शनिवार, 19 दिसंबर 2009

शब्‍द और पंक्तियां जो ....




कागज उजला है फिर भी निखरा नहीं है वह,

कलम उदास पड़ी है कागज के एक कोने में,

उसमें निखार आएगा जब सार्थक अक्षर उसपे,

कलम उतारेगी अपनी नोक से हर एक कोने में ।

किसी का प्रेम, किसी की खुशी, किसी का गम,

बांटती कलम, कभी साझा करती दर्द एक कोने में ।

इसे बहुत ही भाते अक्षर, शब्‍द और पंक्तियां जो,

लिखकर रच देते इतिहास ये रहता सबको संजोने में ।

आड़ी-तिरछी लकीरें जब बच्‍चे खींचकर खुश होते,

इस पर तो यह भी मुस्‍काता संग उनके खुश होने में

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब । लाजवाब रही । बधाई

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  2. कलम उदास पड़ी है कागज के एक कोने में,


    उसमें निखार कलम उदास पड़ी है कागज के एक कोने में,

    उसमें निखार आएगा जब सार्थक अक्षर उसपे,

    जब सार्थक अक्षर उसपे,



    बहुत सुंदर पंक्तियाँ....

    खूबसूरत शब्दों के साथ एक खूबसूरत रचना....

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  3. बहुत खूब , मैं इसे इस तरह व्यक्त करूंगा कि;
    कागज़ की शुनसान वादियों में
    तब बहार आयेगी,
    जब एक बेबश कलम उसपर
    अपने आंसू बहायेगी !

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  4. बहुत अच्छी रचना
    बहुत -२ बधाइयाँ

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  5. शब्द-शब्द में एक एहसास है,जीवंत होने का गहरा भाव है

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  6. कागज उदास पड़ा कोने में ...उदासी में खिंची लकीरें ही तो रचनाये बन गयी ...बहुत सुन्दर रचना ...!!

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  7. आड़ी-तिरछी लकीरें जब बच्‍चे खींचकर खुश होते,
    इस पर तो यह भी मुस्‍काता संग उनके खुश होने में

    कल्पना हकीकत बयान करती है!

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  8. इसे बहुत ही भाते अक्षर, शब्‍द और पंक्तियां जो,

    लिखकर रच देते इतिहास ये रहता सबको संजोने में ।

    बहुत खूब.....मन के भावों को कागज़ समेट लेता है...

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  9. कलम उदास पड़ी है कागज के एक कोने में,
    कलम को उदास न होने दें

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  10. कम शब्दों मे बहुत बडी बात कही आपने बधाई

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  11. शाश्वत सत्य और सुन्दर... बिलकुल आप

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  12. शब्दों के आकार लेने से ही तो काग़ज़ में जीवन आता है .......... बहुत अच्छे ज़ज्बात उतारे हैं आपने ..........

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  13. बहुत बढ़िया लिखा है आपने शुक्रिया

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  14. इसे कविता में नया प्रयोग कहूँ तो अतिशयोक्ति न होगी। व्यर्थ की बातें कह कर आलोचना कर सकते हैं लोग... लेकिन यह सही न होगा.
    क्योंकि कविता में हमें चाहिए क्या ? अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति न! फिर इन दो पंक्तियों में जो भाव मुखर हो सामने आते हैं वह किसी भी सशक्त भाषा शैली में लिखे गए काव्य से कमतर नहीं हैंः-
    आड़ी तिरछी लकीरें जब बच्चे खींच कर खुश होते
    इस पर तो यह भी मुस्काता संग इनके खुश होने में।
    --कितनी मासूम भावनाओं का इजहार कर रही हैं ये पंक्तियाँ !
    -बधाई।
    यूँ ही लिखती रहें इसे ही कविता कहते हैं।

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  15. कागज उदास पड़ा कोने में ...उदासी में खिंची लकीरें ही तो रचनाये बन गयी ...बहुत सुन्दर रचना ...!

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  16. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।....

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  17. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....