सोमवार, 27 जुलाई 2009

छूट रहा आज मन का बंधन . . .

फनां हो जाएगा एक दिन ये माटी का खिलौना,

रूह तेरी बदल लेगी एक लिबास नये तन का ।

सिसक रहा है तन छूट रहा आज मन का बंधन,

टूट रहा धागा हर रिस्‍ते का अंत है इस तन का ।

मन जाने क्‍यों आज व्‍यथित है, भीगते नयन यों,

कांपते अधर कहने को कुछ बेकार हर जतन है ।

कच्‍ची मिट्टी को दिया आकार ईश्‍वर ने एक नया,

मिले मानुष का जीवन मिन्‍नतों से पाया ये तन है।

पाकर यह तन भूल बैठा सब, माया के मोह में फंस,

गंवाया हर क्षण सदा ना याद आया कि ये नश्‍वर तन है ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. कच्‍ची मिट्टी को दिया आकार ईश्‍वर ने एक नया,

    मिले मानुष का जीवन मिन्‍नतों से पाया ये तन है।

    पाकर यह तन भूल बैठा सब, माया के मोह में फंस,

    गंवाया हर क्षण सदा ना याद आया कि ये नश्‍वर तन है .
    ..बहुत गहन भाव ,आभार .

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  2. पाकर यह तन भूल बैठा सब, माया के मोह में फंस,

    गंवाया हर क्षण सदा ना याद आया कि ये नश्‍वर तन है ।िन्सान यही तो एक बात समझ नहीं पाया और यही उसके दुखों का कारन है बहुत बडिया प्रस्तुति बधाई

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  3. कच्‍ची मिट्टी को दिया आकार ईश्‍वर ने एक नया,
    मिले मानुष का जीवन मिन्‍नतों से पाया ये तन है।
    पाकर यह तन भूल बैठा सब, माया के मोह में फंस,
    गंवाया हर क्षण सदा ना याद आया कि ये नश्‍वर तन है

    सच कहा है........... moh maaya के jaal से nikalna aasaan नहीं होते............ ant समय ही सब समझ आता है..... सुन्दर रचना

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  4. ek behatarin ehasas .....schchaee yahi hai .....bhulawabhi yahi hai...

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  5. हम हर पल फनाह होते रहते हैं ..इंतज़ार आख़री तारीख का है ...जब फनाह होंगे , तो इस जहाँ में नही लौटेंगे ..!
    बड़ी देरतक आपकी रचनाएँ पढ़ती रही ...गहराई से लिखी गयीं हैं सारी पंक्तियाँ ...उमड़ घुमड़ के जज़्बात बह रहे हैं...

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....