गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

कोरे पन्‍नों पर !!!!!!!!!!!


मन में विचारों की आँधी चली,
लेखक का जीवन खंगाला गया
धर्म की पड़ताल हुई
गोत्र पर भी चर्चा हुई
तो पाया बस इतना ही कि
सारे लेखकों का
गोत्र एक ही होता है
धर्म उनका सदा लेखन होता है  !!
.....
मित्रता उसकी कलम से होती है
जो अपनी नोक से
कभी वार करती है तो
कभी बस फैसला आर-पार करती है
हर युग में लेखक
अपने धर्म का बड़ी निष्‍ठा से
पालन करता रहा
सच को सच, झूठ को झूठ, लिखता रहा
जाने कितनों का मार्गदर्शक बन
मन का मन से वो
संवाद करता रहा !!
.....
कोरे पन्‍नों पर होती कभी
अंतस की पीड़ा
कभी जीवन की छटपटाहट तो
कभी बस वो हो जाता साधक
जागता रातों को
शब्‍दों का आवाह्न करता
पर धर्म से अपने कभी न डिगता
किसी पात्र की रचना करता है जब कोई लेखक
बिल्‍कुल उस जैसा हो जाता है
ना नर होता है ना नारी
वो तो होता है बस लेखक
जो विचारों की अग्नि में देता है आहुति
अपने दायित्‍वों की
लेखनी को अपनी पावन करता है
जब भी किसी की पीड़ा को

शब्‍दों से अपने वो जीवनदान देता है !!!

28 टिप्‍पणियां:

  1. शब्‍दों से अपने वो जीवनदान देता है !!!
    बहुत सुन्दर .....

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  2. पात्रों की त्वचा में घुसे बिना लेखन वास्तविक नहीं हो पाता और इस तरह अपने सभी पात्रों को जीता हैं , उनके दुःख का विष पीकर अमृत की संजीवनी देता है!
    सार्थक विश्लेषण !

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  3. सारे लेखकों का
    गोत्र एक ही होता है
    धर्म उनका सदा लेखन होता है !!
    सही शब्दों में लेखक परिभाषित हुआ है .....बहुत सुन्दर .....!

    जवाब देंहटाएं
  4. .... जब भी किसी की पीड़ा को
    शब्‍दों से अपने वो जीवनदान देता है
    सार्थक विश्लेषण...

    जवाब देंहटाएं
  5. लेखन और लेखक समाज के सुख-दुःख को शब्द देता है..पात्रों के माध्यम से कभी आईना दिखाता है कभी राह दिखाता है..

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  6. सारे लेखकों का
    गोत्र एक ही होता है
    धर्म उनका सदा लेखन होता है !

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...!

    RECENT POST - आँसुओं की कीमत.

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  7. एक लेखक को वैसा ही होना चाहिए जैसा आपने लिखा है... लेकिन एक लेखक वैसा ही होता है, यह एक बहस का मुद्दा है. आज कलम बिक चुकी है और लोग दरबारी हो गए हैं. तभी तो पुराने साहित्य के युग से हम अनेकों लेखकों का नाम आज भी गिनवा सकते हैं, लेकिन आज बहुत सोचना पड़ता है. मीडिया ने सब चौपट कर रखा है!!
    अच्छी रचना है!

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  8. क्या बात .......
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं
  9. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, गूगल और 'निराला' - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  10. बिलकुल सही....
    बहुत सुन्दर विचार.

    सस्नेह
    अनु

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  11. कोरे पन्‍नों पर होती कभी
    अंतस की पीड़ा
    कभी जीवन की छटपटाहट तो
    कभी बस वो हो जाता साधक
    जागता रातों को
    शब्‍दों का आवाह्न करता
    bahut khoob
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  12. लेखन-धर्मम शरणम् गच्छामि..

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  13. दूसरों के सुख-दुःख को जीता है लेखक...

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  14. बहुत सटीक लिखा आपने सारे लेखकों का एक ही गोत्र

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  15. सच है सब लेखक एक ही गोत्र के होते है ,सबका धर्म एक ही होता है ,.यहाँ ना कोई नारी है ना नर !!!
    new postकिस्मत कहे या ........
    New post: शिशु

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  16. 'सारे लेखकों का
    गोत्र एक ही होता है
    धर्म उनका सदा लेखन होता है !!'
    - अनुभूति और लेखन के स्तर पर कोई अंतर नहीं,जो अंतर है वह अनुभवों का है . फिर भी तो नारी-लेखन ,पुरुषलेखन के अलग अलग खाँचे कर दिये जाते हैं !

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  17. लेखक कैसा होना चाहिए इसे लेखक से बेहतर कौन जान सकता है .... धर्म गोत्र सब एक फिर भी लेखन से गद्दारी कर जाते हैं .... या फिर लिंग भेद से लेखन को नापा जाता है .

    जवाब देंहटाएं
  18. लेखक कैसे होने चाहिए इसका सार्थक विश्लेषण किया है ... लेखक का धर्म गोत्र एक होते हुए भी लिंग भेद कर लेखन को नापा जाता है .

    जवाब देंहटाएं
  19. पहली टिप्पणी प्रकाशित नहीं हुई थी इस लिए दुबारा किया

    जवाब देंहटाएं
  20. लेखक का धर्म लेखन है फिर भी भेद क्यों .... पर क्या आज ये लेखन बिका हुआ नहीं है ...

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  21. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

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  22. लेखकीय शब्दचित्र पर बेहतरीन विचार कविता।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....