यूँ ही सोचा एक दिन
ये इच्छाऍं कहां से आती हैं
इनका जन्मदाता कौन है
इस विचार के आते ही
मन ले गया अपनी ज़मीन पर
दिखाया उसने अनन्त इच्छाओं का बाग
जिसमें अनगिनत इच्छाएँ थीं
कोई जन्म ले रही थी
कोई किसी शाख को पकड़कर
लटक सी रही थी
कोई अधूरी सी मैं हैरान हो
मन से कहने लगी
ये सब
मन बोला मैं तो बस इन्हें जन्म देता हूं
इन्हें साकार तो विचार ही करते हैं
कर्म की प्रधानता भी
विचारों से आती है
मैं तो बस समय-समय पर
अनुचित इच्छाओं की
कांट-छांट करता रहता हूं
वर्ना विचार इसे पल्लवित व पोषित
कैसे कर सकेंगे
क्योंकि इन इच्छाओं की संख्या
मेरे हृदय की धड़कन के समान
जन्मती रहती है ...
मैं तो माध्यम हूं इन्हें
विचारों तक पहुंचाने का
विचार ही कर्म बनते हैं
हमारे कर्म ही हमारी प्रेरणा
मन की बातें
इच्छाओं का जन्म
विचारों का कर्म हो जाना
इसतरह मुझे एक सच इच्छाओं का
बतला गया मन ...
अच्छा लिखा है .. ..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.com
विचारों से आती है
जवाब देंहटाएंमैं तो बस समय-समय पर
अनुचित इच्छाओं की
कांट-छांट करता रहता हूं ................
उत्तम रचना...
बधाई.
जिस तरह चिंतन एक विचार देते हैं , उसी तरह इच्छाओं का चक्रव्यूह होता है , एक भंवर ... जिसमें पड़ते ही अभिमन्यु सा हाल होता है
जवाब देंहटाएंइच्छाओं के भीगे चाबुक चुपके चुपके सहता हूँ- ये कहना है गुलज़ार साहब का और आपने बताया कैसे जन्मती हैं इच्छाएं.. पूरी की पूरी कविता एक आध्यात्मिक यात्रा है!! शरीर से मन, मन से विचार, विचार से इच्छाएं और फिर अंतरात्मा की खोज!! बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंutaam
जवाब देंहटाएंबुलबुले के संमान
निरंतर उठती रहती हैं
इच्छाएं
जितना संतुष्ट रहे इन्सान
उतना कम सताती इच्छाएं
वाह बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंइच्छायों का ये माया जाल
बन जाता जीवन में
क्यूँ मकड़ी के जालो जैसा
नशा बन ये छा जाता
ख्याबो में .....
इच्छाओं पर विचार का पहरा ..गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंकर्म ही प्रेरणा बनते अहिं इच्छाओं के पनपने का और उनके पोषण का ... और जैसे कर होते हैं इच्छाएं भी वही रूप ले लेती हैं ...
जवाब देंहटाएंGantantr Diwas kee anek shubh kamnayen!
हटाएंमन की बातें
जवाब देंहटाएंइच्छाओं का जन्म
विचारों का कर्म हो जाना
इसतरह मुझे एक सच इच्छाओं का
बतला गया मन ..…………बेहद गहन और सटीक प्रस्तुति…………इच्छायें ही कर्म की जननी हैं।
speechless........haits off for this.
जवाब देंहटाएंsach kaha ichchaayen to humesha janm leti rahti hain usi se hum karm ke prati jaagruk hote hain.achchi abhivyakti.happy republic day.
जवाब देंहटाएंइच्छायों का ये माया जाल
जवाब देंहटाएंबन जाता जीवन में
क्यूँ मकड़ी के जालो जैसा
नशा बन ये छा जाता
ख्याबो में .....
प्रभावी पंक्तियाँ ..
बहुत ही अच्छी.... जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!
जवाब देंहटाएंwah...bahut sundar
जवाब देंहटाएंइच्छाओं का कोई अंत नहीं...हजारों ख्वाईशें ऐसी के हर ख्वाइश पे दम निकले... सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंनीरज
मन की बातें
जवाब देंहटाएंइच्छाओं का जन्म
विचारों का कर्म हो जाना
इसतरह मुझे एक सच इच्छाओं का
बतला गया मन ...
वाह बहूत ही बढ़िया गहन अभिव्यक्ति सदा जी बहुत खूब लिखा है आपने गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
इच्छाओं का अंत नहीं। किंतु इच्छाओं का सम्मान भी करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंएक चादर सांझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती है।
बहुत ही अच्छी, जबरदस्त अभिवयक्ति वाह!
जवाब देंहटाएंविचारणीय भाव....सुंदर
जवाब देंहटाएंबढिया रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....
जय हिंद...वंदे मातरम्।
इच्छाओं का जन्म विचारों का कर्म हो जाता है।..सही है। इच्छाओं का सम्मान किया जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंkhubsurat bhaw...
जवाब देंहटाएंikchhaon ka jamn... hi to jeene ka bhaw hai...:)
Bahut sundar kavita
जवाब देंहटाएंयथार्थ...
जवाब देंहटाएंइच्छाओं का अंत नहीं उत्साह जगती सुन्दर रचना... गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंमन और इच्छा के बीच का ये संघर्ष बहुत कुछ कहता है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सूक्ष्म भावों से भरी अभिव्यक्ति! बहुत सराहनीय!गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंहम ही स्वीकार या अस्वीकार करते हैं सब..
जवाब देंहटाएंये मन भी न जाने क्या-क्या करते और कराते रहता है..
जवाब देंहटाएंबढ़िया अभिव्यक्ति अच्छी रचना,..
जवाब देंहटाएंNEW POST --26 जनवरी आया है....
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंbahut sunder chintan...
जवाब देंहटाएंआपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 28/1/2012 को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया लिखा है आपने । सुन्दर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी और माँ सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ । मेरे ब्लॉग "मेरी कविता" पर माँ शारदे को समर्पित 100वीं पोस्ट जरुर देखें ।
"हे ज्ञान की देवी शारदे"
कभी तो मृगमरीचिका हैं ये इच्छाएँ तो कभी एक सपना जो इच्छा के रूप में जन्म तो लेता है किंतु फिर विचार और कर्म से होता हुआ अपना रूप अख्तियार कर ही लेता है! अति सुंदर सदा जी !
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