बुधवार, 1 अप्रैल 2009

बेखौफ ही निकले दम मेरा

बेखौफ जिया था अब तक में इसलिए,
ख्वाहिश थी बेखौफ ही निकले दम मेरा !

निशाने पे में ख़ुद रहूँ या कोई ओर सच है,
ये उनसे लड़ने को सदा करेगा मन मेरा !

भय नही, डर नही, जां अपनी देने का,
कायम रहे ये चमन, यही था यतन मेरा !

आतंक रहेगा ना नामों निशा, रहेगी ये दास्ता,
लड़ने की जिस दिन "सीमा" ठानेगा वतन मेरा !

जो लड़े उनसे वो भी, किसी माँ के लाल थे,
कह गए रखना संभाल के यही है वतन मेरा !

बात जब होगी शहादत की नाम उनका आयेगा,
हर जुबा पे, उन रणबांकुरो को है नमन मेरा !

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....