शनिवार, 2 जनवरी 2010

पहला दिन .....






सूरज को सोने दो,

उसको गढ़ना है एक दिन नया,

हौले से कहकर चांद ने

सितारों को जगाया

चांदनी निखर निखर उठी

बदलियों में छिपा

चांद जब निकलकर आया

कल नये साल का

पहला दिन निकलना था

नववर्ष की बधाई देने वालों का

शुक्रिया अदा भी तो करना था ......

‘‘ नववर्ष की शुभकामनायें ’’



मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

आगमन नये साल का ....


पल-पल वक्‍त के साथ कदम मिला के चल,

ठहरता नहीं यहां किसी के लिये कोई भी पल ।

बीते वक्‍त की बातों से सीख लेना सदा ही,

जाने वाला लम्‍हा लौटेगा नहीं, वो होगा कल ।

नया पल, नया दिन लेकर आ रहा है ये साल,

नया, मुस्‍करा के जरा इसका स्‍वागत करें चल ।

भूल के गिला-शिकवा दोस्‍तों से मिल के बांटो,

खुशी, मुबारक हो साल नया दो दुआ इस पल ।

आएंगी बहारें खुद चमन में मुस्‍कराते हुये मिलोगे,

महकेगा आंगन फूलों की खुश्‍बू से तेरा हर पल ।

वादा करें तो तोड़े नहीं, अपनों को साथ लें हम,

उम्‍मीद का दामन कभी छूटे न किसी भी पल ।

आगमन नये साल का, विदा करना हर साल एक,

नये साल को, फिर सजाना आने वाला नया कल !

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

शब्‍द और पंक्तियां जो ....




कागज उजला है फिर भी निखरा नहीं है वह,

कलम उदास पड़ी है कागज के एक कोने में,

उसमें निखार आएगा जब सार्थक अक्षर उसपे,

कलम उतारेगी अपनी नोक से हर एक कोने में ।

किसी का प्रेम, किसी की खुशी, किसी का गम,

बांटती कलम, कभी साझा करती दर्द एक कोने में ।

इसे बहुत ही भाते अक्षर, शब्‍द और पंक्तियां जो,

लिखकर रच देते इतिहास ये रहता सबको संजोने में ।

आड़ी-तिरछी लकीरें जब बच्‍चे खींचकर खुश होते,

इस पर तो यह भी मुस्‍काता संग उनके खुश होने में

सोमवार, 14 दिसंबर 2009

कोई लहर ...


किनारा आज इतना सूना है

लगता है

कोई लहर आज

इस तरफ नहीं आई

इसे भी आदत हो गई है

लहरों की

सूखापन रेत का

इसे सालता रहता है

अठखेलियां लहरों की

जो चुपके से आ के

छू जाती हैं

इसका एक एक कण

भीग जाता है इसका अन्‍तर्मन ।

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

खामोशियां ...


खामोशियां

गहरी होती गई जितनी

वह तन्‍हाई में

सिमटती गई उतनी

ख्‍यालों को बुनती कभी

पर वह उलझ जाते

यूं एक दूसरे में

वह सुलझाये बिना

फिर नये सिरे से

बुनना चालू कर देती

कभी बुनती वह तुझसे मिलना

फिर तेरा बिछड़ना

कभी जिनमें होता तेरा प्‍यार,

या होती बिन बात की तकरार

वादे जन्‍मों जनम साथ निभाने के

या फिर

दर्द जुदाई का देकर

बिन बताये चले जाना

उसे हैरानी होती

आपने आप पर

उसका हर सिरा तुझसे शुरू होकर

तुझपे ही खत्‍म होता

आज भी ।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....