सोमवार, 30 मार्च 2009

सदा उद्धार करती आई है . . .

जब बहती निर्मल नदी हिम गिरि के क़रीब ही,
उसकी निर्मलता देख, गिरि भी अडिग रहते हैं !

अनवरत बहते रहना, प्यासे को पानी देना कैसे,
कर लेती है सब सरिता, मन ही मन कहते हैं !

छुपा के अंतर्मन में रेत के ढेर उजली दिखती,
निर्मल जल इतना, दिखता प्रतिबिम्ब कहते हैं !

कहीं नर्मदा बन बहती है, कहीं सरयू कहलाती ये,
गंगा-जमुना का जहाँ मिलन, उसे संगम कहते हैं !

कितने जीवों का जीवन संजोये अपने आप मे,
पापियों को तार देती, इसमें स्नान से कहते हैं !

शिव की जटा बिराजी ये, भगीरथ धरा में लाये इसे,
ये "सदा" उद्धार करती आई है, जग का सब कहते हैं !

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....