शनिवार, 6 अप्रैल 2013

फिर से पल्लिवत होने को!!!!

मन के आँगन में
स्‍नेह का बीज बचपन से ही
बो दिया गया था जो वक्‍त के साथ
पल्लिवत होता रहा जिस पर
सम्‍मान का जल सिचित करते-करते
स्‍वाभिमान की डालियों ने
अपना लचीलापन नहीं खोया
जब भी आवश्‍यकता हुई
वो झुकती रह‍ीं
फिर चाहे उन्‍हें झुकाने वाला
कोई बड़ा होता या बच्‍चा
वो सहर्ष तैयार रहतीं
तपती दोपहर में वो छाया बन
शीतलता देती
....
जोर की आँधियों में
टूटकर गिरते वक्‍त भी
कोई आहत न हो
किसी को चोट न पहुँचे
खुद के जख्‍मों से बेपरवाह
रहते हुए भी वो जिंदगी को जीते-जीते
सूखकर लकड़ी हो जाती
तो जलाई जाती
सुलगती, जलती फिर कोयला होती
यूँ ही फिर वो राख हो,
इक दिन फिर मिल जाती माटी में
किसी बीज के अंकुरित होने का
करती इंतजार
फिर से पल्लिवत होने को!!!!

35 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन में शांतिपूर्ण ढंग से लक्ष्य के प्रति ....कर्तव्य के प्रति सहज और सजग रहना ...
    वाह बहुत सुन्दर रचना सदा जी ...

    जवाब देंहटाएं
  2. दीदी
    सदैव जागृत रहने की प्रेरणा
    मिलती है आप को पढ़कर
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. जागृत रहने की प्रेरणा का संदेश देती बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. जहां स्नेह के बीज हों वो हर हाल में पल्लवित होने की ख़्वाहिश रखते हैं .... बहुत खूबसूरत भावों को लिए सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. स्‍वाभिमान की डालियों ने
    अपना लचीलापन नहीं खोया.....
    बहुत सुंदर !
    शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  6. यही तो आस है जीवन की...
    सुन्दर भावाव्यक्ति...

    सस्नेह
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  7. कुछ जीवन केवल सेवा करने हेतु ही होते हैं...जैसे यह प्राणदायी पेड़ ...फिर भी इंसान इनका मूल्य नहीं समझ पाता .....

    जवाब देंहटाएं
  8. वृक्ष जैसा जीवन जीते लोग भी ऐसे ही होते हैं !

    जवाब देंहटाएं
  9. जीवन का यथार्थ बयाँ कर दिया

    जवाब देंहटाएं
  10. बेहतरीन और लाजवाब.........हैट्स ऑफ इन सुन्दर पंक्तियों के लिए ।

    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आएं ।

    जवाब देंहटाएं
  11. भावभीनी रचना...बोध कराती !

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुन्दर लिखा है आपने. बचपन में इस तरह के बीज बो दिए जाएँ तो उस पेड़ की छाया ताउम्र मिलती रहती है.

    जवाब देंहटाएं
  13. स्नेह के बीज हों वो वक्‍त के साथ
    पल्लिवत होते ही हैं !बहुत ही सुन्दर !!
    शुभकामनायें !!

    जवाब देंहटाएं
  14. जीवन्तता है आपकी रचना में ..........बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  15. यह चक्र इसी तरह चलता रहता है.

    सुंदर कविता.

    जवाब देंहटाएं
  16. एक आशा है तो जीवन भी बना रहता है ...बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  17. सुन्दर भाव लिए ... नेह का अगार लुटाना ही जावन लक्ष्य बनाती रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  18. अति सुन्दर प्रवाहमयी रचना..

    जवाब देंहटाएं
  19. जोर की आँधियों में
    टूटकर गिरते वक्‍त भी
    कोई आहत न हो
    किसी को चोट न पहुँचे
    खुद के जख्‍मों से बेपरवाह
    रहते हुए भी वो जिंदगी को जीते-जीते
    सूखकर लकड़ी हो जाती
    तो जलाई जाती-------
    अदभुत निःशब्द
    बहुत सुंदर
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  20. जोर की आँधियों में
    टूटकर गिरते वक्‍त भी
    कोई आहत न हो
    किसी को चोट न पहुँचे
    खुद के जख्‍मों से बेपरवाह
    रहते हुए भी वो जिंदगी को जीते-जीते
    सूखकर लकड़ी हो जाती
    तो जलाई जाती
    सुलगती, जलती फिर कोयला होती
    यूँ ही फिर वो राख हो,
    इक दिन फिर मिल जाती माटी में
    किसी बीज के अंकुरित होने का
    करती इंतजार
    फिर से पल्लिवत होने को!!!!

    ज़िन्दगी के खुबसूरत पहलू को उजागर करती सुन्दर भाव भरी रचना ......

    जवाब देंहटाएं
  21. जीवन की सरल अपेक्षाओं को बहुत सुन्दर चित्रित किया है।

    जवाब देंहटाएं

ब्लॉग आर्काइव

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....