शनिवार, 7 जुलाई 2012

खामोशी को शब्‍द मिल जाएं .... !!!
















कुछ किवाड़ बंद हैं
सालों साल बीते नहीं बजी सांकल
चौखट ने नहीं सुनी उसकी खनखनाहट
ये कमरा जिसपे पड़ी कुर्सियों पे
बस धूल पसर जाती खामोशी की
कोने जालों से हैं भर जाते
व्‍यस्‍त मकड़ी हर दिन पूरी तन्‍मयता से
नया घर बनाती उतनी तल्‍लीनता से
जितना पहले वाला बनाया था
बहुत काम है उसके लिए तो
पूरा कमरा उसके आधिपत्‍य में जो है
....
कमरे में नमी सी है
इन दीवारों की सिसकियां शायद सुनी हों किसी ने
आहटों पर कान लगाये सन्‍नाटा भी थक चला है
अब वह चाहता है कोई आये
और भंग कर दे उसकी नीरवता को
इन दबी सिसकियों में
वह परत दर परत छिपी नमीं को आखिर 
कब तक ढहने से रोक पाएगा
....
जाने कितनी आवाजें गुम हैं
तुम्‍हें पुकारकर
आओ आजाद कर दो उन आवाजों को
तुम्‍हारा नाम हो हर तरफ़
तुम ही रहो हर तरफ़  बस तुम्‍हारी ही मुस्‍कान हो
जब बजे सांकल ...
तुम्‍हारी पायल के स्‍वर साथ देते हुए कह उठें
लो मैं आ गई ....
खामोशी को शब्‍द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!
...





31 टिप्‍पणियां:

  1. ओह बहुत सुंदर


    खामोशी को शब्‍द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!

    बिल्कुल

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  2. कमरे की नमी मन के ही भावों का विस्तार है। अब तो पहले इन भवनाओं को कोई समझे फिर सब ठीक हो।

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  3. खामोशी को शब्‍द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!बहुत सुन्दर भाव संजोए है सदाजी..सुन्दर प्रस्तुति..

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  4. बहुत खूब ... आ जाओ की इस खामोशी कों जुबां मिल जाए ...
    बहुत जरूरी है आवाज़ मिलना ...

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  5. जब बजे सांकल ...
    तुम्‍हारी पायल के स्‍वर साथ देते हुए कह उठें
    लो मैं आ गई ....
    खामोशी को शब्‍द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!
    ...

    न जाने मन के भाव कहाँ और कैसे दस्तक देते हैं .... सुंदर प्रस्तुति

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  6. खामोशी को शब्‍द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!

    अत्यंत भावपूर्ण रचना.....
    सदा जी, आपने स्वयं बड़ी सुन्दरता से खामोशी को शब्‍द दे दिए....

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  7. सुन्दर...

    बहुत सुन्दर....
    सस्नेह

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  8. ख़ामोशी को ही शब्द देती आपकी रचना...

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  9. खामोशी को शब्‍द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... आह! क्या ख्वाहिश है ………बहुत सुन्दर भाव संयोजन्।

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  10. ....
    कमरे में नमी सी है
    इन दीवारों की सिसकियां शायद सुनी हों किसी ने
    आहटों पर कान लगाये सन्‍नाटा भी थक चला है
    अब वह चाहता है कोई आये
    और भंग कर दे उसकी नीरवता को
    इन दबी सिसकियों में
    वह परत दर परत छिपी नमीं को आखिर
    कब तक ढहने से रोक पाएगा
    .... वाह

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  11. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।

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  12. अतीत को पुकारती ....सुहानी यादेँ !

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  13. खामोशी अपना संवाद कह जाती है..अपनी ही भाषा में..

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  14. कमरे में नमी सी है
    इन दीवारों की सिसकियां शायद सुनी हों किसी ने
    आहटों पर कान लगाये सन्‍नाटा भी थक चला है
    अब वह चाहता है कोई आये
    और भंग कर दे उसकी नीरवता को
    इन दबी सिसकियों में
    वह परत दर परत छिपी नमीं को आखिर
    कब तक ढहने से रोक पाएगा,,,,,,,

    वाह ,,,, भावो की लाजबाब अभिव्यक्ति,,,,

    RECENT POST...: दोहे,,,,

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  15. ख़ामोशी भी कभी कभी बोल उठती है ..बहुत ही प्यारी रचना ..

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  16. सन्नाटे को चीरते शब्दों की गूँज बहुत गहरी है.

    सुंदर संवेदनशील कविता.

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  17. "खामोशी को शब्‍द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!"
    यह खामोशी से झूझ रहे अंतर्मन की गहरी चाह है. जीवित द्वारा जीवन की इच्छा है. सुंदर कविता.

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  18. नीरवता भंग करने को शब्दों की मनुहार ....
    सुन्दर रचना

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  19. यही तो विडम्बना है कि खामोशीयों को ही तो शब्द नहीं मिल पाते ....बहुत बढ़िया गहन भावभिव्यक्ति....

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  20. जब बजे सांकल ...
    तुम्‍हारी पायल के स्‍वर साथ देते हुए कह उठें
    लो मैं आ गई ....
    खामोशी को शब्‍द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए

    यही तो नियति है .ख़ामोशी को शब्द कहाँ मिल पाता है .

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  21. तुम ही रहो हर तरफ़ बस तुम्‍हारी ही मुस्‍कान हो
    जब बजे सांकल ...
    वाह

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  22. khaamoshee ko swar mil jaaye,
    to dil ko sukoon man ko chain mil jaayegaa

    sundar rachnaa

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  23. जज्बातों को शानदार ढंग से पिरोया है आपने

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  24. मकड़ी ने नया घर बना लिया न ....?
    तो अब आप भी सांकल बजने का इंतजार कीजिये ....::))

    बहुत सुंदर रचना .....!!

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....