बुधवार, 15 अक्टूबर 2014

तो कभी चाहत में !!!!!


प्रेम को जब भी देखती हूँ मैं
अपेक्षाओं की आँखों में
रंग सारे बारी-बारी
बिखर जाते हैं
कभी प्रेम माँगता बदले में प्रेम
तो कभी चाहत में बलिदान माँगता
मैं हैरानी के सोपानों को 
पार करते हुए
इसकी हर ऊँचाई का
क़द मापती
पर कहाँ संभव था
प्रेम का आँकलन !!
...
जब याचना से परे
प्रेम दाता बना,
टूटा, बिखरा
फिर भी मुस्कराया
खुद हँसा
लम्हों को जीना सिखाया
सोचती हूँ तो
होता है एहसास
बेमक़सद कहाँ रब ने
दिया था ये रूहानी जज्बा
सौग़ात में !!!

...

17 टिप्‍पणियां:

  1. सच इस रूहानी जज़्बे अनगिनत मक़सद हैं, पावन मक़सद

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  2. सुंदर प्रस्तुति...
    दिनांक 16/10/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
    हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
    हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
    सादर...
    कुलदीप ठाकुर

    जवाब देंहटाएं
  3. jab yachana se pare prem dataa banaa...tutaa bikhara fir bhi muskurayaa..sayd yhi prem h...sundar kavita

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  4. प्रेम के स्वरूप का सुंदर वर्णन....

    जवाब देंहटाएं
  5. खुद हँसा
    लम्हों को जीना सिखाया
    वाह....
    आज आपकी रचना दिखी
    मानो ईद का चाँद दिखा
    दीदी
    सादर प्रणाम...

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रेम अपने आस पास ही घुमाता रहता है हर किसी को धुरी बन कर ...
    गहरे एहसास ...

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर प्रस्तुतिकरण ..... सच ही प्रेम का आकलन कहां हो सकता है ....

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  8. प्रेम तो यही है...निश्छल.. गंगा..की तरह...अविरल....

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  9. अनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...

    नयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं

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  10. Behad khubsurati se bayan kiya aapne prem kaa sunder ahsaas ...umda prastuti !!

    जवाब देंहटाएं
  11. अनुपम प्रस्तुति....आपको और समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं

    जवाब देंहटाएं
  12. अहसासों से भरी सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  13. प्रेम का आंकलन हो भी नहीं सकता । खूबसूरती से प्रेम की व्याख्या की है ।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....