तुमने भागने का मन बना तो लिया है
पर खुद से कब तक भाग सकोगे
बहुत मुश्किल है
मैं कोई और नहीं ... तुम्हारी ही परछाईं हूँ
सुननी ही होगी आवाज ... वो !!!
जो दस्तक दे रही है दिल के दरवाज़े पर
जिसकी वजह से मन और बुद्धि में
हो जाता है झगड़ा
फिर कसैला हो हर मधुर ख्याल
हिला देता है हर बुनियाद को
मन को हमेशा
अपनी 'मैं' का ही ख्याल होता है
और बुद्धि निसहाय हो जाती है
विवेक को जागृत करना
उतना ही आवश्यक है
जितना मन के 'मै' का मान रखना ...
मन पे लग़ाम तो
विवेक ही लगा सकता है
आदत ... याने नशा
फिर वह किसी भी काम का हो
आदत अच्छी है या बुरी
इसके लिए विवेक को
ध्यान से जोड़कर
उसकी सतह तक जाना ही
होता है तभी किसी नतीज़े पर
पहुंचा जा सकता है ...
यक़ीन रखो जिस दिन तुमने
ये कर लिया
तुम मुक्त हो जाओगे
भय से .. अवसाद से...
आंखे डालकर जि़न्दगी से बातें
कर सकोगे और पा सकोगे
कुछ लम्हे सुकून के ...
आदत अच्छी है या बुरी
जवाब देंहटाएंइसके लिए विवेक को
ध्यान से जोड़कर
उसकी सतह तक जाना ही
होता है तभी किसी नतीज़े पर
पहुंचा जा सकता है ...
यक़ीन रखो जिस दिन तुमने
ये कर लिया
तुम मुक्त हो जाओगे ... behad achhe bhaw
बहुत गहरी बात कही सदा जी....
जवाब देंहटाएंविवेक को
ध्यान से जोड़कर
उसकी सतह तक जाना ही
होता है तभी किसी नतीज़े पर
पहुंचा जा सकता है .
बहुत बढ़िया..
सस्नेह
वाह क्या बात है,
जवाब देंहटाएंतुमने भागने का मन बना तो लिया है
पर खुद से कब तक भाग सकोगे
बहुत मुश्किल है
मैं कोई और नहीं ... तुम्हारी ही परछाईं हूँ
सुननी ही होगी आवाज ... वो !!!
बहुत सुंदर
क्या कहने
हमारे अपने भय ही हमे डराते हैं।
जवाब देंहटाएंतुमने भागने का मन बना तो लिया है
जवाब देंहटाएंपर खुद से कब तक भाग सकोगे
बहुत मुश्किल है
मैं कोई और नहीं ... तुम्हारी ही परछाईं हूँ
सुननी ही होगी आवाज ... वो !!!
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
very deep so nice.
जवाब देंहटाएंगहन बहुत सार्थक ...सुंदर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें .
बहुत सुन्दर रचना...उत्तम प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमन को छूती हुई नज़्म....बधाई
जवाब देंहटाएंमन को छूती हुई नज़्म....बधाई
जवाब देंहटाएंहम खुद से कब तक भाग सकते हैं .... ये आवाज़ तो सुनानी ही होगी तभी भाय दूर होगा ...अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंbahut sundar ..aaj kal aapki hi arpita padh rahi hun ...behtreen bhaaw hai har kawita ke
जवाब देंहटाएंमन पे लग़ाम तो
जवाब देंहटाएंविवेक ही लगा सकता है
सुंदर रचना...
सादर।
यक़ीन रखो जिस दिन तुमने
जवाब देंहटाएंये कर लिया
तुम मुक्त हो जाओगे
भय से .. अवसाद से...
आंखे डालकर जि़न्दगी से बातें
कर सकोगे और पा सकोगे
कुछ लम्हे सुकून के ...
Kitna sach kah rahee hain aap!
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
waah! bahut hi umda rachna hai,bdhai aap ko
जवाब देंहटाएंदार्शनिक-से भाव, उत्तम रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
जवाब देंहटाएंचर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्टस पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
उम्दा रचना!!
जवाब देंहटाएंगहन ...मन को छू गयी रचना
जवाब देंहटाएंआवाज़ तो सुननी ही होगी...अच्छी रचना...../
जवाब देंहटाएंbhaut mushkil hai bhagna .....
जवाब देंहटाएंkhubsurat rachna!
वाह !!!!! बेहद खूबसूरत रचना,,बस पढ़ते ही गए जैसे की कोई कुछ बयान कर रहा है और आप अपने आप में नहीं....
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भाव..खूबसूरत नज़्म.. !!
जवाब देंहटाएंसच कहा है ... विवेक से ही मन पे काबू किया जा सकता है ...
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना है ...
हृदय की आवाज को नकार पाना बड़ा कठिन होता है।
जवाब देंहटाएंमन को हमेशा
जवाब देंहटाएंअपनी 'मैं' का ही ख्याल होता है
और बुद्धि निसहाय हो जाती है
विवेक को जागृत करना
उतना ही आवश्यक है
जितना मन के 'मै' का मान रखना ...
मन पे लग़ाम तो
विवेक ही लगा सकता है
....बहुत सारगर्भित प्रस्तुति...सच में विवेक ही मन को काबू में रख सकता है...
यथार्थ को कहती सुंदर भावपूर्ण सार्थक अभिव्यक्ति बहुत खूब ....
जवाब देंहटाएंअपने से बच कर कोई जायेगा भी तो कहाँ .,
जवाब देंहटाएंस्वयं से सामना करने में ही सारे समाधान हैं !
बहुत ही सुन्दर एवं सारगर्भित रचना । मेरे नए पोस्ट "अमृत लाल नागर" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंsarthak prastuti
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक एवं प्रेरक कविता..!!
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 05-04-2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ......सुनो मत छेड़ो सुख तान .
खूबसूरत...
जवाब देंहटाएंविवेक तक की यात्रा झीनी और कठिन है लेकिन संभव और सुहानी है. सुंदर कविता.
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