अभिमान का दाना,
तुम नहीं खाना,
तुम्हें भी
अभिमान आ जाएगा
सजाना रिश्तों को
अपनेपन से
परोसना
उनकी थाली में
स्नेह का भोजन
जिसे पकाया गया हो
पवित्रता की आंच पर
जिससे
उसमें महक होगी
विश्वास की,
एकता का रस होगा
जो तुम्हारी जिभ्या को
रसास्वादन कराएगा,
तुम्हारी सोच को
संकुचित नहीं होने देगा
एक मजबूत मस्तिष्क
जो लड़ सकेगा
हर चुनौती से,
बचाएगा
तुम्हारे विचारों को
इधर-उधर भटकने से
संजो सकोगे तुम
वो सपने जिन्हें
हकीकत बनने से
कोई रोक नहीं पाएगा ।
जिसे पकाया गया हो
जवाब देंहटाएंपवित्रता की आंच पर
जिससे
उसमें महक होगी
विश्वास की,
\
in panktiyon ne dil chhoo lia.....
behtareen shabdon ke saath ek behtareen kavita.........
Regards.....
अपनेपन से परोसना
जवाब देंहटाएंउनकी थाली में स्नेह का भोजन
जिसे पकाया गया हो
पवित्रता की आंच पर.....
बहुत खूब, उम्दा भाव !!
गहरी भावना लिए बेहद
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना
ख़ूबसूरत रचना है.....गहरी संवेदनाएं लिए,एक सुन्दर सन्देश के साथ
जवाब देंहटाएंअभिमान का दाना,
जवाब देंहटाएंतुम नहीं खाना,
तुम्हें भी
अभिमान आ जाएगा
वाह...वाह....!
सदा जी!
3 बार यह कविता पढ़ चुका हूँ!
इतना ही कहूँगा कि बेहतरीन है।
तुम्हारे विचारों को
जवाब देंहटाएंइधर-उधर भटकने से
संजो सकोगे तुम
वो सपने जिन्हें
हकीकत बनने से
कोई रोक नहीं पाएगा ।
बहुत ही सुन्दर!
बचाएगा
जवाब देंहटाएंतुम्हारे विचारों को
इधर-उधर भटकने से
संजो सकोगे तुम
वो सपने जिन्हें
हकीकत बनने से
कोई रोक नहीं पाएगा ।
बहुत सुन्दर और आत्मविश्वास से भरी रचना
सजाना रिश्तों को
जवाब देंहटाएंअपनेपन से
परोसना
उनकी थाली में
स्नेह का भोजन
जिसे पकाया गया हो
पवित्रता की आंच पर
बहुत ही अछे बात कही है आपने रचना के माध्यम से ........ लाजवाब
सजाना रिश्तों को
जवाब देंहटाएंअपनेपन से
परोसना
उनकी थाली में
स्नेह का भोजन
जिसे पकाया गया हो
पवित्रता की आंच पर
बहुत सुन्दर रचना है बधाई
एकता का रस होगा
जवाब देंहटाएंजो तुम्हारी जिभ्या को
रसास्वादन कराएगा
वाह बहुत खूब लिखा है आपने ! इस भावपूर्ण और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!
rachnaa ke shabd-shabd meiN
जवाब देंहटाएंshaasvat sach ka sandesh chhipaa hai
abhivaadan svikaareiN
बेहद सार्थक रचना.....!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना । आभार
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
सुंदर विचारों को समाहित किया है आपने इस कविता में..
जवाब देंहटाएंtum gr8 ho
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 22 -12 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज... क्या समझे ? नहीं समझे ? बुद्धू कहीं के ...!!
बेहद गहन अर्थ समेटे उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंनयी -पुरानी पोस्ट की हल चल में आपकी रचना पढ़ी..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सदा जी,
बधाई.
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसादर
अभिमान का दाना,
जवाब देंहटाएंतुम नहीं खाना,
बड़ी सुन्दर रचना....
सादर बधाई
ऐसे भोजन के दुर्लभ स्वाद और पोषण की महत्ता समझ पाये तो पूरे समाज का उद्धार हो जाये !
जवाब देंहटाएंजिस अंदाज में अपने कहा मन को भा गया.. कहते हें 'जिसने खाया जैसा अन्न उसका हुआ वैसा ही मन' इसको ही सार्थक कर रही है कविता.
जवाब देंहटाएंkya arth mila hai rachna ko...bahut khoob...
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