शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

ये तर्पण मेरा ....!!!











बंद पलकों में
आपकी स्‍नेहमयी
छाया उभरती है
समर्पित है इस पितृपक्ष में
मेरी हथेलियों का जल
आपको मां - पापा
सजल नयनों से मैने
आपकी पसन्‍द का
भोजन पकाया है
जिसका कुछ अंश
गाय ने कुछ कौवे ने
कुछ श्रेष्‍ठ जन ने पाया है ....
ये तर्पण मेरा
आपके नाम का
समर्पित है इस श्राद्ध में
श्रद्धा से विश्‍वास से
आप जहां भी होंगे
इसे ग्रहण करेंगे
भावनाएं किसकी हैं ये
कर्म किसने किया
बेटी को ही तो
आप बेटा कहते आए हैं
मत सोचना ऐसा कुछ पल भर भी
आशीष देना बस इतनी
मैं सदा रहूं ऐसे ही ...
मन वचन कर्म की
विरासत लेकर ....!!!

बुधवार, 21 सितंबर 2011

आत्‍मा में अनन्‍त शक्ति.......






प्रत्‍येक आत्‍मा में अनन्‍त शक्ति

विद्यमान रहती है

उसके रूप अलग होते हैं

किसी को

उसी आत्‍मा से श्रद्धा उपजती है

किसी को वेद कंठस्‍थ होते हैं

कोई हो जाता है

ज्ञान का सागर कोई

रह जाता अल्‍पज्ञानी

फिर इनमें से ही आगे निकल

कोई निरा अभिमानी .....

कोई हो जाता लोभी इतना

रिश्‍तों का बलिदान कर देता

कोई दानी इतना बड़ा

खुद की खुशियां हंस के‍ लुटा देता

कोई प्‍यार के लिये ही जीता उम्र भर

कोई नफरत का कारोबार फैलाता .......

आत्‍मचिंतन ....मनन करना

संदेश देना जग में निर्मल विचारों का

हर आत्‍मा का पवित्र होना

परमात्‍मा की दया पर

निर्भर होता है संस्‍कारों की छाया तले

फलती फूलती कोमल भावनाएं

प्रेम का सिंचन करती आत्‍मा जब

जीवन का उद्देश्‍य पूर्ण हो जाता

आत्‍मा में अनन्‍त शक्ति.......!!!!

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

थोड़ी सी खामोशी ......!!!











मेरी
खामोशी
तुम्‍हारी खामोशी से
जब टकराती है
तो कभी अहम तुम्‍हारा
कभी मेरा उसे
बढ़ा देते हैं ....
तुम्‍हारी खामोशी का
हर लफ्ज
मेरे कानों में उतर जाता है
बिन कहे
कैसे हैरां हो जाती हूं
मन की इस समझ पर
कई बार
फिर मुस्‍करा देती हूं
ना चाहकर भी
ये प्‍यार भी जाने
कैसे खेल खेलता है
जिसे चाहता है बेइंतहा
उससे रूठता है झगड़ता है
छोटी-छोटी बात पर
कभी खामोश रहकर चाहता है
कोई उससे बोलने की पहल करे
और वो अपनी
शिकायतों का पिटारा
खोल दे
फिर कभी मन की समझ को
नजरअंदाज कर
ओढ़ लेता है खामोशी
सिर्फ खुद से
बात करने के लिए
कर लेता कैद अपने आपको
रह जाते हैं
जहां सिर्फ वो और सवाल ?
साथ होती है थोड़ी सी खामोशी ......!!!

बुधवार, 14 सितंबर 2011

हिन्‍दी दिवस के नाम पर ...!!!











कहती
है जब हिन्‍दी
अपनी व्‍यथा
इन शब्‍दों में
मैं मातृ भाषा
गौरव से ऊंचा
मेरा मस्‍तक किया
राष्‍ट्र भाषा का
दर्जा दिया ...
14 सितम्‍बर को
मेरा सम्‍मान करना
मुझको वर्ष में
पूरा एक दिन
समर्पित करना
मेरे नाम पर
पूरे पखवाड़े
हिन्‍दी दिवस के नाम पर
सरकारी कार्यालयों में
साहित्यिक कार्यक्रम करना
शोभा बन जाती मैं
बड़े-बड़े बैनरों की ...
यह दिवस विशेष होता
जैसे कोई उत्‍सव हो विदाई का ...!
कोई
कविताओं में मुझे
जीवित रखता
आलेखों में जिक्र करता
मेरे जीवन क्रम का
मैं मौन
पृष्‍ठों पर अंकित वर्णों में
खोजती अपना अस्तित्‍व
फिर फाइलों में
कैद होकर
सहेजकर रख दी जाती
अलमारियों में
एक वर्ष की लम्‍बी
प्रतीक्षा के लिए ...!!
बीते जाएंगे पल ये
फिर हिन्‍दी दिवस आएगा
वर्ष बदला जाएगा
और मां सरस्‍वती को
माल्‍यार्पण कर
हिन्‍दी पखवाड़े का
आयोजन किया जाएगा ..... !!!

सोमवार, 12 सितंबर 2011

आस्‍था तुम्‍हारी ...!!!







आस्‍था

तुम्‍हारी किसके साथ है

तुम किसके आगे नतमस्‍तक

होना चाहते हो

यह तुम्‍हें तय करना है

दिल से

पूछना फिर तय करना .... ।

मानव में आपसी द्वंद

जो विचारों का

टकराव पैदा करता है

ईर्ष्‍याभाव एक-दूसरे से

कभी अहम पैसे का

कभी गुरूर रूतबे का

कभी वर्ण का

कभी कुल का सम्‍पत्ति का

तुम्‍हें पता है न

किसी भी चीज की अति

विनाश कर देती है

फिर तुम्‍हारा अभिमान

किस बात को लेकर है

जानते हो ....

प्रेम की बोली फीका कर देती है

हर दंभ

मेरे अपराजित होने की वजह

तो तुम जान गये होगे

इन सब संपदाओं से बड़ा है आत्‍मबल

जो टकराता है साहस के साथ

लड़ता है स्‍वाभिमान के साथ

घबराता नहीं विपत्तियों में

सिर्फ एक मौन

तुम्‍हारे द्वारा कही गई हर बड़ी बात को

छोटा कर देता है

तुम्‍हारा कर्णभेदी स्‍वर

बताओ तो जरा यह क्रोध किस पर

मुझ पर या खुद की बेबसी पर

और फिर धराशाई हो जाता है

तुम्‍हारा पैसा तुम्‍हारा गुरूर

और तुम

मेरी आस्‍था सिर्फ ईश्‍वर है

मेरे नियम हैं

जिन्‍हें मैने आज भी नहीं बदला

किसी के लिए

इसीलिए चल रही हूं बेखौफ़

धैर्य और विश्‍वास के साथ

निरन्‍तर......!!!



गुरुवार, 8 सितंबर 2011

मन के मुताबिक चलने से .....!!!












आराम
से
थकने के बारे में
सोचा है कभी
इससे भी थक जाता है मन
हर चीज से थकान का अनुभव होता है
नहीं थकते हैं हम सिर्फ
मन के मुताबिक चलने से .....!!!

कभी खुश रहने की
अभिलाषा पूरी नहीं होती
खुशी हमेशा जाने क्‍यूं
दूर ही रहती है
कभी पा लेना
इच्छित वस्‍तु
खुशी को पाना क्षणभंगुर सा
अगले ही पल
बढ़ जाती है खुशी
दूसरे पड़ाव पर
वह नित नये
ठिकाने बदलती रहती ह‍ै
और हम
उसकी तलाश में हो लेते हैं ...!!!

मंगलवार, 6 सितंबर 2011

अश्‍कों का खारापन ...













(1)
उसकी बातों में,
तल्‍खी है
यक़ीनन उसने
प्‍यार में शिकस्‍त
खाई होगी ....
(2)
दर्द को पिया था
जब उसने
अश्‍कों का खारापन
उसके लबों को
नमकीन कर गया था ....
(3)
बंजर जमीन
बीज का निष्‍प्राण होना
कुरेदती कैसे
अन्‍तर्मन अपना,
नमी खो चुकी थी वो अपनी ...

शनिवार, 3 सितंबर 2011

पलों का हिसाब ....












मैं
जब भी
गुजरे पलों का हिसाब करती
हर बार की तरह
तुम्‍हे भुलाने की खाकर कसम
और ज्‍यादा याद करती
सिसकियां मेरी
खामोशियों पर इस कदर
वार करतीं
तनहाईयों को अपना
गवाह रखती
मैं पलकों को बंद करके
रब से फरियाद करती
मुहब्‍बत भरा दिल देना ठीक है
लेकिन उसका ये अंजाम
होना अच्‍छा नहीं ....
कब तक इस नासमझ को
समझाने के वास्‍ते
मैं यूं तुझसे शिकायत करती रहूंगी ....!!!!

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....