शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

प्रेम !!!!!

प्रेम एक प्रार्थना है
जिसके पीछे सब हैं कतार में
कोई शब्‍दों से व्‍यक्‍त करता है
तो कोई मौन रहकर
प्रेम
बंसी के बजने में हो जाता है
धुन मीठी
तो कई बार हो जाता है प्रेम
विष के प्‍याले में अमृत
...
प्रेम एक आहट है
जो बिना किसी पद़चाप के
शामिल हो जाता है जिंदगी में
धड़कनों का अहसास बनकर
प्रेम विश्‍वास है
जब भी साथ होता है
पूरा अस्तित्‍व
प्रेममय हो जाता है
....
प्रेम जागता है जब
नष्‍ट हो जाते हैं सारे विकार
अहंकार दुबक जाता है
किसी कोने में
क्रोध के होठों पर भी
जाने कैसे आ जाती है
एक निश्‍छल मुस्‍कान
प्रेम का जादू देखो
लोभ संवर जाता है
इसकी स्‍मृतियों में
....
ऐसी ही घड़ी में होता है
जन्‍म करूणा का
जहां प्रेम हो जाता है नतमस्‍तक
वहाँ दृष्टि होती है
सदा ही समर्पण की
समर्पण सिर्फ एक ही भाव
भरता है कूट-कूट कर
मन की ओखल में
विश्‍वास की मूसल से
जिनमें मिश्रित होते हैं
संस्‍कार परम्‍पराओं की मुट्ठी से
जो एक ताकत बन जाते हैं
हर हाथ की
तभी विजयी होता है प्रेम
उसके जागने का, होने का,
अहसास सबको होता है
नहीं मिटता फिर वो
किसी के मिटाने से
.... 

शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

उम्र के किसी न किसी दौर में :)

एक चश्‍मा प्‍लस (+) का
हो गया है जीवन भी
जब भी लगाया
नये सिरे से
निगाहों को अभ्‍यस्‍त करना पड़ा,
कई बार धुँधली इन आकृतियाँ से
मन की अकबकाहट
चेहरे पर साफ़ उभर आती
एक प्रयास देखने का
कटे हुये शीशे में नज़र को टिकाना
या फिर छोटे से गोले में
देखना निकट दृश्‍य !!
.....
चश्‍मा माइनस (-)
सब कुछ दूर बस दूर
नज़दीक में देखो तो लगता
रास्‍ते ऊपर - नीचे कब हो गये :)
सँभल के रखते कदम
ऐसे ही जिंदगी और रिश्‍तों में भी
आ जाती है समय के साथ दूरियाँ
इस माइनस (-) दूरी  के लिए
नहीं है कोई विशेषज्ञ
ना ही कोई चश्‍मा
इन फ़ासलों को कम करने के लिए
जिंदगी की किताब को पढ़ने के लिये
हर किसी को लगाना पड़ता है चश्‍मा
उम्र के किसी न किसी दौर में :)
....

शनिवार, 23 नवंबर 2013

मु़मकिन हो के न हो !!!!













कुछ पाक़ीज़ा से रिश्‍ते
जिनकी सरपरस्‍ती के लिये
दुआ़ जब भी निकलती
सर पे कफ़न बाँध के
ये कहते हुए
मु‍मकि़न हो के न हो
पूरा कर के लौटूंगी
तेरी ख्‍वा़हिश मेरे मौला !!!!
...
तबस्‍सुम की गली
मिला दर्द अंजाना सा तो
बढ़ा दी हथेलियाँ मैने
ओक़ में,
बस आँसू थे ज़ानां
कुछ नमक मिला था इनमें
सलीक़े का इस क़दर
बस लबों को खारापन दे गये
इस उम्‍मीद के साथ
जब भी इनका जि़क्र होगा
तेरा नाम न अाने देंगे
सिहर गई पी के जिंदगी इनको
और एक वादा किया
ये नमक तेरी वफ़ा का
ता-उम्र दिल में छिपा के रखेगी !!!!

सोमवार, 18 नवंबर 2013

समझाइशों की नदी !!!!!!!!!!!

मैं चाहती हूँ 
तुमसे कितना कुछ कहना 
पर तुम्हारे और मेरे बीच 
मौन की सुनामी है 
अवरूद्ध हैं सारे रास्‍ते  तुम तक पहुँच पाने के !
तुम अपने दायरे में स्तब्ध हो 
या यूँ कहूँ खामोश हो 
और मैं दायरे से बाहर 
प्रतीक्षित हूँ ख़ामोशी के टूटने की  …
 जाने कब टूटे - टूटे ना टूटे !
...
तुमसे झगड़ा तो नहीं हुआ मेरा,
कभी किसी बात को लेकर
पर फिर भी मेरा मौन लड़ा है
तुमसे जाने कितनी बार
बिना कुछ कहे भी
ये मौन कैसे झगड़ लेता है
मैं हैरान रह जाती हूँ
उसके इस व्‍यवहार पर !!
...

तुम और मैं जब भी
समझाइशों की नदी को 
साथ-साथ पार करना चाहते हैं
नदी का प्रवाह विपरीत होता है
हमारे किनारों से बेपरवाह
वह अपनी धुन में बहती जाती है 
कभी तुम्‍हारी आँख से 
मेरे हिस्‍से का मौन बन 
कभी मेरी उदासियों में 
तुम्‍हारे हिस्‍से की चुप्पियाँ बनकर !!!!!!
नदी - हम और किनारे का मौन 
जाने कब टूटे 
मैं प्रतीक्षित हूँ !!!!!!!!!

गुरुवार, 7 नवंबर 2013

तुम कहने के पहले सोचती क्‍यूँ नहीं :)

ना शिकायत मुझे तुमसे है,
ना ही समय से, ना किसी और से
बस है तो अपने आप से
हर बार हार जाती हूँ तुम से
तो झगड़ती हूँ मन से
रूठकर मौन के एक कोने में
डालकर आराम कुर्सी
झूलती रहती अपनी ही मैं के साथ !
...
कभी खल़ल डालने के वास्‍ते
आती हैं हिचकियाँ लम्‍बी-लम्‍बी
गटगट् कर पी लेती हूँ पानी का ग्‍लास
एक ही साँस में
सूखता हलक़ तर हो चुका होता है
पर पलटकर तुम्‍हारी तरफ़
मैं निहारती भी नहीं
ज़बान आतुर है फिर कुछ कहने को
कंठ मौन के साये में
शब्‍दों को चुनता है मन ही मन
फिर नि:शब्‍द ही रहकर
कह उठता है
तुम कहने के पहले सोचती क्‍यूँ नहीं !!
....
.....तुम में संयम नहीं होता तो
भला कैसे रहती
तुम दंत पंक्तियों के मध्‍य
यूँ सुरक्षित,
तुमसे मुझे इतना ही कहना है
मेरा सर्वस्‍व तुम से है
और मेरी ये चाहत तुम्‍हारे लिये है
तुम सहज़ रहो,
कुछ भी कहने से पहले
अपनी सोच को दिशा दो तब कहो
विवेक के सानिध्‍य में अानंद है
आनंद में सुख है
मैं नहीं चाहती कि तुम इस सुख से वंचित रहो
मेरे रहते तुम्‍हें कोई ये कहे
तुम कहने के पहले कुछ सोचती क्‍यूँ नहीं :)

शनिवार, 2 नवंबर 2013

दिया समर्पण का रखना !!!












निश्‍चय की ड्योढ़ी पर दिया समर्पण का रखना,
जब भी मन आंशकित हो तुम धैर्य हमेशा रखना ।

पूजन, वंदन आवाहन् होगा गौधूलि की बेला में जब,
अपने और पराये की खातिर बस नेक भावना रखना ।

उत्‍सव की इस मंगल बेला में दीप से दीप जलाना जब,
मन मंदिर में एक दिया संकल्‍प का भी जलाकर रखना ।

लम्‍हा-लम्‍हा उत्‍साहित है बच्‍चे पंच पर्व पर आनंदित हैं
परम्‍पराओं के ज्ञान का दीप जलाकर उनके मन भी रखना ।

दिया जब भी विश्‍वास का जलता है हवायें तेज चलती हैं,
घबराहट की सांसों को  इतनी बात सदा बताकर रखना ।

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

दीप पर्व ये !!!!













दिये के संग
राैशन मुँडेर है
आई दिवाली !
....
लक्ष्‍मी पूजन
शुभकामनाओं का
प्रकाश पर्व !
...
दिवाली मने
रँगोली सजे जब
घर आँगन !
...
सजा आँगन,
दीप से दीप जला
लो वरदान !
...
दीप पर्व ये
लक्ष्‍मी संग गणेश
पूजन करो !
...
जला के दीप
माँ लक्ष्‍मी को मनाना
रंगोली सजा !
...
श्रद्धा का दीप
भक्ति की साधना है
दीप जला लो !
...
दिया आस्‍था का
आँगन में जलाना
होगा प्रकाश  !
...
प्रकाश पर्व
उल्‍लासित है दीप
चाैखट पर !
... 


सोमवार, 21 अक्टूबर 2013

वक्‍़त के पन्‍नों पर !!!

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
जिंदगी तुम कई बार
मुस्‍कराहटों के मायने बदल देती हो
पढ़ती हो जब भी
वक्‍़त की किताब
सोच में पड़ जाती हो
हर पृष्‍ठ इसका
विस्‍मय की स्‍याही से भरा होता है
जिसके मायने तुम्‍हें भी
झकझोर देते हैं !
....
वक्‍़त के पन्‍नों पर
जिंदगी बारीकी से अपने अनुभव
शब्‍दश: उकेरती
कभी कोई आकृति
मन मस्तिष्‍क पर गढ़ देती
जिसके बिना जीवन का हर पल
बस व्‍यर्थ ही जान पड़ता
फिर भी अगले पृष्‍ठ पर
उम्‍मीद की हल्‍की सी एक लक़ीर
खींचकर तुम
कुछ पंक्तियों को जब रेखांकित करती हो
वो लम्‍हा ज़ज्‍़ब नही होता जब
छलक पड़ती है टप् से
एक बूँद नयनों के कोटर से
फैल जाती है स्‍याही
धुँधला जाते हैं शब्‍द
पर उनके अर्थ बोलते हैं !!!


बुधवार, 9 अक्टूबर 2013

जड़ता का सिद्धांत !!!!!

नियमों के विपरीत
चलकर कभी देखोगे तो
कुछ अलग ही दृश्‍य दिखाई देगा
कभी जड़ता का सिद्धांत
पढ़कर समझ पाओगे यह भी
कि जड़ होना इतना आसान भी नहीं
टिका रहता है समूचा अस्तित्‍व इस पर
...
अच्‍छी बातें, अच्‍छे विचार
पढ़कर कितना अच्‍छा लगता है,
पर अनुसरण कितने ही कर पाते हैं
इस अच्‍छाई पर  ?
सच्‍चाई की राह पर चलने की सीख देना
भला मानव कहलाना कितना ही प्रिय लगता है
वह भला शख्‍स, और सच की टेक  पर
हर कदम आगे बढ़ाता हुआ आदर्श व्‍यक्तित्‍व
जाने कितनी आंखों की किरकिरी होता है  !
.....
जो श्रेष्‍ठ है वह तो सदा श्रेष्‍ठ ही रहेगा,
हेर-फेर तो हमारी सोच का होता है
झूठ कितने ही लिबास बदल ले
कितने ही नकाब लगा ले
पर सच्‍चाई हमेशा बेनकाब होती है
यही उसकी जड़ता का सिद्धांत है !!!!!

शनिवार, 28 सितंबर 2013

सम्‍बंधों का बाईस्‍कोप !!!

प्रेम सब कुछ छोड़ देता है
पर भरोसा करना नहीं छोड़ता
जिस दिन वह भरोसा करना छोड़ देगा
यकीं मानो
उसे कोई प्रेम नहीं कहेगा !!!
....
टटोल कर देखो कभी रिश्‍तों में प्रेम
बिना ठहरे पल-पल का हिसाब
करती यादों के साथ
अपने सम्‍बंधों का
बाईस्‍कोप तैयार करता मिलेगा मन तुम्‍हें
जो वक्‍़त-बेवक्‍़त एक अदद तस्‍वीर
बड़ी ही तन्‍मयता से चिपका लेता था !
....
ना कोई आवाज लगाता
कि तुम पलटकर देखो ना ही तुमसे दूर जाता,
बसकर रह जाता रूह में सदा के लिए
खामोशियों में भी धड़कन का गति में रहना
दिखाता है प्रेम के रंग
कोई इन्‍द्रधनुष जब बनता है
सारे रंग मन के संगी हो जाते हैं !!
......
मन की मुंडेर पर जब भी
प्रेम आकर चहका है
हर बुरे विचार को
बड़े स्‍नेह से चुगता चला गया
इसकी चहचहाहट के स्‍वर
आत्‍मा में उतरते चले जब
भरोसे की एक थपकी
यकीन की पगडंडियों पर
मेरे साथ-साथ चलती रही !!!

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

माँ का तर्जुबा !!!












माँ का तर्जुबा
रह-रहकर मेरी आँखों में झाँकता रहा,
मेरे चेहरे की उदासियों को पढ़ता
फिक्र की करवटें बदलता कभी,
फिर सवालों की बौछार भी करता
पर मेरी खामोशियों का वाईपर,
जाने कब उन्‍हें एक सिरे से
साफ कर देता
एक मुस्‍कान :) ही तो चाहती थी माँ
मैं ले आती बनावटी हँसी
खिलखिलाकर हँसती
माँ बुझे मन से कहती
चल जाने दे मैं तुझसे बात नहीं करती
गलबहियाँ डाल मैं
डालती सब्र की चादर भी
उनकी पलकों पर
सीखने दो मुझे भी
उलझनों के पार जाकर कैसा लगता है
समझने दो न
तुम्‍हारी फिक्र है न मेरे साथ
यकीन मानो वो दुआ का काम करेगी  !
....
कुछ सोच माँ
निर्णय की स्थिति में आती
मन की कसमसाहट पे
थोड़ा अंकुश लगाती
मेरी नादानियों पर
गौर करना भी सिखलाती
तो कोशिशों को जीतने का फ़न भी बताती
मेरी हर मुश्किल पे
हौसले की मुहर जब  लगाती
यकीं मानो उन पलों में
मैं हारकर भी जीत जाती !!!

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

उम्‍मीदों की मुंडेर पे ...

उम्‍मीदों की मुंडेर पे
वक्‍़त विश्‍वास बन कर जब भी उतरा
जिंदगी परछाईं बन उसी की हो गई
सपनों को सौंप उसकी झोली में
काँधे पे उसके
अपनी हथेलियां रख चलती रही
बिना थके अनवरत्
जिंदगी और वक्‍़त
दोनो एक दूसरे की परछाईं है ना
चाहे कैसी भी परिस्थिति हो
जिंदगी वक्‍़त के साये में
भागती रहती है
कभी लगा लेती है जब ऊँची छलांग
तो चिंहुक कर देखती है वक्‍़त को
ये मौका उसे मिला
वक्‍़त भी सलाम कर उठता है ऐसे में
इन जज्‍़बों को जो उसके साथ
कदम से कदम मिला कर
कदमताल करते हैं !

मंगलवार, 20 अगस्त 2013

पर्व स्‍नेह का !


















रिश्‍तों का मान,
विश्‍वास का पर्व ये
रक्षाबंधन !
.....
पर्व स्‍नेह का
आया जब भी भाया
रक्षाबंधन !
...
बहन बाँधे
संकल्‍पों का सूत्र ये
स्‍नेह पर्व पे !
....
स्‍नेह बँधन
बाँधता एक धागा
सारी उम्र ये !

बुधवार, 14 अगस्त 2013

तिरंगे को करके अर्पित सुमन !!!















तिरंगे की शान में जब भी, सुमन अर्पित करता हूँ,
देश तुझे ये दिल ही नहीं जां भी समर्पित करता हूँ ।

परम्‍पराओं के देश में तिरंगे को करके अर्पित सुमन,
वीरों की कुर्बानियों को आज ये दिन समर्पित करता हूँ ।

अभिनन्‍दन ही नहीं वंदन भी है उन वीरों की शहादत को,
आजादी के जश्‍न में आने वाला हर पल समर्पित करता हूँ ।

विश्‍वास के रास्‍तों पर जो सदा उम्‍मीदों की बस्तियाँ बसाते हैं,
ऐसे वीर से‍नानियों को जय हिन्‍द के बोल समर्पित करता हूँ ।

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

किसी याद का फिरकनी की तरह घूमना !!!!













एक दिन में ले आई लम्‍बी डोर
नापने लगी कद यादों का
वो झल्‍लाईं बावली हुई है
हमारा कद नापो मत
हमारी बढ़त रूक जाएगी
मैं मुस्‍कराई
ठहर कर सोचने लगी
यादों की बढ़त के बारे में
लगी जब फिसलने
वे रेत की तरह मेरी हथेली से
जाने क्‍यूँ मैं इन्‍हें थाम कर रख ना पाई
एक जगह बस घूमती रहीं
ये मेरे इर्द-गिर्द या फिर
मैं ही इनसे दूर जा ना पाई !!!
....
हर मन में यादों का एक गोलाम्‍बर होता है,
हर याद करती है जाने कितनी बार
परिक्रमा उसकी
जिसके इर्द-गिर्द हम
कितनी यादों को क्रम से खड़ा कर देते हैं
सब अपनी बारी आने तक
हमारी ओर ही तकती रहती हैं
किसी याद का फिरकनी की तरह घूमना
मन का बेचैन कर देता है !!!!
...

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

कोई बोधतत्‍व था मन को पकड़े हुए !!!



















सच झूठ के पर्दों के नीचे से
अपना हाथ हिलाता है
जाने कितने चेहरे
मुस्‍करा देते हैं उस क्षण
त्‍याग तपस्‍या पर बैठा था
पलको को मूँदे
कोई बोधतत्‍व था मन को  पकड़े हुए
सोचो कैसे ठहरा होगा
यह शरारती मन
....
मन की कामनाओं को बखूबी जानती हूँ,
बस भागता ही रहता है
पल भर भी स्थिरता नहीं है
क्षणांश जब भी क्रोध से कुछ कहा
एक कोना पकड़
सारे जग से नाता तोड़
आंसुओं से चेहरे को धोता रहा
हिचकियों को बुला भेजा
देने को सदाएँ
इसको साधना इतना आसान नहीं
जब भी यह हाथ लगा है किसी के तो ...
....
युगांतकारी परिवर्तन
जब भी  होते हैं
सोच बदल जाती है
साथ ही बदल जाता है
जिन्‍दगी को देखने का नजरिया भी
विश्‍वास लौटकर आता है
उलटे पाँव जब
तब पैरों के छाले पीड़ा नहीं देते !!!

मंगलवार, 9 जुलाई 2013

निकलना होगा विजेता बनकर !!!!

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
मुश्किल भरे रास्‍तों से गुज़र कर
दिल और दिमाग के कुछ हिस्‍सों में
गज़ब की ताकत आ जाती है
जंग लगे ख्‍याल भी
बड़ी ही फुर्ती से
अपना नुकीला पन दर्शा देते हैं
चोट खाया हिस्‍सा
जख्‍मों के निशान पर
एक पपड़ी मोटी सी धैर्य की डाल
बेपरवाह हो जाता है !!
...
मनमाने सुखों के लक्षागृह
किसके हुए हैं
निकलना होगा विजेता बनकर
तब ही तो धुन के पक्‍के लोग
इस मजबूती में ही जीते हैं
वर्ना उनके पास जीने की कोई वजह
शेष रहती ही नहीं है
माँ कहती है कुछ बातें वक्‍़त पर छोड़ दो
तो मन को बड़ा सुकून मिलता है
ये सच है कि कर्तव्‍य की सीढि़याँ
बड़ी ही ऊँची और घुमावदार होती हैं
चढ़ते चलो तो मंजिल मिल ही जाती है !!
 

बुधवार, 26 जून 2013

हो जाते हैं हम सब अचंभित !!!

माँ तुम
हमेशा विश्‍वास की उँगली
थमा देती हो
जिद् की मुट्ठी में
जो नहीं छोड़ती फिर तुम्‍हें
किसी भी परीस्थिति में  !
...
तुम कर्तव्‍य के घाट पर  से
जब भी निकलती हो
साहस की नाव लेकर
लहरें आपस में बातें करती हैं
नदिया का जल
तुम्‍हारी हथेली की अंजुरी में समा
स्‍वयं का अभिषेक करने को
हो जाता है आतुर
किनारे तुम्‍हारे आने की बाट जोहने लगते हैं  !!
...
तुम और तुम्‍हारा व्‍यक्तित्‍व
अलौकिक ही रहा सदा हम बच्‍चों के लिए
भांप लेता है हर खतरे की आहट को
तुम्‍हारे त्रिनेत्र की हम सब चर्चा करते हैं
और मुस्‍करा देते हैं तुम्‍हारी सूझ-बूझ पर
अक्‍सर तुम सहज़ शब्‍दों में जब कह देती हो
मुझे तो ये भी पता नहीं :)  कैसे करते हैं !
पर हो सब जाता है तुमसे
हो जाते हैं हम सब अचंभित !!!
....
परम्‍पराओं का पालन तुम करती हो
पर दायरों में नह‍ीं बाँधती अभिलाषाओ को
काट देती हो तर्क से अपने
हर उस विचार को
जो दूषित मंशा रखता है ह्रदय में
तभी तो हर रूप में तुम्‍हारा
सिर्फ अभिनन्‍दन ही होता है
जो न कभी कम होता है न कभी अपना विश्‍वास ही खोता है  !!!

शनिवार, 15 जून 2013

कदमों पे हौसला रख !!!

मजबूत हैं मेरे इरादे,
व्‍यक्तित्‍व मेरा मेरे लिये
हर पल आईना रहा,
किसी ने कुछ भी कहा हो
पर मैने खुद से कभी भी झूठ नहीं कहा
खुद को कभी भी मैने थपकी नहीं दी
झूठी तसल्‍ली की
विश्‍वास के साथ उठती रही रोज़
वैसे ही जैसे
प्रतिदिन निकलती थीं रश्मियाँ
सूरज के आने से पहले 
...
न‍हीं डोलता था मेरा आत्‍मविश्‍वास जरा भी
इस बात को लेकर कि आज
हो जाने दो कुछ देर ... जरा ठहर कर ... अभी करती हूँ
इन शब्‍दों के अर्थों ने सदा विचलित किया मुझे
जब करना ही है तो देरी क्‍यूँ ... किस बात की
किस का है इन्‍तज़ार ...
मैने कहने से ज्‍यादा करने पे भरोसा किया
व्‍यक्तित्‍व मेरा मेरे लिये
हर पल आईना रहा,
....
सच की लाठी, विश्‍वास की टेक
कदमों पे हौसला रख
गुजरी हर उस गली से मैं जहाँ झूठ चीखा था
कत्‍ल हुई थी उम्‍मीदें लहुलुहान थे सपने
या फिर न्‍याय होना बाकी था
बाकी थी पहचान किसी मैं की मुझसे
उन सबको दिशा दी, पहचान दी
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि
फिर मैं एक मिसाल बनी
कितनों के जीवन की बुनियाद बनी
व्‍यक्तित्‍व मेरा मेरे लिये
हर पल आईना रहा,

शुक्रवार, 31 मई 2013

कुछ ईमानदार से शब्‍द !

कुछ ईमानदार से शब्‍द
मेरी कलम से जब भी उतरते
मुझे उन शब्‍दों पर बस
फ़ख्र करने का मन करता
ईमानदारी व्‍यक्तित्‍व की हो या फिर
शब्‍दों की हमेशा प्रेरक होती है
व्‍यक्तित्‍व अनुकरणीय होता है
और शब्‍द विस्‍मरणीय !
....
एक ईमानदारी के पुल को देखो
बरसों बरस खड़ा रहता है
अडिगता से जिसमें
सही मात्रा में मिला होता है
रेत-सीमेंट और लोहा
अपने अंतिम समय में भी
उसकी थरथराहट ईमानदारी से देती है
चेतावनी मुझ पर से गुजरना बंद करो
मेरा अंतिम समय आ गया !
....
एक ईमानदार कोशिश करके देखना,
कितनी बुराईयो के लिए
वह बन जाती है चुनौती
चुनौतियां सबके जीवन में आती हैं
हाँ उनसे कोई सबक लेता है
तो कोई उन्‍हें आड़े हाथों लेता है
या फिर करता है कोई
उनसे जीतने के लिए संघर्ष !!!
...

मंगलवार, 28 मई 2013

धड़कनों को जिंदा रखना है तो !!!!

कोई दर्द की बात करता है तो वो मुस्‍करा देता है
ये भी एक दिन अपने साथ जीना सिखा देता है ।

रास्‍तो पे उसने रखीं थी निशानियां तेरे वास्‍ते ही,
जो भी पूछ़ता वो तेरे जाने का सबब बता देता है ।

अहम टूटकर बिखरा तो वफ़ा खुलकर मुस्‍कराई,
ये प्रेम ही है वो जो सच का आईना दिखा देता है ।

धड़कनों को जिंदा रखना है तो पहन  हँसी का जेवर,
ये वही है जो मुश्किल दौर में भी जीना सिखा देता है ।

दिल की तंग गली में कब मेले लगे खुशियों के सोच,
जीना तो है उसी का जो गम में भी सदा मुस्‍करा देता है ।

शुक्रवार, 24 मई 2013

जिंदगी की किताब !!!!

नया सीखोगे
जिंदगी की किताब
पढ़ोगे जब !
....
चुनौतियाँ भी
रास्‍ते बदलती तो
अच्‍छा होता न !
....
सन्‍नाटे भी तो
शोर करते हैं न
सुना तुमने !
...
कीमत होती
यक़ीन की नहीं तो
करता कौन !
....
दर्द बाँटा तो
मुस्‍कराहट आई
गम तड़पा !
...
प्रेम राग है
जीवन बेला में ही
इसको जी लो
...

सोमवार, 20 मई 2013

शिकायतों की चिट्ठी भी ....

प्रेम ने कब भाषा का लिबास पहना हैं,
इसने तो बस मन का गहना पहना है ।

कभी तकरार कहाँ हुई इसकी बोलियों से,
कहता है कह लो जिसको जो भी कहना है ।

लाख दूरियाँ वक्‍त ले आये परवाह नहीं,
हमको तो एक दूसरे के दिल में रहना है ।

दिखावट का आईना नहीं होता प्रेम कभी,
हकीकत की धरा पर इसको तो बहना है ।

शिकायतों की चिट्ठी भी हँस के बाँचता,
प्रेम विश्‍वास का सदा अनुपम गहना है ।

गुरुवार, 16 मई 2013

हर मुश्किल के पार उतरते देखा है !!!!

मेहनतकश चींटी को कण-कण से जीवन यापन करते देखा है,
बाधायें कैसी भी आ जाये जीवन में उनसे पार उतरते देखा है !

हर मुश्किल में निर्णय लेती हैं मिल-जुलकर सम्‍बंधों का ऐसा,
अटल विश्‍वास संजोये ये जीव अनूठा हर पल चलते  देखा है !

समर्पण की सीढ़ी चढ़कर श्रम का दान ये करती हैं तेरा-मेरा छोड़,
जीवन की सारी बाधाओं से इनको निश दिन पार उतरते देखा है !

चक्‍कर पर चक्‍कर लगाती चलने को आती तो ये मीलों चल जाती,
तुमने इनको कभी मुश्किलों से बतलाओ क्‍या घबराते भी देखा है !

सीख सुहानी जीवन की ये देती हैं 'सदा' ही श्रेष्‍ठ सपर्मण से जानो,
तन नहीं बल्कि मन से इनको हर मुश्किल के पार उतरते देखा है !

शुक्रवार, 10 मई 2013

तुम्‍हारे बारे में !!!!!!















मां सोचती हूँ कई बार
तुम्‍हारा प्‍यार  और तुम्‍हारे बारे में
जब भी तो बस यही ख्‍याल आता है
क्‍या कभी शब्‍दों में व्‍यक्‍त हो सकता है
तुम्‍हारा प्‍यार  तुम्‍हारा समर्पण,
तुम्‍हारी ममता
तुम्‍हारा निस्‍वार्थ भाव से किया गया
हर बच्‍चे से समानता का स्‍नेह
.......
मां तुम्‍हारा उदाहरण जब भी दिया
देव मुस्‍कराये पवन शांत भाव से बहने लगी
नदिया की कलकल का स्‍वर मधुर लगने लगा
हर शय छोटी प्रतीत होती है उस वक्‍त
जब भी बाँहें फैलाकर जरा-सा तुम मुस्करा देती हो 
सोचती हूँ जब भी कई बार
तुम्‍हारा प्‍यार  और तुम्‍हारे बारे में
.....
खुशियों का अर्थ मेरे लिये
तुम्‍हारी मुस्‍कान होती है मां
तुम्‍हें पता है तुम्‍हारी उदासी
मेरी हँसी छीन लेती है
तुम्‍हारे आंसू
झंझोड़ देते हैं मेरा अन्‍तर्मन
बेबस हो जाती हूँ उन लम्‍हों में
जिनमें तुम्‍हारे विश्‍वास का
खून होता है
सोचती हूँ जब भी कई बार
तुम्‍हारा प्‍यार  और तुम्‍हारे बारे में !!

सोमवार, 6 मई 2013

मीठा राग है जिंदगी भी !!!



















हर बार मेरे हिस्‍से
तुम्‍हारी दूरियाँ आईं
नजदीकियों ने हँसकर जब भी
विदा किया
एक कोना उदासी का लिपट कर
तुम्‍हारे काँधे से सिसका पल भर को
फिर एक थपकी हौसले की
मेरी पीठ पर तुम्‍हारी हथेलियों ने
रख दी चलते-चलते !
.....
मेरे कदम ठिठक गए पल भर
कितने कीमती लम्‍हे थे
उस थपकी में
जिनका भार मेरी पीठ पर
तुम्‍हारी हथेली ने रखा था
भूलकर जिंदगी कितना कुछ
हर बार मुस्‍कराती रही
उम्‍मीद को हँसने की वजह
नम आँखों से भी बताती रही
गले लगती जो कभी
सुबककर रात तो
उसे भोर में चिडि़यों का चहचहाना
सूरज की किरणें दिखलाती रही !!
....
कूकती कोयल ... अपनी मधुरता से
आकर्षित करती सबको
भूल जाते सब उसके काले रंग को
मीठा राग है जिंदगी भी
बस तुम्‍हें हर बार इसे
भूलकर मुश्किलों को
गुनगुनाना होगा पलकों पे
इक नया ख्‍वाब बुनकर
उसे लम्‍हा-लम्‍हा सजाना होगा !!!

गुरुवार, 2 मई 2013

सारी ख्‍़वाहिशों की बोलती बंद !!!!















कभी कुछ होता है कहने को
पर जाने क्‍यूँ
मौन उतर आता है
बड़ी ही तेजी से धड़धड़ाते हुए
सब दुबक कर बैठ जाते हैं
सारी ख्‍़वाहिशों की बोलती बंद
अरमान अपना कमरा बंद करते हैं तो
पलकें बंद होकर लाइट ऑफ  !
....
नहीं समझ आता मुझे
मौन का कभी यूँ सभी को सताना
जहाँ सब डरे-सहम से रहते हैं
कौन पहल करे
कौन उस मुस्‍कान को खींच कर लाए
जो गायब है बिना बताये किसी को
हँसी ने तो एक लम्‍बी छुट्टी भी मार दी
ठहाका गया तो लौटा ही नहीं
सब उसी को ढूँढते फिर रहे थे
ऊपर से यह मौन की साधना
जिसे देख कर सब
मन ही मन कुढ़ से रहे थे !!
....
हाँ एक मुखौटा भी दिखा था
किसी को आते देख
पहन लेते किसी को पता ही नहीं चलता
ये मुस्‍कान नकली है
हँसी छुट्टी पर है
सबका काम तो चल ही रहा था
पर तुम ही सोचो
क्‍या काम चलने का नाम जिंदगी है ?
कहीं सुना था मैने
हँसने-हँसाने का नाम जिंदगी है
तो आओ फिर जिंदगी को आवाज देकर
कुछ मुस्‍कराहटों को इसके नाम कर दें !!!
....

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

हद़ की लक़ीर !!!!!!
















कुछ शब्‍द चोटिल हैं,
कुछ के मन में दर्द है अभिव्‍यक्ति का,
हाथ में कलम हो तो
सबसे पहले खींच लो एक हद़ की लक़ीर
जिसे ना लांघा जा सके यूँ सरेआम
बना लो ऐसा कोई नियम
कि फिर पश्‍चाताप की अग्नि में ना जलना पड़े
मन की खिन्‍नता ज़बान का कड़वापन
जिन्‍हें शब्‍दों में उतारकर
तुमने उन्‍हें अमर्यादित करने के साथ् ही
कर दिया ज़ख्‍मी भी !
.....
उठती टीसों के बीच
सिसकियाँ लेते हुए शब्‍द सारे
अपनी व्‍यथा कहते रहे
पर सुनने वाला कोई ना था
सबके मन में अपना-अपना रोष था
अम़न का प़ैगाम बाँटने निकले थे
ज़ोश में खो बैठे होश
अर्थ का अनर्थ कर दिया  !!!
....
मन के आँगन में जहाँ
शब्‍द-शब्‍द करता था परिक्रमा  भावनाओं की
जाने कब वर्जनाओं के घेरे पार कर
बनाने के बदले बिगाड़ने में लग गया
रचनाकार उसके स्‍वरूप को
वक्‍़त औ' हालात की ज़रूरत एकजुटता है
क़लम ताक़त है न कि कोई क़टार
जिसे जब चाहा उतार दिया
शब्‍दों के सीने में और कर दिया उन्‍हें बेजुबान
अगर कहीं जरूरी है कुछ तो वो है
हद़ की लक़ीर !!!
जिसे खींचने के लिए फिर चाहे
क़लम आगे आए अथवा व्‍यक्तित्‍व !
....

सोमवार, 22 अप्रैल 2013

पुराने नियम बदल डालो !!!!!!

शब्‍द आहत हो गये हैं
चीखते-चीखते
मर्यादायें सारी
बेपर्दा हुई हैं जबसे  !
माँ मुझे तुमने
खेलने के लिये गुडि़या नहीं
बल्कि हथियार दिये होते
तो हर बुरी नज़र के उठने से पहले ही
मैने जाने उन पर कितने ही
वार किये होते !!
....
नज़र बदली है इनकी तो,
तुम भी हौसले से
अपनी सारी नसीहते बदल डालो,
बेटी को या तो जन्‍म मत दो
देती हो जन्‍म तो
इनको नज़ाकत से पालने के सारे
पुराने नियम बदल डालो !!!
...
तुम्‍हारे अंश पर बुरी नज़र,
बुरी नियत की शंका
कैसे करता है कोई
उसके लिये तिरस्‍कार की सीख
अपनी परवरिश में डालो
मुझको सुरक्षित रखने की नहीं
बल्कि सुरक्षित होने की
आदत जन्‍म से डालो !!!!!!
....
भरोसे की चादर
ओढ़कर घर से नहीं निकलना है मुझे अब,
जाने कब हवायें
वहशत की चलने लगें !!!
...
परी कथा या लोरी सुनाने के बजाये,
तुम सुनाना उनको अब
दामिनी औ' गुडि़या के साथ
क्‍या हुआ था
सच माँ देती हो जन्‍म तो
इनको नज़ाकत से पालने के सारे
पुराने नियम बदल डालो !!!!!!

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

वही ऊँचाइयों की जिद़ !!!!













अतीत के धागों को कितना भी काटूँ
मन के माँझे से
फिर भी यह जिंदगी की पतंग  उड़कर
दूर पहुँच ही जाती बादलों के पार
वही ख्‍वाहिशें मस्‍ती की,
वही ऊँचाइयों की जिद
हथेलियों में डोर रहती किसी और के
फिर भी कहाँ परवाह रहती इसे इन बातों की
यह दिल तो सिर्फ उड़ान भरना जानता है !
...
जिद् की टहनी पकड़कर
जब भी शब्‍दों ने डाले हैं झूले
कभी महकी हैं फिज़ाये
कभी गुनगुनाया है गीत
जोर से चिल्‍लाया है कोई नन्‍हा कोटर से
उसे इंतजार है अभी उड़ने का
पंखों को फैलाने का
एक उड़ान माँ के साये में भरने का
उड़ना उड़ते जाना
फ़कत इतना सा ख्‍वाब था
हवाओं ने जाने कितनी बार गुमान किया था,
पर कहाँ परवाह थी इन्‍हें हवाओं की
उसे तो बादलों के पार जाना था,
अपनी खुशियों के संग
पल-पल मुस्‍कराना था !!!!
...

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

चला फिर साथ कितनी दूर तलक कोई !!!!



















शब्‍दों का मरहम तो लगाया होगा तुमने जाने कितनी बार
कभी रोते हुये को भी हँसाया होगा तुमने जाने कितनी बार  ।

सहमी है जिंदगी कतरा-कतरा हर ख्‍वाब दफन होता हो जहां,
इन हालातों में कहते हो संभल के चलना जाने कितनी बार ।

रिश्‍तों की डोरियाँ बूढ़ी हो चली हैं जाने कब कौन साथ छोड़ दे,
लगाकर गाँठ तुमने इनको चलाया भी होगा जाने कितनी बार ।

चला फिर साथ कितनी दूर तलक कोई ये कहना जरूरी तो नहीं,
थक कर मन को अपने समझाया होगा तुमने जाने कितनी बार ।

मंजिले अपनी जगह ठहरी रही कदम बेतहाशा दौड़ा किये फिर भी,
रूठा मेरा नसीब पहुँचने से पहले उन तक सदा जाने कितनी बार ।


शनिवार, 6 अप्रैल 2013

फिर से पल्लिवत होने को!!!!

मन के आँगन में
स्‍नेह का बीज बचपन से ही
बो दिया गया था जो वक्‍त के साथ
पल्लिवत होता रहा जिस पर
सम्‍मान का जल सिचित करते-करते
स्‍वाभिमान की डालियों ने
अपना लचीलापन नहीं खोया
जब भी आवश्‍यकता हुई
वो झुकती रह‍ीं
फिर चाहे उन्‍हें झुकाने वाला
कोई बड़ा होता या बच्‍चा
वो सहर्ष तैयार रहतीं
तपती दोपहर में वो छाया बन
शीतलता देती
....
जोर की आँधियों में
टूटकर गिरते वक्‍त भी
कोई आहत न हो
किसी को चोट न पहुँचे
खुद के जख्‍मों से बेपरवाह
रहते हुए भी वो जिंदगी को जीते-जीते
सूखकर लकड़ी हो जाती
तो जलाई जाती
सुलगती, जलती फिर कोयला होती
यूँ ही फिर वो राख हो,
इक दिन फिर मिल जाती माटी में
किसी बीज के अंकुरित होने का
करती इंतजार
फिर से पल्लिवत होने को!!!!

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

कुछ टूटने से पहले ....

उसने मुझसे इक दिन
भीगी आँखों से कहा
ये मुहब्‍बत भी
बहुत बुरी शय होती है
किसी और की खबर
रखते-रखते
खुद से बेखबर हो जाती है
...

कुछ टूटने से पहले
आवाज हो
ये जरूरी तो नहीं
तुमने देखा तो होगा
फूलों का खिलना
और बिखर जाना चुपके से!!!
....

शनिवार, 30 मार्च 2013

अडिगता से सफलता की ओर !!!!

कभी मन के खिलाफ़
चली है आँधी तुम्‍हारे शब्‍दों की
कभी नहीं चाहते हो जो लिखना वह भी
लिख डालती है कलम एक ही झटके में
वर्जनाओं के घेरे में करती परिक्रमा
शब्‍दों की तोड़ती है अहम् की सरहदों के पार
कुछ तिनके उड़कर दूर तलक़ जाते हैं
कुछ घोसलों में सजाये जाते हैं
कुछ कदमों तले रौंदे जाते हैं
...
एक ही विषय पर इस मन के
अलग-अलग से ख्‍यालों की दुनिया
हर बार घूमना, ठिठकना पल भर
कभी इस दिशा से उस दिशा तक जाना
समेटने को सार
चंचल, चपल हो जाना कभी अधीर
उसकी अधीरता ने कई बार
तोड़े हैं नियम जाने कितने ही
जिनकी माफ़ी नहीं होती थी कोई
उसके लिए भी वह अडिगता की धूनी रमा
एक अलख जगा लेता था हर बार
.....
अडिगता का सार
मन को पकड़ना इसकी चंचलता के परे
सफलता को नये सिरे से पकड़ना
सकारात्‍मकता की पहली सीढ़ी है
जो हमेशा ही जीवन में
एक नया दृष्टिकोण देता है
और विचारों को ओजस्विता मिलती है
अडिगता से सफलता की ओर !!!!

सोमवार, 25 मार्च 2013

इस होली किस रंग !!!














पुडि़या में रखे रंग
माँ की धरोहर हुआ करते थे,
कितने भी नये रंग  खरीदे जाते
पर माँ का सारा स्‍नेह
उस पुडि़या पर ही टिका रहता
हम हँसते क्‍या माँssss
तो माँ भी हँस देती साथ ही पर !!!!
पुडि़या का रंग सारा हम पर उड़ेल दिया जाता
हम भी भावनाओं के आँगन में
जमकर मस्‍ती करते !!!!
...
वहीं हरा रंग जरा शरारती हो जाता,
उसे देख मन मचलता
और पिचकारी जो भरी जाती
तो सब उस हरे रंग में रंग ही जाते
....
रंगों की टोली जब अपने रंग में रंगी हो
जो इनका उधम देखना हो तो,
नारंगी रंग मत भूलना
माँ कहती है यह वचनबद्धता का प्रतीक होता है 
औ' लाल रंग स्‍नेह का
तो कहिये इस होली किस रंग !!!
रंगना चाहते हैं आप ??

मंगलवार, 19 मार्च 2013

जीवनदान देती है, देती रहेगी !!!





















जिन्‍दगी को बेखौफ़ होकर जीने का
अपना ही मजा है
कुछ लोग मेरा अस्तित्‍व खत्‍म कर
भले ही यह कहने की मंशा मन में पाले हुये हों
कभी थी, कभी रही होगी, कभी रहना चाहती थी नारी
उनसे मैं पूरे बुलन्‍द हौसलों के साथ
कहना चाहती हूँ, मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूँगी ....
न्‍याय की अदालत में गीता की तरह
जिसकी शपथ लेकर लड़ी जाती है
हर लड़ाई - सत्‍य की,
जहाँ हर पराज़य को विजय में बदला जाता है
....
गीता धर्म की अमूल्‍य निधि है जैसे वैसे ही
मेरा अस्तित्‍व नदियों में गंगा है,
मर्यादित आचरण में आज भी मुझे
सीता की उपमा से सम्‍मानित किया जाता है
धीरता में मुझे सावित्री भी कहा है
तो  हर आलोचना से परे  वो मैं ही थी जो
शक्ति का रूप कहलाई दुर्गा के अवतार में
....
मुझे परखा गया जब भी कसौटियों पर,
हर बार तप कर कुंदन हुई मैं
फिर भी मेरा कुंदन होना
किसी को रास नहीं आता
हर बार वही कांट-छांट
वही परख मेरी हर बार की जाती,
मैं जलकर भस्‍म होती
तो औषधि बन जाती
यही है मेरे अस्तित्‍व की
जिजीविषा जो खुद मिटकर भी
औरों को जीवनदान देती है, देती रहेगी !!!
मैं पूरे बुलन्‍द हौसलों के साथ फिर से
कहना चाहती हूँ, मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूँगी ....

गुरुवार, 14 मार्च 2013

उम्‍मीदों के जुगनु !!!!


















जिद् की मुट्ठी में हर बार वो
उम्‍मीदों के जुगनु लिये
अंधेरे को चीरता चला जाता
कभी जब दिल घबराया तो
प्रयास की लाठी टेकी,
लड़खड़ाते कदमों से उसने,
जिम्‍मेदार हो हथेलियाँ तभी
प्रदर्शित करती शक्ति को
इस शक्ति की आस्‍था से
थम जाती कदमों की लड़खडा‍हट
निर्भय हो कदम से कदम
साथ हो लेते जिंदगी के !!!
....
जिंदगी को जीने के लिये
जज्‍बा खुद रास्‍ते तैयार करता,
दिशायें मौन ही निमंत्रण देतीं
तभी तो पगड़डियों से
कच्‍चे रास्‍ते, कच्‍चे रास्‍तों से
जुड़ती सड़कें जिनसे बाते करती हवा
फिर भी परवाह कहाँ होती
किसी के साथ होने या न होने की
एक हौसला साथ जो चल रहा था
परवाह तो बस तपती धूप में
बर्फ बन पिघल रही होती !!!!

गुरुवार, 7 मार्च 2013

यादों के साथ इनकी बनती बड़ी है :)
















कई बार जिंदगी पर
उदासियों का हक भी बनता है
खुशियों के मेले में भी कोई
अकेला होता है जब
बस मन के साथ होता है
एक कोना उदासी का
...
उस कोने में सिमटी होती है
कुछ गठरियाँ यादों की
जिनकी गिरह पर जमी धूल
चाहती है झड़ जाना
अपनत्‍व के स्‍पर्श से
निकलना चाहती हैं बाहर
कुछ बेचैन सी यादें
.....
जिन्‍हें समेटकर यूँ ही कभी
लगा दी थीं गठान
वे सबकी सब बगावत पर
उतर आईं हैं
जिन्‍होंने दे दिया है आज धरना
मन के कोने में
बस इसी वजह से बाहर की भीड़ भी
अकेले होने पर मजबूर करती हैं तो,
ये उदासियाँ भी जिद पर अड़ी हैं
यादों के साथ इनकी बनती बड़ी है :)

सोमवार, 4 मार्च 2013

जाने कैसे अपाहिज़ हो गया ?????

उसे पोलियो हो गया !
हर बार दिये मैने उसे
विश्‍वास की उंगलियों से
दो बूँद जिंदगी की तरह
संस्‍कार समय-समय पर
फिर भी जाने कैसे ??
अपाहिज़ हो गया उसका मस्तिष्‍क  !!!!!!!

....
कभी विचार पूर्वक उसने
रखे नहीं दो कदम
जब भी निर्णय लिया एकांगी
जब भी जिद् पे अड़ा
अपने ही मन की उसने की सदा
कभी सामने वाले की
भावनाओं को समझा ही नहीं
तुम ही कहो
आखिर हुआ न वह पोलियोग्रस्‍त
अपनी मैं पर उछलता हुआ
....
भरी भीड़ में भी अकेला
कोई साथ नहीं चलना चाहता उसके
या वही होना चाहता है
लक़ीर का फ़कीर
तभी तो मैं के गुमान में
अपाहिज़ मस्तिष्‍क लिये
सच सुनते ही बौखला उठता है
और मैं सोचती रही
संस्‍कारों के नियमित दिये जाने पर भी
यह कैसा दुष्‍परिणाम !!!

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

बस तुम्‍हारी हँसी !!!

कुछ कीमती था तो मेरे लिए
बस तुम्‍हारी हँसी,
ना आँसुओं की कीमत मत पूछना
ये तो अनमोल हैं
नहीं चाहता मैं तुम इन्‍हें
किसी भी कीमत पर यूँ बह जाने दो
...
कुछ शब्‍द मुहब्‍बत की किताब में
बहुत ही कीमती होते हैं
जिनके होने से कभी लगता ही नहीं
कि जिन्‍दगी अभावों में है
शर्त यह है कि
जिन्‍दगी का हर वर्का
इस किताब में सजि़ल्‍द हो
...
जब भी पढ़ा हर बार मुझे जिन्‍दगी
बस मुस्‍कराती सी लगी
तब मैने जाना
इसकी अहमियत को
बस तभी से
हर लम्‍हा इसके नाम कर दिया
...

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

यक़ीन के रास्‍ते में !!!!

दबी जुबान का सच  सुनकर तुम्‍हें
यक़ीन होता है क्‍या ???
फिर आखिर उस सच के मायने
बदल ही गये न !
शक़ का घेरा कसा पर यह कसाव
किस पर हुआ कैसे ह‍ुआ
हर बात बेमानी हुई
सच आज भी अपनी जगह अटल है
पर दबी जुबान का सच
शक़ के घेरे में ही रहता है
यक़ीन के रास्‍ते में
जब भी दोहरापन आता है
सच दूर खड़ा होकर उसकी इस हरक़त पर
उसे ही तिरस्‍कृत करता है
...
जाने क्‍यूँ लोग सच की भी परतें उतारने लगते हैं
छीलते जाते हैं - छीलते जाते है इतना
जब तक सच के नीचे दब न जायें
भूल जाते हैं परत-दर-परत सच का वज़न
और बढ़ता जाएगा फिर वही सच
सवालों के कटघरे में अपनी परतों के साथ
सुबूत बन जाएगा उसके खिलाफ़
विश्‍वास का कत्‍ल किया, सच को गुनहगार बनाया
फिर भी जी नहीं माना तो खुद को
बेक़सूर बता निर्दोष होने की दुहाई दी
और समर्पण कर दिया !!!

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

छला गया व्‍यक्तित्‍व !!!!

मेरी चुप्‍पी से यदि कोई आहत है
तो वो है मेरा अन्‍तर्मन
जो कहना चाहता है गलत को गलत
बुरे को बुरा पर यहाँ
सच का साथ देने पर कहा जाता है
आक्रोशित मत हो, वक्‍त आने दो
वक्‍़त तो ये आया और वो गया
और छला गया व्‍यक्तित्‍व !!!!
...
धैर्य की परिभाषा यदि
खामोशी अख्तियार करना है तो
इस परिभाषा को बदला जाना चाहिये
अन्‍याय के खिलाफ आवाज उठाना
यदि किसी वर्ग विशेष अथवा किसी की
व्‍यक्तिगत भावनाओं को ठेस पहुँचाना है तो
इसकी शुरूआत कहाँ से हुई
किससे हुई एक नज़र वहाँ भी
उठनी चाहिये न कि शांति का पाठ पढ़ाकर
उन भावनाओं को एक नई गल्‍ती की प्रतीक्षा में
मौन हो कतारबद्ध कर देना चाहिये  !!!!
....

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

बिना किसी को खबर किये !!!!!!

रूहों को लिबास बदलना
खूब भाता है
बिना किसी गम के हँसते-हँसते
बदल लेती हैं ये बिना किसी को खबर किये
लिबास अपना
...
फिर रोकर ये बताना चाहती हैं दुनिया को
इसमें हमारी कोई रज़ा न थी
हम तो कठपुतलियाँ हैं बस
जो भी ये करिश्‍में करता है
वो ऊपरवाला है  !!!

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

आदरणीय रश्मि प्रभा जी का जन्‍मदिन .... !!!!

कल तो शुभकामनाओं से भरा होगा, ही पर उस आने वाले खुशनुमा कल की आहट से आज की साँझ भी कुछ उल्‍लासित होने को आतुर है, आदरणीय रश्मि प्रभा जी का जन्‍मदिन और वसंत ऋतु  दोनो का अनोखा संगम है एक ओर जहां विद्या की देवी सरस्वती की पूजा धूमधाम से की जाती है वहीं उन्‍होंने भी माँ सरस्‍वती के आँगन में जन्‍म लिया 13 फरवरी (गुरूवार) को और वरदान स्‍वरूप पाई माँ सरस्‍वती की असीम कृपा... कई बार लगता है ऐसे जैसे वसंत से अलग नहीं है उनका व्‍यक्तित्‍व, विरासत में  मिला लेखन तो सरल मन में स्‍नेह, सबको साथ लेकर चलने का भाव, मन कभी किसी बात से आहत हो भी यदि तो भी वे उससे परे सहजता लिये एक मुस्‍कान के साथ हर परीस्थिति पर भारी पड़तीं, इसी क्रम में शब्‍दों के साथ ताल-मेल, उनसे घनिष्‍ठ होती उनकी कलम हर रोज़ विचारों का आबोदाना तलाशती वे हर अपरीचित शख्‍स से परीचित होने का जज्‍बा लिये शब्‍दों के शब्‍दों से रिश्‍ते बनाते हुये वे चढ़ती हैं नित नये सोपान, जहाँ हर नज़र बस हैरान सी  मन में सम्‍मान लिये नतमस्‍तक हो जाती है ....तो वहीं उनकी ओजस्‍वी कलम की सहजता इन शब्‍दों में भी .... कवि पन्त के दिए नाम रश्मि से मैं भावों की प्रकृति से जुड़ी . बड़ी सहजता से कवि पन्त ने मुझे सूर्य से जोड़ दिया और अपने आशीर्वचनों की पाण्डुलिपि मुझे दी - जिसके हर पृष्ठ मेरे लिए द्वार खोलते गए . रश्मि - यानि सूर्य की किरणें एक जगह नहीं होतीं और निःसंदेह उसकी प्रखरता तब जानी जाती है , जब वह धरती से जुड़ती है . मैंने धरती से ऊपर अपने पाँव कभी नहीं किये ..... और प्रकृति के हर कणों से दोस्ती की . मेरे शब्द भावों ने मुझे रक्त से परे कई रिश्ते दिए , और यह मेरी कलम का सम्मान ही नहीं , मेरी माँ , मेरे पापा .... मेरे बच्चों का भी सम्मान है और मेरा सौभाग्य कि मैं यह सम्मान दे सकी.... तो आज .. इस खास दिन पर एक गुल्‍लक अपने साथ लाई हूँ भावनाओं की, जिसमें डालना चाहती हूँ कुछ अंश स्‍नेह का, जिसमें आज सब बारी - बारी डालेंगे अपनी दुआयें, जिनकी खनक से आने वाला हर लम्‍हा दुआ बन उनकी झोली में खुशियों संग समाना चाहता है ....

कुछ पल चंदन होना चाहते हैं
महकना चाहते हैं
तुम्‍हारे आँगन में हवाओं के संग
कुछ पल दुआओं के
तुम्‍हारे लिये इस संदेश के साथ
तुम्‍हारी हथेलियों तक
पहुँचना चाहते हैं
जब तक विश्‍वास रहे दुनिया में
तुम मुस्‍कराओ
........
आज के दिन
हर लम्‍हे को मैने बरसों बरस की
खुशियाँ सौंपी हैं
हर लम्‍हा चला है मेरी चौखट से
तुम्‍हारे घर के आंगन के लिये
ले‍कर जन्‍मदिन की अनंत शुभकामनाएँ !!!

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

वक्‍़त की धूप में ... !!!

कभी अपनी जिद को
खबर करना मेरी जिद की
कुछ तसल्‍ली हो जाएगी उसको
कोई तो उस जैसा है
....
पलकों के साये में
जब भी अश्‍कों को पनाह मिली,
मत पूछ मुहब्‍बत कितना तड़पी
यूँ बूँद - बूँद बहते हुये
...
प्‍यास जागती है
बड़ी ही शिद्दत से हर रिश्‍ते में
कभी वक्‍़त की धूप में
जैसे छांव मिले
चलते-चलते
......

मंगलवार, 22 जनवरी 2013

श्रद्धा कब तक आखिर निष्‍ठावान रहेगी ???

मौन कब तलक रहें शब्‍द
स्‍वरों की साधना  में तत्‍पर  रहते
हिफ़ाजत करते स्‍वाभिमान की
अंतस की पीड़ा को मुखर होते देख
नियमों की दहलीज़ लांघी है जब भी
विश्‍वास को दरकिनार कर
शब्‍द चीखा है अपनी पूरी ताकत से  !!!
...
पर कहाँ सुनता है कोई किसी की
सबके पास अपनी-अपनी
जोर आजमाईश के शब्‍द हैं
अपनी-अपनी मतलबपरस्‍ती है
अवसर भी अब सिर्फ बहाना ढूँढने लगे हैं
कब किसी के काम आना है
कब किसी के हाथों से फिसल जाना है
चालबाज़ी जब फितरत ही हो जाये तो
कहिये श्रद्धा कब तक आखिर निष्‍ठावान रहेगी ???
आम आदमी की
  ....
वे कहते हैं ऐसे में मौन धारण कर लो
पर मौन रहना इतना सहज़ है क्‍या
मौन के क्षणों में जब भी रहे
अंतस पर पड़े जख्‍मों की पपडि़यां
बिना खरोंचे ही उधड़ने लगीं
रक्‍त का रिसाव होता एक आह ! निकल ही जाती है
...
सच तो यह है बिना प्रयास कुछ भी संभव नहीं ..
ना ही सफल वक्‍ता होना ना ही  मौन रह पाना
बस तुम प्रयासों की उँगली मत छोड़ना
सफलता तुम्‍हारी होगी !!!

बुधवार, 16 जनवरी 2013

वो क़ायम रखता मेरे जीने की वज़ह !!!

सब्र के बाँध में
हिचकियों के पहरे थे
हर चेहरे के पीछे जाने कितने चेहरे थे
सब कहते हैं
सब्र का फल मीठा होता है
इसकी मिठास से तो कभी रू-ब-रू  न हुई
फ़कत मजबूत होते गये
हर बार मेरे इरादे
और एक बाँध बन गया सब्र का
जिसके नीचे बहती रही दर्द की नदी
चुपके - चुपके
....
हारना कभी हालातों से सीखा ही नहीं
हौसले की उँगली
उम्‍मीद की किरण फिर वही पग‍डंडियाँ
जिन पर सरपट दौड़ती जिंदगी
कभी संकल्‍पों के धागे
कभी विकल्‍पों के सोपान
चढ़ना और उतरना
पाना और खोना
हर हाल में मुस्‍काना
...
कभी अपने ही मेरे बनाते दीवार
मुझे नजरबंद करने के लिए
किस तरह जिंदा रहेगी देखे तो
उफ्फ !!! कैसे हैं ये मेरे अपने
मेरे गम पर हँसते
मेरी खुशियों पर मुँह बिसूरते
पर वो है न ऊपरवाला
मेहरबान जो इतने गमों के बीच भी
मेरे होठों पर तबस्‍सुम ले ही आता
मैं सज़दे में होती उसके
वो क़ायम रखता मेरे जीने की वज़ह
... सामने वाले का मुँह खुला का खुला रह जाता
ये आखिर बला क्‍या है :)

सोमवार, 14 जनवरी 2013

ये निर्णय ... शून्‍य होकर भी अडिग कैसे है ???














निर्णय शून्‍य है
हर तरफ एक रिक्‍तता का अहसास है
सन्‍नाटा भयाक्रांत अपने आप से
तोहमतो का बाज़ार गर्म है
कुछ तोहमतें लटकी हैं सलीब पर
बहते लहू के साथ
बड़ा ही भयावह दृश्‍य है
अंतर्रात्‍मा चीत्‍कार करती है
हर बार इक नई कसौटी पर
कब तक आखिर कब तक
वह अपने अधिकारों के लिये
आहुति देगी अपने स्‍वाभिमान की
...
निर्णय .. आखिर कब लिया जाएगा ???
या किया जाएगा ...
ये सवाल आज भी अटल है
हर शख्‍़स के कांधे पर
हर माँ की आँखो में,  हर बेटी की जुबान पर
तारीख गवाह होती है हर बार
कानून की नज़र में
जुर्म बड़े ही शातिर तरीके
बड़े ही सुनियोजित ढंग से
अंजाम दे दिया जाता है
फरियादी सुनवाई के लिये
आत्‍मा की पैरवी करते-करते
एक दिन खुद-ब-खुद तारीख बन जाता है !!!
...
निर्णय .. खुद कैद में है जब
कहो कैसे वह जिरह करे अपनी आजादी की
मुझे बुलंदी का ताज़ पहनाओ
हर सोई हुई आत्‍मा को जगाओ
व्‍यथित है हर भाव मन का
पर फिर सोचती हूँ
ये निर्णय ... शून्‍य होकर भी
अडिग कैसे है
जरूर रूह इसकी भी छटपटा रही होगी
तभी तो इसने अपने जैसी रूहों को
एक साथ कर ...
एक नाम दिया है संकल्‍प का
...

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

जीना है तो मरना सीखो !!!

मन का शोक विलाप के आंसुओं से
खत्‍म नहीं हुआ है
संवेदनाएं प्रलाप करती हुई
खोज रही हैं उस एक-एक सूत्र को
जो मन की इस अवस्‍था  की वज़ह बने
आहत ह्रदय चाहता है
जी भरकर चीखना कई बार
इस नकारा ढपली पर जिसे हर कोई
आता है और बजा कर चला जाता है
अपनी ताल और सुर के हिसाब से
....
जीना है तो मरना सीखो !!!
डरना नहीं ये बात पूरे साहस के  साथ
कहते हुये निर्भया हर सोते हुये को जगा गई
दस्‍तक तो उसने दे दी है हर मन के द्वार पर
यह हमारे ऊपर है हम साथ देते हैं
या फिर अपने कानों को बंद कर
अनसुना करते हुए
खामोशी अख्तियार कर लेते हैं !!!

बुधवार, 9 जनवरी 2013

फा़यदे का सौदा !!!

कुछ खुशियां खरीदते वक्‍़त
मुझे तुम्‍हारी याद आई
हैरान क्‍यूँ हो इतना
आज़ हर चीज़ की कीमत
अदा करनी होती है
बस इस लिए निकल गया
यह सच भी
....
कीमत अदा करते वक्‍़त
मैने सबसे पहले
तुम्‍हारी हँसी के बदले में
आंसू लिये
तब ये खिलखिलाती हँसी
तुम्‍हारे चेहरे पर देख सकी
ना शुक्रिया मत कहना
तुम्‍हें पता है न तुम्‍हें हँसते देख
मेरे चेहरे पर मुस्‍कान
खुद-ब-खुद आ जाती है
कहो .. हुआ न ये फा़यदे का सौदा !!!
...
माँ कहा करती है हमेशा से
किसी के लिये कुछ अच्‍छा करते वक्‍़त
खुद को थोड़ा कष्‍ट हो भी जाये तो
इसमें कुछ बुरा नहीं होता :)
...
 

शनिवार, 5 जनवरी 2013

जिसकी जैसी नज़र ... !!!














शब्‍दो का अलाव
मत जलाओ इनकी जलन से
तुम्‍हारे मन की तपिश
शीतलता में नहीं बदलेगी
जो शब्‍द अधजले हैं
उनके धुंए से
दम घुट जाएगा
भावनाओं को आंच पर
जिस किसी ने भी रखा है
उसकी तपिश से  वह भी
सुलग गया है भीतर ही भीतर
इन भावनाओं की
समझ तो है न तुम्‍हें
ये जितना दुलार देती हैं 
जितना समर्पण का भाव रखती हैं
हृदय में उतनी ही निष्‍ठुर भी हो जाती हैं
इनका निष्‍ठुर होना मतलब
पूरी तरह तुमसे मुँह फेर लेना
....
भावनाओं को जानना है तो
जिन्‍दगी से पूछना
बड़ा ही प्‍यारा रिश्‍ता होता है
इनका जिन्‍दगी के साथ
ये जन्‍म से ही आ जाती हैं साथ में
फिर मरते दम तक
हमारी होकर रह जाती हैं
हमारे दुख में दुखी  तो
हमारी खुशी में खुश रहना
इनकी फि़तरत होती है 
...
इनका समर्पण रूह तय करती है
प़ाक लिब़ास में लिपटी
भावनाएं जैसे मां के आंचल में
कोई अबोध शिशु
बस उतनी ही अबोध होती हैं  ये भी
जिसकी जैसी नज़र होती है
बिल्‍कुल वैसे ही दिखती हैं ये ... !!!

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

कुछ रिश्‍ते ..... (9)

कुछ रिश्‍ते
टूटूते नहीं बल्कि छूट जाते हैं,
हालातों के साये में
खौफ़ज़दा होकर
.......
कुछ रिश्‍ते
ए‍क स्‍तंभ होते हैं
जिनकी पना़ह में हर
रिश्‍ता साँस लेता है
.....
कुछ रिश्‍ते
गुलाब से होते हैं
जिसकी सुगंध सबके लिये
एक समान होती है
....
कुछ रिश्‍ते
बुनियाद होते हैं ऐसी
जिन्‍हें हर तूफ़ान में
खुद को अडिग
रखना होता है
.....
कुछ रिश्‍ते
जितेन्‍द्रीय होते हैं
जो जीत लेते हैं
सबका विश्‍वास
....

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....