शनिवार, 31 अक्टूबर 2009

टूटना शुभ होता है कांच का ....

हर सवाल का जवाब ढूंढना या देना जाने क्‍यों,

कभी-कभी ऐन वक्‍त पर मुश्किल हो जाता है ।

गिरकर उठना फिर संभल जाना संभव होता है,

नजरों में गिरकर उठ पाना मुश्किल हो जाता है ।

लड़ लेता है इंसान हर लड़ाई गैरों से हर तरह,

अपनों से लड़कर जीतना मुश्किल हो जाता है ।

टूटना शुभ होता है कांच का कहते हैं बला टली,

टुकड़ा चुभ जाए कोई जब मुश्किल हो जाता है ।

कोई हमसफर हो साथ तो रास्‍ता कट जाता है,

जाने कब, तन्‍हा सफर सदा मुश्किल हो जाता है ।

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2009

रिश्‍तों की अग्नि में ...

मैं लकड़ी होता

और

कोई मुझे जलाता,

तो जलकर

मैं इक आग हो जाता,

डाल देता

कोई उन जलते हुये

अंगारों पर,

कुछ बूंदे पानी की

तो कोयला हो जाता,

कोयले को जलाता

फिर कोई

एक बार तो,

इस बार मैं जलकर

राख हो जाता ।

लेकिन

इंसान हूं

रिश्‍तों की अग्नि में

जाने कितनी बार

जला हूं मैं

बुझा हूं मैं

भीगा भी हूं मैं

लेकिन जलकर

अभी राख नहीं हुआ

कि मिल सकूं माटी

में बनके माटी ।

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009

रूह को सुकूं दे जाए ....

(1)

भरम आंखों का

रहने दो आंखो में

छिप जाये जहां

कोई आंसू की बूंद

तेरे सजल नयनों में

इतना दर्द हो

तेरे बैनों में

चीत्‍कार करता

तेरा हृदय

दर्द से तड़पती

रूह को सुकूं दे जाए ।

(2)

मन को मेरे

अहसास तो था

कि तू मेरा नहीं है,

भरोसे को अपने

मैने

मन से ऊपर कर दिया

और

कहा हो सकता है

यह मेरा भरम हो

पर बेवफा

तूने उस भरम को भी

मेरा रहने न दिया

तोड़ दिया

जज्‍बातों को ।

शनिवार, 24 अक्टूबर 2009

रिश्‍तों की उलझन ....

हर रिस्‍ता

जाने कितनी बार

मरता है

जाने कितनी बार

जन्‍म लेता है

कहीं गुबार उठता

मन में तो

उसकी आंख से

बहते हैं

जाने कितने आंसू

जिन्‍हें वह पोंछ देती है

आंखो की लालिमा

देती है गवाही

कितना बरसी हैं वह

पलकों का भारीपन

बतलाता है पीड़ा मन की

होठों का सूखापन

खामोश तड़प को बयां करता

किसी से

कह न पाने की पीड़ा

शायद जीवित रह जाये

यह रिस्‍ता

टूटने ना पाये

टूट गया तो

इसकी गिरह को

वह खोल नहीं पाएगी

कहना चाहकर भी

बहुत कुछ

बोल नहीं पाएगी ।

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009

पलकें झुक गईं ....

धड़कनों से पूछा तेरा नाम लेकर मैने,

किसके लिये यूं इतना धड़कना तेरा है ।

तेरे चलने से मेरी सांसे चलती है बस,

मैं तो समझती थी इतना काम तेरा है ।

पलकें झुक गई शर्मोसार होकर जब,

मैने जाना इसमें समाया अक्‍स तेरा है ।

लब खामोश थे कुछ कहते कंपकंपा के,

समझ गई मैं इनमें भी नाम तेरा है ।

चाहत में तेरी मैं खुद से अंजान हुई यूं,

देखा हथेली पे कब से लिखा नाम तेरा है ।

शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009

एक दिये को दूजे दिये से ...


मनभावन हो देहरी तब

लीपा हो आंगन जब

चंचल चरण उनके

जाने ठहर जायें कब ।

मां लक्ष्‍मी के

आने की बेला पर

सजाना रंगोली द्वार पर

आई हैं वे तुम्‍हारे ही मनुहार पर ।

करना स्‍वागत उनका

संग परिवार के

तज के मन के

सारे अहंकार को ।

एक दिये को

दूजे दिये से

रौशन करना

चारों ओर

अंधकार का नाश हो

हर ओर प्रकाश ही प्रकाश हो ।


!! दीपावली की शुभकामनायें !!

बुधवार, 14 अक्टूबर 2009

दीपोत्‍सव मनाना है ....


फैलाने को उजाला

जला आज फिर

नन्‍हा दिया भी

उसकी लौ ने

खुशी से कहा

मैं साथ दूंगी

अपनी अन्तिम

सांस तक तुम्‍हारा

बस तुम विचलित

मत होना

हवा के झौके से

फैलाते रहना

अपना उजाला

बच्‍चे कभी

फुलझड़ी भी जलाएंगे

कभी वह बम की

लड़ी भी सुलगाएंगे

तुम डरना मत

जलते रहना

हमें भी रौशन होकर

आज दीपोत्‍सव मनाना है

जलकर भी पड़ता मुस्‍कराना है ।

मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009

किसी के कदमों तले .....

(1)

टूटा जब

पत्‍ता डाली से,

लिपट के रोया

माली से,

सांस अन्तिम

उसने ली

फिर न लौट पाया

डाली पे ।

सूखा पड़ा रहा

धरा में

कभी रौंदा गया

किसी के कदमों तले

कसक उठता मन

कुछ बचा था अंश

उसे उठा ले गई

एक दिन पवन

(2)

टूटकर गिरी

बिजलियां उस पर,

जो अंधेरे में

छुपकर बैठा था

उन्‍हें कुछ भी

न हुआ

जो तकते थे

गगन !

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....