कहते हैं वक्त हर घाव भर देता है
पर मेरे घाव आज भी
उतनी ही टीस देते हैं
संवेदनाओं के मरहम
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आंखे नहीं देखना चाहती
वह दृश्य
जब इन सफेदपोशो ने
चढ़ाये थे इनपर हार फूलों के
इन्हें शहीद कहकर
जाने कितने घोषणाओं से
बटोरी थी वाहवाही
कहने की बजाय ये
कुछ करके दिखाते
जिससे कम होता
आतंक का साया
जिसके भय से हम
आज भी मुक्त नहीं हुये हैं ।