मंगलवार, 24 नवंबर 2009

सवाल मेरा ...?


सवाल पर

सवाल मेरा,

तुम्‍हारा

खामोश रहना,

जानते हो

कितनी उलझने

खड़ी कर देता है

मेरे लिये,

उन खामोशी के

पलों में कितना

बिखर जाती हूं

तुम्‍हारे जवाब देने तक

टूट जाती हूं

इतना कि

फिर एकाकार नहीं हो पाती

निर्विकार होकर

अपने आप से ही

विमुख हो जाती हूं

मैं भी तुम्‍हारी तरह ।


17 टिप्‍पणियां:

  1. किसी की चुप्पी क्या गज़ब ढाती है ....... बहुत लाजवाब लिखा है .........

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  2. तुमने चुप रहकर , सितम और भी ढ़ाया मुझपर

    जवाब देंहटाएं
  3. तुम्‍हारे जवाब देने तक

    टूट जाती हूं

    इतना कि

    फिर एकाकार नहीं हो पाती

    निर्विकार होकर

    अपने आप से ही

    विमुख हो जाती हूं

    मैं भी तुम्‍हारी तरह ।


    bahut sahi.... sach kah rahin hain aap.... kisi ki khaamoshi kai baar andar tak jhakjhor detin hain........

    bahut achchi lagi yeh rachna....

    जवाब देंहटाएं
  4. निर्विकार होकर
    अपने आप से ही
    विमुख हो जाती हूं
    मैं भी तुम्‍हारी तरह ।

    क्‍या सूफि‍याना अंदाज है।

    जवाब देंहटाएं
  5. तुम्‍हारे जवाब देने तक

    टूट जाती हूं

    इतना कि

    फिर एकाकार नहीं हो पाती

    निर्विकार होकर

    अपने आप से ही

    विमुख हो जाती हूं

    मैं भी तुम्‍हारी तरह ।
    बहुत दर्द भरी अभिव्यक्ति है । सुन्दर शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  6. तुम्‍हारे जवाब देने तक

    टूट जाती हूं

    इतना कि

    फिर एकाकार नहीं हो पाती

    निर्विकार होकर

    अपने आप से ही

    विमुख हो जाती हूं

    मैं भी तुम्‍हारी तरह ।

    ००००वाह क्या खूब लिखा है आपने

    जवाब देंहटाएं
  7. चुप्पी की कयामत उफ़!
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह...बहुत खूब!
    सवाल के साथ जवाब भी!
    नहले पे दहला!

    जवाब देंहटाएं
  9. "निर्विकार होकर
    अपने आप से ही
    विमुख हो जाती हूं"

    सुन्दर अभिव्यक्ति!

    जवाब देंहटाएं
  10. तुम्‍हारे जवाब देने तक
    टूट जाती हूं
    इतना कि
    फिर एकाकार नहीं हो पाती
    निर्विकार होकर
    अपने आप से ही
    विमुख हो जाती हूं
    मैं भी तुम्‍हारी तरह ....

    सुंदर भाव .....!!

    वैसे कई बार जुबां नहीं हाव-भाव या आँखें बोलती हैं ...क्या इतना काफी नहीं मन की बात समझने को ..... .....!!

    जवाब देंहटाएं
  11. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 10 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  12. ओह , कभी कभी मौन में। इंसान टूट भी जाता है ।
    मर्मस्पर्शी ।

    जवाब देंहटाएं

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....