सोमवार, 6 जुलाई 2009

फिजायें महकी . . .

शोख चंचल उसकी हर अदा,

ठहरी, सदा मैं खामोश रहा ।

उसकी हंसी से महफिल गूंजी,

मैं उसी में सदा खोता रहा ।

गेसूओं से टपकती बूंदे जब,

कभी मैं सदा नम होता रहा ।

फिजायें महकी उसके आने से,

मैं सदा उनमें ही गुम होता रहा ।

धड़कता ये दिल उसके ही नाम पर,

बता सदा साथ मेरे क्‍यों ये होता रहा ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना जो सवाल भी नाजुक अदा से करती है ...........अन्दाज निराला है.

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  2. गेसूओं से टपकती बूंदे जब,
    कभी मैं सदा नम होता रहा

    बहुत प्रभावशाली रचना...वाह...
    नीरज

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  3. यह होता तो सबके साथ है सदा

    पर होता है आपके साथ इसलिए

    क्‍योंकि आपका तो नाम ही है सदा।

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  4. बहुत खूबसूरत और नम रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी कुछ तो उससे ही है............ बहूत ही लाजवाब लिखा है मन के करीब से

    जवाब देंहटाएं
  6. bahut hi ptrabhaavshali rachana ...
    shabd jaise goonj goonjkar kuch kah rahe ho...

    meri badhai sweekar karen..
    Aabhar
    Vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....