तुम और मैं
अक़्सर अब शब्दों में
मिलने लगे
विचारों में टटोलने लगे हैं
एक-दूसरे को
अपनेपन की दीवारों पर
कड़वाहटों की दरारें
उभर आईं हैं
जरूरत है इनको मरम्मत की !
…
ये जो तुम
सुप्रभात के नाम पर स्टेटस
लगा लेते हो न
इस पर अब कुदृष्टि लग गई है
अर्थ इनके जाने कितनी बार
अनर्थ कर देते हैं,
प्रेम, अनुराग, मित्रता
सबको लुभाने में सक्षम है
पर इन सुविचारों के रूप
अब परिवर्तित हो गए हैं,
हालातों के मारे
अपनों से छले गए लोगों ने
प्रेरक विचारों को
हथियार बना लिया है
तभी तो फ़रेब, धोखे की
तीख़ी मार से
प्यार भी घायल है
अपनेपन की आँखों में नमी है !!
….
न, तुम बुरा मत मानना
बस कुछ शब्दों की मैंने
आज यूँ ही मरम्मत की है,
कुछ जख्मी शब्दों को
दिलाई है दर्द से निज़ात भी
कुछ हिचकियों को ...
पानी भी पिलाया है
उठक-बैठक करते शब्द
कलम से माँग रहे हैं माफ़ी
कुंठित सोच को
न होने देंगे, खुद पर हावी
अनुचित न करेंगे न करने देंगे !!!
© सीमा 'सदा'
अगर हम सजग रहें तो रिश्ते निभाना आसान हो जाता है !! सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल ...
हटाएंअभिनन्दन आपका 💐💐
अपनों से छले गए लोगों ने
जवाब देंहटाएंप्रेरक विचारों को
हथियार बना लिया है
तभी तो फ़रेब, धोखे की
तीख़ी मार से
प्यार भी घायल है
अपनेपन की आँखों में नमी है !!
कितनी सरलता से कह दी है ये गहन बात ।
न जाने किस किसकी मरम्मत करनी पड़ जाती है । खूबसूरती से लिखे भाव ।
प्रेरणा हैं आप हम सबकी ... सादर वंदन 🙏🏼🙏🏼
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद 🙏🏻
हटाएंसुंदर सकारात्मक संदेश तथा प्रेरणा देती सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंजी आभार आपका
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०९-०८-२०२१) को
"कृष्ण सँवारो काज" (चर्चा अंक-४१५१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
स्नेहिल आभार आपका 💐💐
हटाएंकृपया बुधवार को सोमवार पढ़े।
हटाएंसादर
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 10 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह! सीमा जी बहुत सुन्दर सृजन दिखावे के रिश्तों को जीने की आदत सी हो गई है शायद ....
जवाब देंहटाएंअंत में एक प्रेरणा देता सुंदर सृजन ।
बधाई।
जी बहुत-बहुत आभार आप सभी का ..
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