सोमवार, 29 अगस्त 2011
कुछ अंश दान ही करो तुम .....
इस नश्वर तन पर मत इतना अभिमान ही करो तुम,
कर सको इस तन का तो कुछ अंश दान ही करो तुम ।
जिन्दगी से लड़ रहा हो जब कभी कोई, उसके लिये,
चाहो कुछ करना तो अपना रक्त दान ही करो तुम ।
कौन किसके कितने करीब रहता है वक्त जब पड़े,
अगर हो सके तो उनसे एक पहचान ही करो तुम ।
ज्ञान के बदले धन का अर्जन जरूरी तो नहीं होता,
हो सके तो कभी शिक्षा का यूं ही दान भी करो तुम ।
मरने के बाद भी जीवित रहना चाहते हो किसी के साथ,
बन प्रकाश लेकर शपथ इन नेत्रों का दान भी करो तुम ।
शुक्रवार, 26 अगस्त 2011
मन के आंगन में .....
मैं उतरना चाहती हूं
तेरे मन के आंगन में
मां तेरी ही तरह
बसना चाहती हूं सबके दिलों में
यूं जैसे तेरी ममता
बसती है ...दर्पण की तरह जिसमें
जिसकी भी नजर पड़ती है
उसे अपना ही
अक्स नज़र आता है ... !!!
मैं कच्ची मिट्टी
तुम उसकी सोंधी सी महक
अंकुरित हुई तेरे
प्यार भरे पावन मन में,
तुलसी के चौरे की
परिक्रमा करती जब तुम
आंचल थामकर
मैं चलती पीछे-पीछे
संस्कार से सींचती
तुम मेरा हर कदम
मैं डगमगाती जब भी
तुम उंगली पकड़ाती अपनी
मैं मुस्करा के चलती
संग तुम्हारे कदम से कदम मिलाकर ... !!!!
मंगलवार, 23 अगस्त 2011
प्रथम काव्य संग्रह ‘अर्पिता’ .....
शुक्रवार, 19 अगस्त 2011
आया वापस गांधी है ... !!!!
अन्ना तुम संघर्ष करो,
हम तुम्हारें साथ हैं .. !!!
वंदे मातरम् .. !!!!
इन शब्दों की बुलन्दी से
मचा गगन में शोर है ... !
सारा भारत अनेकता से एकता के सूत्र में
बंध गया है ... !!
सत्य का यह इकलौता शस्त्र
जिससे हर भ्रष्टाचारी
भयभीत है ....
ये भ्रष्टाचार है... ये अत्याचार है ..
यह कहने के बजाय हम
बेआवाज हो गये थे
देख के अनदेखा कर गये
सुनकर अनसुना कर गये
उसे पुकारा है अन्ना ने
उनकी इस आवाज में ऐसा जोश है
हर हिन्दुस्तानी नींद से जाग गया है ...!!
स्वाधीनता दिवस को फहराया तिरंगा
आज भी लहरा रहा है
बच्चे-बच्चे के हांथ में ....
देश प्रेम का ऐसा ज़ज्बा जागा है
जिसको देखो
वो इस लड़ाई में शामिल है
लंगड़ा भी दौड़ रहा है
गूंगा भी बोल रहा है
ये वो आंधी है
जिसकी बयार हर तरफ बही है
जिसने सिर्फ एक ही बात कही है
मुल्क में आया वापस गांधी है ... !!!!
मंगलवार, 16 अगस्त 2011
मां ...
मां ... के बारे में
बतलाऊंगी मैं तुमको
अपनी कविता में
तो मां नजर आएगी हर शब्द में
सबने जाने कितना कुछ
लिखा है पर मां पर ....
फिर भी अभी कुछ बाकी है
कुछ अधूरा है
मां ...कहने से आंखों में झलकता है
एक ममतामयी चेहरा
स्नेहिल आंखे
और धवल हंसी .....
मां ...एक सुकून है दिल का
एक ऐसा साया
जिसके होने से हम निश्चिंतता की चादर
तान कर सोते हैं
क्योंकि जानते हैं - मां जाग रही है
उसे हर पल की खबर होती है
बिना कुछ कहे वह
अन्तर्मन पढ़ लेती है
हमारी भूख हमारी प्यास का अहसास
हमसे ज्यादा मां को होता है
हमारी व्याकुलता ..छटपटाहट उसके सीने में
एक हलचल सी मचा देता है
सोते से जाग जाती है वह
जब भी आवाज दो तो वही शब्द
तुम्हारे पास ही तो हूं ...
मां .....धरती भी है अम्बर भी है
नदिया और समन्दर भी है
मां कोमल है तो कठोर भी है
मां की आंखों से डरना भी पड़ता है
कभी-कभी उन आंखो से छिपना भी पड़ता है
भूल गये मां की मार ?
भला किसने नहीं खाई होगी
बताए तो जरा
वो हंसाती भी वो रूलाती भी है
थाम के उंगली चलना सिखलाती है
गिरने से पहले बचाती भी है ....
मां घर की नींव बनकर
पूरे परिवार को मन के आंगन में समेटती है ...
बीज बोती है पल-पल खुशियों के
तभी मिलते हैं हमें संस्कार ऐसे
मां ....का नाम आता है लब पर तो
मन श्रद्धा के फूलों सा भावुक हो उठता है
अश्रु रूपी जल से उसे सिंचित करता है
मां ....ईश्वर की छाया है
ईश्वर का दूसरा नाम
मां का अभिनन्दन करता है ....
मां पर जाने क्या - क्या कह गया ये मन
फिर भी अधूरा है कुछ .....
मां के बिना .... कुछ भी पूरा नहीं ... !!!!
शुक्रवार, 12 अगस्त 2011
तिरंगे पे समर्पित ....
आजादी जो हमने पाई है कहता है दिवस याद करो उन्हें,
कैसे आजाद हुए हम किनके कांधों पे ये विरासत आई है ।
हंस के कटा दिये शीष नौजवानों ने वतन के नाम पे,
आजाद भारत के सपने देख अपनी जान भी गंवाई है ।
कुर्बानियां उनकी बन गईं निशानियां किस्से कहानियां,
रचनाएं कह शहीदों की कितनों ने गौरव गाथा गाई है ।
नन्हा बालक अर्पित करने को लेकर सुमन नन्हें हांथों,
तिरंगे पे जब चला मां ने शीष नवाने की बात दुहराई है ।
चमन में खिला फूल मुस्काया कलियो को भी बतलाया,
खुशकिस्मत हैं जो तिरंगे पे समर्पित होने की घड़ी आई है ।
बुधवार, 10 अगस्त 2011
बांधती रक्षा सूत्र ......
वीर की कलाई पर,
रक्षा का सूत्र
बांधने के लिए
मैने थाली में
अक्षत और रोली
के संग
रेश्म की डोर भी रखी है ..
बचपन से फाइव स्टॉर
चॉकलेट उसे बहुत पसन्द है
उसके बड़े हो जाने पर
मैं चाहकर भी भूल नहीं पाती
और मिठाइयों के बीच
उसे भी सजा लेती हूं ....
वीर मेरा आज भी
मुस्करा देता है
स्नेह से मेरी ओर देखता फिर
थाली में राखी और मिठाई के बीच
रखी उस चॉकलेट को देखकर
मेरे लिये लाईं हैं न
धीमे से मेरे कानों में कहता ....
जैसे ही मैं हां में सिर हिलाती
कलाई आगे कर कहता
जल्दी बांधिये न राखी
कितनी देर लगाती हैं आप ....
स्नेह से भीगी आंखे लिये
मैं उसकी कलाई पर
बांधती रक्षा सूत्र
और कहती हमेशा ऐसे ही रहना ......!!!!
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