बुधवार, 1 जुलाई 2009

कायनात थी एक हुई . . .

इस इश्‍क में जुदाई,

क्‍यों तेरे मेरे बीच हुई ।

मिलाने को मुझे तुमसे कभी,

सारी कायनात थी एक हुई ।

टूट गये दिल दोनो के ऐसे,

ना बिछड़ने की कसम टूट गई ।

शिकवे न शिकायत कोई फिर,

जाने क्‍यों तू मुझसे रूठ गई ।

मैं मनाता तुझे किस वादे पे,

यकीं करने की आदत छूट गई ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुबक सुबक कर रोना ,
    चाहा था इस दिल ने..
    कहाँ से लाता आसूं.,,तू जब ,
    गम का कतरा कतरा लूट गयी...

    आपकी पंक्तियों को देखकर कलम खुद चल पड़ती है...

    जवाब देंहटाएं
  2. शिकवे न शिकायत कोई फिर,

    जाने क्‍यों तू मुझसे रूठ गई ।

    kabhi kabhi achaanak aisa hota hai ..............

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।

    जवाब देंहटाएं
  4. मिलाने को मुझे तुमसे कभी,
    सारी कायनात थी एक हुई ...alchemist ki lines yaad aa gayi...beautifully written

    जवाब देंहटाएं
  5. मैं मनाता तुझे किस वादे पे,
    यकीं करने की आदत छूट गई........
    बहुत सुंदर लाइनें .

    जवाब देंहटाएं

ब्लॉग आर्काइव

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....