शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

थोड़ी सी खामोशी ......!!!











मेरी
खामोशी
तुम्‍हारी खामोशी से
जब टकराती है
तो कभी अहम तुम्‍हारा
कभी मेरा उसे
बढ़ा देते हैं ....
तुम्‍हारी खामोशी का
हर लफ्ज
मेरे कानों में उतर जाता है
बिन कहे
कैसे हैरां हो जाती हूं
मन की इस समझ पर
कई बार
फिर मुस्‍करा देती हूं
ना चाहकर भी
ये प्‍यार भी जाने
कैसे खेल खेलता है
जिसे चाहता है बेइंतहा
उससे रूठता है झगड़ता है
छोटी-छोटी बात पर
कभी खामोश रहकर चाहता है
कोई उससे बोलने की पहल करे
और वो अपनी
शिकायतों का पिटारा
खोल दे
फिर कभी मन की समझ को
नजरअंदाज कर
ओढ़ लेता है खामोशी
सिर्फ खुद से
बात करने के लिए
कर लेता कैद अपने आपको
रह जाते हैं
जहां सिर्फ वो और सवाल ?
साथ होती है थोड़ी सी खामोशी ......!!!

41 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना।

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  2. यह तस्वीर जो आपने लगायी है, मुझे बड़ी प्यारी है....असीम.. एहसास में भींगी है आपकी कविता.....लास्ट की चार लाईन्स जबरदस्त है....!

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  3. खामोशी के भावों को कितने सुन्दर ढंग से अभिव्यक्ति दी है आपने...

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  4. ख़ामोशी की अपनी भी एक जबान होती है | बहुत सुंदर रचना

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  5. khamoshi ko samjha jaye to bahut kuch sunaai dene lagta hai... anytha aham takrata rahta hai

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  6. मौन में भी संवाद होता है ... सुन्दर प्रस्तुति

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  7. खामोशी में हम अपने बहुत पास होते हैं. खूबसूरत अहसास की कविता.

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  8. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना।

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  9. खामोशी मे खामोशी से बात करना शायद सबसे बेहतर तरीका है संवाद का।

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  10. कभी -कभी ख़ामोशी ही बहुत कुछ कह जाती है ...

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  11. खामोशी खुद अपनी सदा हो
    ऐसा भी हो सकता है...

    अच्छी अभिव्यक्ति....
    सादर...

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  12. खामोशी को आपने अपनी कृति से स्वर दे दिया है!

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  13. दिल को छूती हुई खामोशी......बहुत सुन्दर्...

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  14. मुखर खामोशी की सुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति...

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  15. शब्द अहसास को बयाँ करते हुए ......

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  16. खामोशी की तह में भारी हल-चल रहती है.भावमयी रचना.

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  17. इसकी ख़ामोशी ने ईसे वो सुनहला चादर ओढाया है की रवि की रश्मियाँ भी अपनी आभा पर संकोच करने लग जायें ...उम्दा ...

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  18. शनिवार १७-९-११ को आपकी पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है |कृपया पधार कर अपने सुविचार ज़रूर दें ...!!आभार.

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  19. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना |
    आशा

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  20. आपकी ख़ामोशी खामोश सी होकर भी बहुत कुछ
    कह रही है.पुराना एक गीत फिल्म 'अनुपमा'
    का याद आ रहा है
    'कुछ दिल ने कहा ... कुछ भी नहीं
    कुछ दिल ने सुना ....कुछ भी नहीं
    ऐसी भी बातें होतीं हैं ..ऐसी भी बातें होतीं हैं.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  21. VERY FINE POEM NO DOUBT.LIKED YR BLOG VERY MUCH .mUST BE APPRICIATED.
    pL keep it up.
    regards,
    dr.bhoopendra
    rewa
    mp

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  22. ख़ामोशी की अपनी ही भाषा होती है पर उसे मुखर कर लेना चाहिए ... अहम तक नहीं पहुँचने देना चाहिए ...

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  23. सदा जी कई बार आपकी पोस्ट आपबीती सी लगती है.......ये भी प्रेम का एक रूप है जिसे आप प्यार करते है शिकायत भी उसी से होती है रूठना भी क्योंकि शायद उम्मीद भी उसी से जुडी होती है और जिसके टूटने पर तकलीफ भी होती है ............बहुत सुन्दर पोस्ट.........हैट्स ऑफ |

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  24. ख़ामोशी कभी कभी मन के वो पन्ने पलट देती है जो हम कभी नहीं पढ़ पाते.....बहुत उम्दा रचना .....

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  25. कभी खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है. सुंदर भावपूर्ण कविता. बधाई.

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  26. बहुत उम्दा मानव मन और मनोविज्ञान को स्वर देती खामोशी .

    सोमवार, १९ सितम्बर २०११
    मौलाना साहब की टोपी मोदी के सिर .

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  27. सिर्फ खुद से
    बात करने के लिए
    कर लेता कैद अपने आपको
    रह जाते हैं
    जहां सिर्फ वो और सवाल ?
    साथ होती है थोड़ी सी खामोशी ......!!!
    क्या खूब । काश ये खामोशी टूटे व्यंगबाण से नही प्यार की फुहार से ।

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  28. शिकायत शब्द को ही कोष से हटा दिया जाए तो कैसा रहे....तब ख़ामोशी मुखर होगी प्रेमाक्षरों से...

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  29. बहुत खूबसूरत...
    आपकी ख़ामोशी ने बहुत कुछ कह डाला....

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....