सोमवार, 1 नवंबर 2010

परख लूं ....





फासले आ गये,

मुहब्‍बत में कैसे,

जरूर

इक-दूसरे से

तुमने कुछ

छिपाया होगा …!!

भाग रही थी अपने आप से,

छुपा रही थी वह

खुद को

सवालों से

जिनका जवाब उसे पता था

पर वह बताकर

अपमान नहीं करना चाहती थी

अपने विश्‍वास का …!!

आंखे आंसुओं से सजल

हो उठती थीं जब

कोई कहता था

परख लूं तेरी प्रीत को …!!

29 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत संवेदनशील..... मन के सच्चे भावों की प्रस्तुति.....

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  2. रश्मि जी, एवं आप सबका बहुत-बहुत आभार ।

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  3. बेहद खूबसूरत एहसासों से भरा ,एक एक पंक्ति कबीले तारीफ है.

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  4. ओह! प्रीत का ये कैसा इम्तिहान्।

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  5. संवेदनशील अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।

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  6. प्रेम में ऐसा कोई भी क्षण भारी लगता है... समझ काम करना बंद कर देती है... बहुत ही प्यारी रचना...

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  7. बहुत संवेदना से भरे एहसास ...सुन्दर अभिव्यक्ति

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  8. प्रीत भी कोई परखने की चीज़ है ... यह तो त्याग और समर्पण है!

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  9. बहुत सुन्दर रचना!
    मनोभावों को बहुत ही ईमानदारी से प्रस्तुत किया है आपने!

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  10. संवेदना है बहुत इस रचना में .. सच है इंसान भागता है अपने आप से ही ... कई ऐसे लम्हे आते हैं इस जीवन में ...

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  11. बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति !

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  12. सच कहा तभी फांसले आते है जब कुछ छुपाव शुरू हो जाते हैं.

    सुंदर अभिव्यक्ति.

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  13. परखना तो होगा ही
    भावपूर्ण रचना

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  14. आप को सपरिवार दिवाली की शुभ कामनाएं.

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  15. प्रेम में विश्वास जरुरी है ....
    संदेह का कोई अंत नहीं ......

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  16. Bahut sunder shabd
    Dil ki bhawnayo ko bahut khoobsurti se sajya hai aapne.....

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  17. कई पुराने पोस्ट भी पढ़े। अच्छा काम हो रहा है आपके ब्लॉग पर। फिर लौटूंगा। जारी रखें।

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  18. बहुत सुन्दर भावनात्मक रचना ... प्रीत परखने की नहीं महसूस करने के लिए है

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  19. Bahut achha laga aapka blog..
    ..sach mein preet ko parakhna kisi vishwasghat se kam nahi..
    Sundar manbhawon kee prastuti...aabhar

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  20. बहुत भावुक अनुभूति है
    प्रेम मे फांसले तभी बढते है जब मन मे बात छुपायी जाने लगें

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  21. सच ही कहा है पर अगर सच्ची प्रीत है तो परखने कि क्या जरुरत आँखों में ही दिख जाती है

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  22. pyar me kabhi kuch bhi nahi chupana chahiye
    nahi pyar crash ho jara hai

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  23. संगदिल है यार मेरा मुझको भी खबर है

    फिर भी यार पे ख़ुशी अपनी लुटा देता हूँ .....

    बहुत खूब .....!!

    बहुत अच्छी नज़्म है सदा जी ....वाह .....!!

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....