मुश्किल भरे रास्तों से गुज़र कर
दिल और दिमाग के कुछ हिस्सों में
गज़ब की ताकत आ जाती है
जंग लगे ख्याल भी
बड़ी ही फुर्ती से
अपना नुकीला पन दर्शा देते हैं
चोट खाया हिस्सा
जख्मों के निशान पर
एक पपड़ी मोटी सी धैर्य की डाल
बेपरवाह हो जाता है !!
दिल और दिमाग के कुछ हिस्सों में
गज़ब की ताकत आ जाती है
जंग लगे ख्याल भी
बड़ी ही फुर्ती से
अपना नुकीला पन दर्शा देते हैं
चोट खाया हिस्सा
जख्मों के निशान पर
एक पपड़ी मोटी सी धैर्य की डाल
बेपरवाह हो जाता है !!
...
मनमाने सुखों के लक्षागृह
किसके हुए हैं
निकलना होगा विजेता बनकर
तब ही तो धुन के पक्के लोग
इस मजबूती में ही जीते हैं
वर्ना उनके पास जीने की कोई वजह
शेष रहती ही नहीं है
माँ कहती है कुछ बातें वक़्त पर छोड़ दो
तो मन को बड़ा सुकून मिलता है
ये सच है कि कर्तव्य की सीढि़याँ
बड़ी ही ऊँची और घुमावदार होती हैं
चढ़ते चलो तो मंजिल मिल ही जाती है !!
मनमाने सुखों के लक्षागृह
किसके हुए हैं
निकलना होगा विजेता बनकर
तब ही तो धुन के पक्के लोग
इस मजबूती में ही जीते हैं
वर्ना उनके पास जीने की कोई वजह
शेष रहती ही नहीं है
माँ कहती है कुछ बातें वक़्त पर छोड़ दो
तो मन को बड़ा सुकून मिलता है
ये सच है कि कर्तव्य की सीढि़याँ
बड़ी ही ऊँची और घुमावदार होती हैं
चढ़ते चलो तो मंजिल मिल ही जाती है !!
wah ! bahut khoob...zindagi jeenay ki seekh deti sundar rachna
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती अच्छी रचना ..
जवाब देंहटाएंये हुआ न जज़्बा...............
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह इस कविता को पढ़ा...दिन अच्छा बीतेगा.
सस्नेह
अनु
बहुत सुंदर...... और मीनिंगफुल पंक्तिया .....
जवाब देंहटाएंज़ज्बे को सलाम
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया-
बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (10-07-2013) के .. !! निकलना होगा विजेता बनकर ......रिश्तो के मकडजाल से ....!१३०२ ,बुधवारीय चर्चा मंच अंक-१३०२ पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
आपकी रचना कल बुधवार [10-07-2013] को
जवाब देंहटाएंब्लॉग प्रसारण पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
सादर
सरिता भाटिया
सही कहा मुश्किलें अक्सर हमे और मजबूत बना देती हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए आभार!
वाह ..जानदार
जवाब देंहटाएंवाकई कर्तव्य की सीढियां बडी दुरूह ही होती हैं पर हौंसला बनाए रखना जरूरी है, बहुत ही सार्थक रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ये सच है कि कर्तव्य की सीढि़याँ
जवाब देंहटाएंबड़ी ही ऊँची और घुमावदार होती हैं
चढ़ते चलो तो मंजिल मिल ही जाती है !!
सटीक बात .... जिनके पास हौसला होता है उन्हें मंज़िल मिल ही जाती है ...
ये सच है कि कर्तव्य की सीढि़याँ
जवाब देंहटाएंबड़ी ही ऊँची और घुमावदार होती हैं
चढ़ते चलो तो मंजिल मिल ही जाती है !!
sarthak sundar abhivyakti ....
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन फिर भी दिल है हिंदुस्तानी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंमन को संबल देती रचना ...
जवाब देंहटाएंjajba ho to manjil milegi hi.....:)
जवाब देंहटाएंbehtareen...
आपने लिखा....
जवाब देंहटाएंहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए आज प्रकाशन के बाद भी..... बुधवार 10/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की गई है.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
हारिये न हिम्मत बिसारिए न राम !
जवाब देंहटाएंमनमाने सुखों के लक्षागृह
जवाब देंहटाएंकिसके हुए हैं
निकलना होगा विजेता बनकर
तब ही तो धुन के पक्के लोग
इस मजबूती में ही जीते हैं
बहुत सुन्दर बात
मन में प्रेरणा जगाती सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंये सच है कि कर्तव्य की सीढि़याँ
जवाब देंहटाएंबड़ी ही ऊँची और घुमावदार होती हैं
चढ़ते चलो तो मंजिल मिल ही जाती है !!
...बहुत सार्थक और प्रेरक रचना...
मनमाने सुखों के लक्षागृह
जवाब देंहटाएंकिसके हुए हैं
निकलना होगा विजेता बनकर,सकारात्मक भावों को दर्शाती ,प्रेरित करती रचना ...
बहुत सुंदर दी.....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना और सुंदर शीर्षक :-)
दृढ़ हो मन की सारी बातें,
जवाब देंहटाएंदृढतर दिन हों, दृढ़तम रातें।
चलते रहने से मंजिल मिल ही जाती है ... जितना भी घुमावदार रास्ता क्यों न हो ...
जवाब देंहटाएंदृढ़ता का भाव लिए लाजवाब रचना ...
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
मनमाने सुखों के लक्षागृह
जवाब देंहटाएंकिसके हुए हैं
निकलना होगा विजेता बनकर
तब ही तो धुन के पक्के लोग
इस मजबूती में ही जीते हैं
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति
सच है! चलते रहना अपना काम है... निर्णय वक़्त ही करता है...
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
बिलकुल ठीक "जीवन चलने का काम चलते रही सुबह शाम"...तभी मंजिल मिल सकती है जैसे वो गीत है न "एक रास्ता है ज़िंदगी जो थम गए तो कुछ नहीं"...
जवाब देंहटाएंजंग लगे ख्याल भी
जवाब देंहटाएंबड़ी ही फुर्ती से
अपना नुकीला पन दर्शा देते हैं
बहुत सुंदर ...अब दूसरी पुस्तक आ जानी चाहिए .....:))
कहो तो किसी प्रकाशक से बात करूँ ......
जवाब देंहटाएंमनमाने सुखों के लक्षागृह
किसके हुए हैं
निकलना होगा विजेता बनकर
तब ही तो धुन के पक्के लोग
इस मजबूती में ही जीते हैं
वर्ना उनके पास जीने की कोई वजह
शेष रहती ही नहीं है --------
अदभुत भाव
उत्कृष्ट
सादर
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंकर्तव्य की सीढि़याँ
जवाब देंहटाएंबड़ी ही ऊँची और घुमावदार होती हैं
...बहुत खूब।