे और निखरोगे स्वीकारते हो
जो इस सत्य को
तो फिर नकार दो हर बात को
अग्नि की दाहकता में तप कर
कुंदन बन जाओगे जिस दिन
सब की आंखे सिकुड़ जाएंगी
तुम अपनी जगमगाहट से
सबकी बोलती बंद कर दोगे
...
यह तुम्हारे आत्ममंथन का समय है
करो .. लेकिन आत्मा को
क्षत-विक्षत मत करो इस क़दर की
वह स्वयं अपने वज़ूद का तिरस्कार करने लगे
इसलिए तो नहीं तुमने
अपनी अभिलाषाओं का हवन किया था
कि कोई लगाकर अपने माथे पर तिलक उसका
क्रांति का बिगुल बजा जाए
और तुम मौन साधे अपनी आत्मा के
हर बिखरे हुए ज़र्रे का हिसाब मांगने लगो खुद से !!!
जरा आराम से पढ़ो तो इसके
हर पृष्ठ के हर शब्द का भाव तुम्हें
समझ आ जाएगा
मुमकिन है कुछ अंजान शब्द होंगे
जिनके मायनो से तुम अनभिज्ञ होगे
तो क्या हुआ हर कोई होता है
पर सीखने के इस क्रम में यह मत भूलो
जो सीखता है ...समझता है ...उसे
व्याकुल नहीं होना होता
फिर परिस्थितियां अनुकूल हों या प्रतिकूल
क्या फ़र्क पड़ता है
...
माना कि आडम्बर की दुनिया है
तुम आडम्बर में मत पड़ो
तुम्हारा व्यक्तित्व हर बात पर
खरा सोने से दमकता है
तपोगे और निखरोगे स्वीकारते हो
जो इस सत्य को
तो फिर नकार दो हर बात को
अग्नि की दाहकता में तप कर
कुंदन बन जाओगे जिस दिन
सब की आंखे सिकुड़ जाएंगी
तुम अपनी जगमगाहट से
सबकी बोलती बंद कर दोगे
...
यह तुम्हारे आत्ममंथन का समय है
करो .. लेकिन आत्मा को
क्षत-विक्षत मत करो इस क़दर की
वह स्वयं अपने वज़ूद का तिरस्कार करने लगे
इसलिए तो नहीं तुमने
अपनी अभिलाषाओं का हवन किया था
कि कोई लगाकर अपने माथे पर तिलक उसका
क्रांति का बिगुल बजा जाए
और तुम मौन साधे अपनी आत्मा के
हर बिखरे हुए ज़र्रे का हिसाब मांगने लगो खुद से !!!
जिन्दगी की किताब को
जवाब देंहटाएंजरा आराम से पढ़ो तो इसके
हर पृष्ठ के हर शब्द का भाव तुम्हें
समझ आ जाएगा
खुबसूरत रचना .
माना कि आडम्बर की दुनिया है
जवाब देंहटाएंतुम आडम्बर में मत पड़ो
तुम्हारा व्यक्तित्व हर बात पर
खरा सोने से दमकता है
सच अपने आप बोल उठता है ...सुन्दर रचना
bahut si husnar rachna sada ji ...............
जवाब देंहटाएंअग्नि की दाहकता में तप कर
जवाब देंहटाएंकुंदन बन जाओगे जिस दिन
सब की आंखे सिकुड़ जाएंगी
तुम अपनी जगमगाहट से
सबकी बोलती बंद कर दो....
बहुत सुन्दर..
सस्नेह
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंरचना के जरिए व्यवहारिक सुझाव
क्या कहने
आत्ममंथन का समय है
जवाब देंहटाएंकरो .. लेकिन आत्मा को
क्षत-विक्षत मत करो इस क़दर की
वह स्वयं अपने वज़ूद का तिरस्कार करने लगे !!
यदि गलतियाँ हुई तो उसे समझ कर दुबारा ना होने का संकल्प भी ज़रूरी है !
पढ़िए तो आराम से, जीवन पुस्तक आज |
जवाब देंहटाएंपृष्ठों की कुल क्लिष्टता, खुलते सारे राज |
खुलते सारे राज, बड़ा आडम्बर भारी |
रख अपने पर नाज, छोड़ के जाग खुमारी |
मंथन कर के आप, नित्य आगे को बढिए |
अपना तप्त-प्रताप, सीढियां खटखट चढिये ||
सीखने की प्रक्रिया में धैर्य ही हमारा संबल होता है...
जवाब देंहटाएंहमें माँजती हैं सदा, स्थितियाँ प्रतिकूल।
जवाब देंहटाएंकदम कदम में सीख है, जीवन है इसकूल॥
सुंदर रचना...
सादर।
इसलिए तो नहीं तुमने
जवाब देंहटाएंअपनी अभिलाषाओं का हवन किया था
कि कोई लगाकर अपने माथे पर तिलक उसका
क्रांति का बिगुल बजा जाए
और तुम मौन साधे अपनी आत्मा के
हर बिखरे हुए ज़र्रे का हिसाब मांगने लगो खुद से !!!
सही चेतावनी देती अद्भुत रचना
सर्वाधिक कठिन प्रश्न तो स्वयं से ही पूछने पड़ते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (04-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
यह तुम्हारे आत्ममंथन का समय है
जवाब देंहटाएंकरो .. लेकिन आत्मा को
क्षत-विक्षत मत करो इस क़दर की
वह स्वयं अपने वज़ूद का तिरस्कार करने लगे
इसलिए तो नहीं तुमने
अपनी अभिलाषाओं का हवन किया था
कि कोई लगाकर अपने माथे पर तिलक उसका
क्रांति का बिगुल बजा जाए
और तुम मौन साधे अपनी आत्मा के
हर बिखरे हुए ज़र्रे का हिसाब मांगने लगो खुद से !!!
धैर्य ज़रूरी है ताकि समिधा आकांक्षाओं की अभिलाषाओं की सार्थक हो सके .ऊर्जा खुद दिशा ले सके .
लाजबाब लिखा है..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंआत्ममंथन तो जरुरी है,
और उससे से भी ज्यादा जरुरी है उससे मिलने वाली सीख को ग्रहण करना !
जिंदगी अनुभवों का खजाना,राह दिखाती रोज
जवाब देंहटाएंमंथन करते रहिये सदा,बढ़ती प्रतिदिन खोज.....
RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,
jindgi ka manthan...........
जवाब देंहटाएंज़र्रे ज़र्रे का हिसाब होता है उसका हर जवाब लाजवाब होता है
जवाब देंहटाएंजिन्दगी की किताब को
जवाब देंहटाएंजरा आराम से पढ़ो तो इसके
हर पृष्ठ के हर शब्द का भाव तुम्हें
समझ आ जाएगा
सच है जीवन को समझने को कुछ ठहराव ...आत्ममंथन तो करना ही होगा
यह तुम्हारे आत्ममंथन का समय है ... मंथन ही रहता है अधिकतर , विष उलीचते उलीचते अमृत मिले तो
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने .................जिन्दगी की किताब को आत्ममंथन से ही समझा जा सकता है
जवाब देंहटाएंbehtareen
जवाब देंहटाएं---शायद आपको पसंद आये---
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अग्नि की दाहकता में तप कर
जवाब देंहटाएंकुंदन बन जाओगे जिस दिन
सब की आंखे सिकुड़ जाएंगी
तुम अपनी जगमगाहट से
सबकी बोलती बंद कर दोगे ...
सच है आत्म-मंथन करना जरूरी है .. खुद से सवाल जरूरी है ... तपना जरूरी है कुंदन बन्ने के लिए ...
आत्ममंथन का समय है
जवाब देंहटाएंकरो .. लेकिन आत्मा को
क्षत-विक्षत मत करो इस क़दर की
वह स्वयं अपने वज़ूद का तिरस्कार करने लगे !!
सीख देती सुन्दर प्रस्तुति
सीमा जी नमस्कार...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग 'सदा' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 7 अगस्त को 'हिसाब मांगने लगो खुद से...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
अंतर्रात्मा अपने बारे में सब जानता है. स्वयं से पूछे जान वाले सवालों को भी और जवाबों को भी. पर कोई है जिसे अंतर्रात्मा को साफ़ और चमकीला रखना होता है. सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंइसलिए तो नहीं तुमने
जवाब देंहटाएंअपनी अभिलाषाओं का हवन किया था
कि कोई लगाकर अपने माथे पर तिलक उसका
क्रांति का बिगुल बजा जाए
और तुम मौन साधे अपनी आत्मा के
हर बिखरे हुए ज़र्रे का हिसाब मांगने लगो खुद से !!!
सशक्त एवं सार्थक रचना...