नाजुक पंखड़ी तेरी हर एक ठहरी गुलाब,
खिले जब तू लगे सिर्फ मेरा ही मेरा हो ।
हवायें मंद-मंद खुश्बू साथ तेरी लायें जब,
मन में मेरे तेरी खुश्बू का हरदम फेरा हो ।
मैं संभलकर लाख राहों पे चला रहबर तो,
करता क्या जो कांटो पे ही तेरा बसेरा हो ।
तेरी नजाकत से वाकिफ हैं कांटे भी तभी,
चाहत में तेरी चारों ओर इनका ही घेरा हो ।
शबनमी बूंदे जो तुझपे आकर ठहर जाती,
कह रही हो जैसे पहले हक इन पे मेरा हो ।
शबनमी बूंदे जो तुझपे आकर ठहर जाती,
जवाब देंहटाएंकह रही हो जैसे पहले हक इन पे मेरा हो ।
बहुत खूब . बढ़िया लगा
शबनमी बूंदे जो तुझपे आकर ठहर जाती,
जवाब देंहटाएंकह रही हो जैसे पहले हक इन पे मेरा हो ...
गज़ब की पंक्तिया हैं ...... बहुत अच्छा लिखा है ......
बहुत बहुत ही खुब्सूरत पंक्तियाँ है.......शानदार रचना!
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव, शानदार अभिव्यक्ति।
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और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
शबनमी बूंदे जो तुझपे आकर ठहर जाती,
जवाब देंहटाएंकह रही हो जैसे पहले हक इन पे मेरा हो ।
सुन्दर भाव.
नाजुक पंखड़ी तेरी हर एक ठहरी गुलाब,
जवाब देंहटाएंखिले जब तू लगे सिर्फ मेरा ही मेरा हो ।
हवायें मंद-मंद खुश्बू साथ तेरी लायें जब,
मन में मेरे तेरी खुश्बू का हरदम फेरा हो ।
बहुत सुन्दर रचना है।
बधाई!
sundar kavita...
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