तुम्हें संवारना आता है
हर बात को बनाना आता है
टूटी-फूटी चीज को भी
तुम दे देती हो एक नया आकार ...
दिशाओं के मार्ग
तुम्हारे एक कदम बढ़ाने से
प्रशस्त हो जाते हैं
और मंजिल के लिए राह
अपने आप बन जाती है ...
सोचती हूं मैं कई बार आखिर
ये हौसला ... ये उम्मीद
तुम तक पहुंचने से पहले कहां गुम थे
मेरी सोच को तुम
पढ़ लेती हो मेरे चेहरे पर
जानती हो क्यूं ?
क्योंकि तुम्हें जिन्दगी को जीना आता है
जो लोग जिन्दगी को जी लेते हैं
सच कहूं तो वह वंदनीय हो जाते हैं
बिल्कुल तुम्हारी तरह
ये हंसी क्यों ...
मेरी बातों पर भरोसा नहीं क्या ...
अरे यह सच है
कई बार पढ़ी हैं तुम्हारी आंखे मैने
जिनमें सपने तैरते हैं
हंसी के चिराग से जलते हैं
उम्मीदों के साये लहराते हैं
जितना कोई तुम्हारे रास्ते में कांटे बिछाता है
तुम उतनी ही जिंदादिली से
अपने कदम वहां रख देती हो ...
जिन्दगी के इस सफ़र में
जहां सन्नाटा भी तुमसे बात कर लेता है
खामोशी भी तुम्हें पाकर बोल उठती है
और मायूसी भी खिलखिलाती
वीराने में भी बहार आ जाती है
सपने तुम्हारे आगे हकी़कत हो जाते हैं
शब्द मुखर हो जाते हैं
तुम हो जाती हो अहसासों की एक
बेमिसाल कविता
जिसे हर कोई गुनगुनाना चाहता है
गीत की तरह ...