कुछ अहसासों के बादल
जो तेरी आंखों में थे
वो मेरी आंखों से जाने कब
बरस गये
कुछ लम्हे थे जाने-पहचाने
सोचा था उनको मैं थाम लूंगी
जीवन का सच
कहना इतना आसान तो नहीं होता
हम झूठ को सच मानते हैं
उसमें ही अपनी
खुशियां ढूंढते हैं
हमारी बावरी होती मन:स्थिति
किसी मृगतृष्णा सी प्रतीत होती है
ये मिल जाए तो हम खुश होंगे
उसे पा लेंगे तो शायद
पर खुशी कहां किसी वस्तु में टिकती है
मन का लालच और हमारी
खुशियों को ढूंढने की प्रवृत्ति
जाने क्या-क्या नाच नचाती है
लेकिन जिस दिन
होता है सच का सामना
हम किनारा कर लेते हैं
या किनारे लगा देते हैं उस नाव को
जिस पर हम सवार होते हैं
वजह वही डांवाडोल होता मन
और फिर
इस पार या उस पार की मन:स्थिति
से पार तो पाना ही होता है
कब तक ...
बीच मंझधार में रहा जा सकता है
किसी और के पूछने से पहले
खुद ही मन निर्भीक हो
पूछ बैठेगा ...
क्या कर रहे हो ?
तब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा
और हम खुद ही कतराने लगते हैं अपने आप से
चेहरे की रौनक गायब हो जाती है
आंखों में तिरती उदासी के बीच हम
मज़बूर कर दिये जाते हैं
सच को समझने और जीने के लिए ...
ज़रूरी है एक सामना इसके साथ ...!!!
जो तेरी आंखों में थे
वो मेरी आंखों से जाने कब
बरस गये
कुछ लम्हे थे जाने-पहचाने
सोचा था उनको मैं थाम लूंगी
जीवन का सच
कहना इतना आसान तो नहीं होता
हम झूठ को सच मानते हैं
उसमें ही अपनी
खुशियां ढूंढते हैं
हमारी बावरी होती मन:स्थिति
किसी मृगतृष्णा सी प्रतीत होती है
ये मिल जाए तो हम खुश होंगे
उसे पा लेंगे तो शायद
पर खुशी कहां किसी वस्तु में टिकती है
मन का लालच और हमारी
खुशियों को ढूंढने की प्रवृत्ति
जाने क्या-क्या नाच नचाती है
लेकिन जिस दिन
होता है सच का सामना
हम किनारा कर लेते हैं
या किनारे लगा देते हैं उस नाव को
जिस पर हम सवार होते हैं
वजह वही डांवाडोल होता मन
और फिर
इस पार या उस पार की मन:स्थिति
से पार तो पाना ही होता है
कब तक ...
बीच मंझधार में रहा जा सकता है
किसी और के पूछने से पहले
खुद ही मन निर्भीक हो
पूछ बैठेगा ...
क्या कर रहे हो ?
तब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा
और हम खुद ही कतराने लगते हैं अपने आप से
चेहरे की रौनक गायब हो जाती है
आंखों में तिरती उदासी के बीच हम
मज़बूर कर दिये जाते हैं
सच को समझने और जीने के लिए ...
ज़रूरी है एक सामना इसके साथ ...!!!
हम झूठ को सच मानते हैं
जवाब देंहटाएंउसमें ही अपनी
खुशियां ढूंढते हैं
हमारा बावरी होती मन:स्थिति
किसी मृगतृष्णा सी प्रतीत होती है
बहुत सटीक हैं यह लाइन्स ।
सादर
हम जिंदगी भर म्रगत्रष्णा में भटकते रहते हैं सच में जिंदगी वही है जो सच्चाई के साथ जिए बहुत सुन्दर भावों से संजोई रचना बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव ....कितनी कश्मकश चलती रहती है मन में
जवाब देंहटाएंआपकी हर कविता में बहुत सुंदर भाव रहते हैं... शब्द अपने आप में ही बोलते हैं... और कविता ऐसे में दिल के अन्दर तक उतरती है... और जब कविता दिल के अन्दर तक उतरती है... तभी ही कविता कहलाती है... हमेशा ऐसा ही आप लिखते रहिये....
जवाब देंहटाएंविद लोटस ऑफ़ रिगार्ड्स...
आपकी हर कविता में बहुत सुंदर भाव रहते हैं... शब्द अपने आप में ही बोलते हैं... और कविता ऐसे में दिल के अन्दर तक उतरती है... और जब कविता दिल के अन्दर तक उतरती है... तभी ही कविता कहलाती है... हमेशा ऐसा ही आप लिखते रहिये....
जवाब देंहटाएंविद लोटस ऑफ़ रिगार्ड्स...
आँखें मूँद लेने से झूट सच तो नहीं हो जाता................
जवाब देंहटाएंसामना तो करना ही है सच का....आज नहीं तो कल.........
बहुत सुंदर रचना सदा.
सस्नेह.
अनु
सच अन्ततः उबारता है।
जवाब देंहटाएंहमारा बावरी होती मन:स्थिति
जवाब देंहटाएंकिसी मृगतृष्णा सी प्रतीत होती है ,,, और हम उससे पार नहीं पाते और खुद का शिकार खुद ही करते हैं
सुभानाल्लाह.....कोई जवाब नहीं बहुत ही खुबसूरत लगी पोस्ट.....कितना गहन सत्य है....सत्य से साक्षात्कार कितना मुश्किल होता है.....हैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए।
जवाब देंहटाएंआंखों में तिरती उदासी के बीच हम
जवाब देंहटाएंमज़बूर कर दिये जाते हैं
सच को समझने और जीने के लिए ...
सच कहा...शायद इसी का नाम ज़िन्दगी है!
सच को समझने और जीने के लिए ...
जवाब देंहटाएंज़रूरी है एक सामना इसके साथ ...!!!
सच से सामना के बिना सच सच नहीं रहता ...
सच से मुठभेड जरूरी है। सच की ताक़त तोलनी उचित ही है :)
जवाब देंहटाएंएक उधेड़बुन, एक कशमकश और सच का सामना!! हमेशा की तरह एक सोच को जन्म देती कविता!!
जवाब देंहटाएंसच को समझने और जीने के लिए ...
जवाब देंहटाएंज़रूरी है एक सामना इसके साथ ...!!! सच का सामना करना ही जिन्दगी है....लाजवाब रचना... .
बीच मंझधार में रहा जा सकता है
जवाब देंहटाएंकिसी और के पूछने से पहले
खुद ही मन निर्भीक हो
पूछ बैठेगा ...
क्या कर रहे हो,
बहुत सुंदर रचना सदाजी,...
हम झूठ को सच मानते हैं
जवाब देंहटाएंउसमें ही अपनी
खुशियां ढूंढते हैं
यह सच है। पर हम सच नहीं ढूंढ़ते एक काल्पनिक दुनिया में ही बसे रहना चाहते हैं।
म झूठ को सच मानते हैं
जवाब देंहटाएंउसमें ही अपनी
खुशियां ढूंढते हैं
हमारा बावरी होती मन:स्थिति
किसी मृगतृष्णा सी प्रतीत होती है
Wah.... Sunder Baat Kahi
सच का सामना करना ही जिन्दगी है....लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंज़रूरी है सामने इनके साथ ...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच !
आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/847.html
चर्चा - 847:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
अनुपम भाव लिए सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
वाकई कुछ एक विषय ऐसे हैं जिन पर जितना भी लिखो कम ही लगते हैं,जैसे मन ,यादें प्यार :)कितना कुछ छुपा होता है एक इंसान के अंदर व्यक्त करने के लिए....
जवाब देंहटाएंसच को समझने और जीने के लिए ...
जवाब देंहटाएंज़रूरी है एक सामना इसके साथ ...!!!
....बिलकुल सच...बहुत सुन्दर और सार्थक रचना...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई
झूट को सच मानकर कितनी झूटी जिंदगी जीते है हम ...बहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंबीच मंझधार में रहा जा सकता है
जवाब देंहटाएंकिसी और के पूछने से पहले
खुद ही मन निर्भीक हो
पूछ बैठेगा ...
क्या कर रहे हो ?
वाह! जी वाह! बहुत ख़ूब
कृपया इसे भी देखें-
उल्फ़त का असर देखेंगे!
कुछ अहसासों के बादल
जवाब देंहटाएंजो तेरी आंखों में थे
वो मेरी आंखों से जाने कब
बरस गये
कुछ लम्हे थे जाने-पहचाने
सोचा था उनको मैं थाम लूंगी
जीवन का सच
कहना इतना आसान तो नहीं होता
वाह! जी वाह! बहुत ख़ूब
कृपया इसे भी देखें-
उल्फ़त का असर देखेंगे!
दुनिया जिसे कहते हैं...जादू का खिलौना है...
जवाब देंहटाएंमिल जाए तो मिटटी है...खो जाए तो सोना है....
sach kaa saamnaa aasaan nahee hai,khud ko nirvivaad aur swaachh man se jeenaa padtaa hai,ichhaon kaa tyaag,apmaan sahne kee shakti ko badhaanaa padtaa hai
जवाब देंहटाएंहम अक्सर भुलावे में जीना पसंद करते हैं और जानबूझ कर सच से मुँह मोड़ते हैं। इसी क्शमकश को बखूबी बयां किया है आपने! सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भाव....
जवाब देंहटाएंसच से सामना कहीं भी करना पड़ेगा तो अभी क्यों नहीं. सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ......
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