प्रथम पहर ... जीवन का जन्म
सीखने की ..कहने की ... समझने की
सारी कलाएं सीखने से पहले भी
माँ समझती रही मौन को
मेरी भूख को मेरी प्यास को
बढ़ते कदमों की
लड़खड़ाहट को थामती उंगली
मेरे आधे-अधूरे शब्दों को
अपने अर्थ देती मॉं
बोध कराती रिश्तों का
दिखलाती नित नये रंग
मुझे जीवन में
दूजा प्रहर ... मैं युवा किशोरी
मेरी आंखों में सपने थे
कुछ संस्कारों के
कुछ सामाजिक विचारों के
कुछ जिदें थी कुछ मनमानी
माँ समझाती ...
इसमें क्या है सत्य और मिथ्या क्या
समझना होगा ...
ऐसे में हम हो जाते हैं अभिमानी
स्नेह ... समर्पण .. त्याग भी जानो
अपनी खुशियों के संग औरों का
सुख भी तुम पहचानो ....
आंखों की भाषा ... मौन को सुनना
सिखलाती माँ ने मुझे
एक दिन ... गले से लगाकर
अपने नयनों में आंसू भरकर
विदाई की बेला में ...
पाठ पढ़ाया तीजे प्रहर ...का
बेटी से बहू बनाया
माँ ने इक दूजी माँ से मिलवाया
हर रिश्ते का मान किया
सबके निर्णय का सम्मान किया
मेरी गोद में भी
इक नव जीवन आया
यह जीवन यात्रा ... इसके पड़ाव
कभी इतनी सहज़
कभी विषम और दुर्गम
विश्वास का मंत्र
बचपन से ही मेरे कानों में
पढ़ा था माँ ने
मैं उसी महामंत्र के सहारे
आगे बढ़ रही हूं ..
इस जीवन यात्रा मे
नवजीवन का हाथ थामे हुए .... !!!
सीखने की ..कहने की ... समझने की
सारी कलाएं सीखने से पहले भी
माँ समझती रही मौन को
मेरी भूख को मेरी प्यास को
बढ़ते कदमों की
लड़खड़ाहट को थामती उंगली
मेरे आधे-अधूरे शब्दों को
अपने अर्थ देती मॉं
बोध कराती रिश्तों का
दिखलाती नित नये रंग
मुझे जीवन में
दूजा प्रहर ... मैं युवा किशोरी
मेरी आंखों में सपने थे
कुछ संस्कारों के
कुछ सामाजिक विचारों के
कुछ जिदें थी कुछ मनमानी
माँ समझाती ...
इसमें क्या है सत्य और मिथ्या क्या
समझना होगा ...
ऐसे में हम हो जाते हैं अभिमानी
स्नेह ... समर्पण .. त्याग भी जानो
अपनी खुशियों के संग औरों का
सुख भी तुम पहचानो ....
आंखों की भाषा ... मौन को सुनना
सिखलाती माँ ने मुझे
एक दिन ... गले से लगाकर
अपने नयनों में आंसू भरकर
विदाई की बेला में ...
पाठ पढ़ाया तीजे प्रहर ...का
बेटी से बहू बनाया
माँ ने इक दूजी माँ से मिलवाया
हर रिश्ते का मान किया
सबके निर्णय का सम्मान किया
मेरी गोद में भी
इक नव जीवन आया
यह जीवन यात्रा ... इसके पड़ाव
कभी इतनी सहज़
कभी विषम और दुर्गम
विश्वास का मंत्र
बचपन से ही मेरे कानों में
पढ़ा था माँ ने
मैं उसी महामंत्र के सहारे
आगे बढ़ रही हूं ..
इस जीवन यात्रा मे
नवजीवन का हाथ थामे हुए .... !!!
बहुत सुंदर...............
जवाब देंहटाएंजीवन चक्र यूँ ही चलता रहे ..............
प्यारी रचना.
सस्नेह.
यही मूल मंत्र है .... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति सदा जी ....
जवाब देंहटाएंपहली गुरु है अपनी माता ...
प्रथम ज्ञान शिशु माँ से पता ...
जीवन की निर्मात्री है माँ ....
इन चरणों पर सुमन चढाएं ...
बलि बलि जाएँ ...!!
विश्वास का मंत्र
जवाब देंहटाएंबचपन से ही मेरे कानों में
पढ़ा था माँ ने
मैं उसी महामंत्र के सहारे
आगे बढ़ रही हूं ..
इस जीवन यात्रा मे
नवजीवन का हाथ थामे हुए .... !!!kramwaar satya
Maa sachme aisee hee hoti hai! Aapkee maa to waqayee badee mahan hai!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..!
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDAR ...MAN KOCHHOOTI RACHNA .AABHAR
जवाब देंहटाएंlike this page and wish indian hockey team for London olympic
ये अनवरत चक्र यूँ ही चलता रहे ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या कहने
विश्वास का मंत्र
जवाब देंहटाएंबचपन से ही मेरे कानों में
पढ़ा था माँ ने
मैं उसी महामंत्र के सहारे
आगे बढ़ रही हूं ..
इस जीवन यात्रा मे
नवजीवन का हाथ थामे हुए ....
बहुत बेहतरीन रचना,...सदा जी
शोभा चर्चा-मंच की, बढ़ा रहे हैं आप |
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति अपनी देखिये, करे संग आलाप ||
मंगलवारीय चर्चामंच ||
charchamanch.blogspot.com
विश्वास का मंत्र
जवाब देंहटाएंबचपन से ही मेरे कानों में
पढ़ा था माँ ने
मैं उसी महामंत्र के सहारे
आगे बढ़ रही हूं ..
इस जीवन यात्रा मे
नवजीवन का हाथ थामे हुए .... !!!
.....माँ का दिया मन्त्र बेटी कहाँ भूलती है..बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...
मैं उसी महामंत्र के सहारे
जवाब देंहटाएंआगे बढ़ रही हूं ..
इस जीवन यात्रा मे
नवजीवन का हाथ थामे हुए .... !!!wah.....bahot achche.
यह चक्र जीवन को ऊर्जा दिये हुये है।
जवाब देंहटाएंbahut sundar aur bhavpoorn rachna...
जवाब देंहटाएंमैं उसी महामंत्र के सहारे
जवाब देंहटाएंआगे बढ़ रही हूं ..
जीवन चक्र का यही तो है महामंत्र
बहुत सुन्दर रचना
यह वह मंत्र है जो हर विकट परिस्थिति को असान बना देता है।
जवाब देंहटाएंयह जीवन यात्रा ... इसके पड़ाव
जवाब देंहटाएंकभी इतनी सहज़
कभी विषम और दुर्गम
विश्वास का मंत्र
बचपन से ही मेरे कानों में
पढ़ा था माँ ने
मैं उसी महामंत्र के सहारे
आगे बढ़ रही हूं ..
इस जीवन यात्रा मे
नवजीवन का हाथ थामे हुए
बहुत सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसार्थक और प्रेरक.
शुभकामनाएँ.
बचपन से ही मेरे कानों में
जवाब देंहटाएंपढ़ा था माँ ने
मैं उसी महामंत्र के सहारे
आगे बढ़ रही हूं ..
इस जीवन यात्रा मे
नवजीवन का हाथ थामे हुए .... !!!
Bahut Sunder...... Prernadayi
bilkul sahi ..........
जवाब देंहटाएंआप की जीवन-यात्रा सदा सुखद रहे!
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ!
जीवन यात्रा और जीवन का मूलमंत्र... बहुत ही सुन्दर भावों से सजाया है आपने इस कविता को!!
जवाब देंहटाएंविरासत ऐसे ही आगे बढ़ती है...माँ से बेटी तक...
जवाब देंहटाएंबेहद बेहद खूबसूरत!!!
जवाब देंहटाएंमाँ से माँ तक चलता ही जाता है जीवनचक्र अनवरत !
जवाब देंहटाएंजीवन चक्र यूँ ही चलता रहे ...........बहुत प्यारी और सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंजीवनमंत्र सारस्वरूप प्रस्तुत करती कविता!
जवाब देंहटाएंसादर!
अद्भुत रचना....
जवाब देंहटाएंनारी जीवन के चक्र कों बाखूबी शब्दों में बाँधा है आपने ...
जवाब देंहटाएंयही तो है वो महा मंत्र जो एक बेटी को माँ के और करीब ले आता है। खूबसूरत भावपूर्ण अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंसंबंधों में संस्कारों और मूल्यों की निरंतरता खूब बन पड़ी है.
जवाब देंहटाएंजीवन निर्माण का यह चक्र चलता रहे , यही आनंद है..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब | लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंBAHUT BADIYA HAME U HI SAMJHTE RAHNE K LIYE THANX
जवाब देंहटाएंvery nice dear aap u hi hame riste nibhane ki rah par chalate rahiye
जवाब देंहटाएं