बुधवार, 30 मई 2012

ब्‍याज हमेशा प्‍यारा होता है :)














आज मेरे पास कुछ लम्‍हे हैं
जिन्‍हें सौंपना चाहती हूँ
तुम्‍हें साधिकार
भविष्‍य के लिए मानो तो
जब कभी मुझे
जरूरत होगी उन कीमती लम्‍हों की
तुम उन्‍हें मुझे दुगना कर दे सको
बोलो उन लम्‍हों को
सुरक्षित करना चाहोगे
अपनी जिन्‍दगी के बैंक में
कुछ बाते हैं मुस्‍कराहटों की
कुछ हँसी है बेतकल्‍लुफ़ सी
कुछ चाहते जिनमें है
अपनों का ख्‍याल
कुछ तसल्लियों के साथ
थोड़ा सा प्‍यार भी :)
....
छोटी - छोटी आशाएं
ये होगा तो हम ऐसा करेंगे
वो होगा तो फिर
ऐसा हो जाएगा
इन्‍हें चालू खाते में रहने देना
जरूरत के हिसाब से
जमा करना और निकालना
चलता रहेगा
तुम समय की पासबुक पर
हर इंट्री दर्ज जरूर करना
भूल चूक लेनी देनी
यहां नहीं चलता
जो भूल गया
उसका तो नुकसान हो जाएगा
याद रखकर भी क्‍या होगा
उसका सबूत कहां मिलेगा
आजकल मन भी
वक्‍़त और हालात देखकर
कब बदल जाए भरोसा नहीं रहता
हर लम्‍हे के बचत का ब्‍याज
मन को बहुत सुकून देता है
मूलधन से ब्‍याज हमेशा प्‍यारा होता है :)

सोमवार, 28 मई 2012

जीने का मज़ा दोगुना हो जाएगा ... !!!


















मैं अभ्‍यस्‍त नहीं हूँ तुम्‍हारी तरह
हर छोटी से छोटी चीज़ को
अपनी आंखों में उतारने की
मैने तो नज़रअंदाज़ करना सीखा है
हर बात को
तुमने ही कहा था हर वक्‍़त
आईना बनकर मत रहो
तुम्‍हारे बाल बिखर गए हैं
तुम्‍हारे चेहरे पर चिंता की लकीरें
उभर आई हैं
तुम अभी मुस्‍करा रहे थे
अब ये क्रोध क्‍यूँ
बेपरवाह होकर देखो कभी जिंदगी को
झटक दो उन चिंताओं को
सिर को हिलाकर कभी
मुस्‍करा दो कभी यूँ ही बेतकल्‍लुफ़ हो
किसी अंजान शख्‍़स को देखकर
किसी अज़नबी को
बता दो पता उसकी मंजिल का
देखना जिन्‍दगी को
जीने का मज़ा दोगुना हो जाएगा ... !!!

शुक्रवार, 25 मई 2012

इनका आज़ाद होना मुश्किल है ... !!!













तुम्‍हें मैने बांध लिया है बंधन में
शब्‍दों से उन भावनाओं पर
जड़ दिया है स्‍नेह का ताला
उसकी चाबी को उछाल दिया है
आसमान में .. कहां है वो किसे मिली
अ‍नभिज्ञ हूँ मैं भी तुम्‍हारी तरह
तुम सोचती होगी
यह बंधन भी कोई बंधन है
जब चाहे तुम आज़ाद हो जाओगी
...
ये भावनाओं में बंधे शब्‍द
स्‍नेह के ताले में बंद चाबी खो जाने पर
कैद होकर भी खुश हैं
तुमने ही कहा था न
शब्‍दों और भावनाओं का रिश्‍ता
बिल्‍कुल वैसा होता है
जैसे मां की गर्भनाल से शिशु का
भावनाएं बांधती रहती हैं
शब्‍द दर शब्‍द आत्‍मा को विचारों से
सहेजती रहती हैं रिश्‍तों को
ख्‍याल रखती हैं इनके पोषण में
कोई कमी न आए
कोई शब्‍द टूटकर बिखर न जाए
किसी कमजोर पल में
.....
वैसे ही मेरा तुम्‍हारा बंधन है स्‍नेह का
भावनाओं के रंग बिखेर 
इन्‍हें बांध रखा है रूह से
इस कदर कि
अब इनका आज़ाद होना मुश्किल है ...

बुधवार, 23 मई 2012

संकल्‍प यात्रा में ... !!!













सबकी बोलती बंद
सब निरूत्‍तर हो जाते हैं
पता है क्‍यूँ ?
सबके अपने-अपने सच होते हैं
पर सब तुम्‍हारे सच के आगे
खुद को बौना महसूस करते हैं
झांकने लगते हैं इधर-उधर
जब तुम कह देती हो
खरा-खरा बिना लाग -लपेट किए
... कुछ तो तुम्‍हारा सामना करने से भी
कतराते हैं 
अभी आते हैं ... कहकर
आगे बढ़ जाते हैं
उनका वह अभी फिर कभी नहीं आता ...
और न ही वे ... कर पाते हैं तुम्‍हारा सामना
न तो तुमने कभी पढ़ा
ज़ल तू ज़ल़ाल आई बला का टाल तू ...
न ही कोई टोटका किया
अपनी जीत का
न अफ़सोस मनाया अपनी पराज़य का
....
कर्मप्रधान विश्‍वकरि राखा
जो जस करिय सो तस फल चाखा
के भावों को मन में संजोकर
कर्तव्‍य से कभी
विमुख नहीं हुआ तुम्‍हारा मन
वो हम सबके पालन का हो
ज्ञान का हो अथवा शिक्षा का
तुम संस्‍कारों की स्‍लेट पर
हमारे वर्तमान का सच लिखकर
भविष्‍य के लिए सचेत कर
सबके चेहरों का
सच पढ़ना सिखाती रही
उसी का परिणाम है यह
हम विषम परिस्थितियों में भी
सच के साथ अन्‍याय के खिलाफ़ हो
एक जुट हो संकल्‍प यात्रा में
भीड़ के साथ - साथ चलते हुए भी
अनुसरण करते हैं तुम्‍हारा ही ... !!!

सोमवार, 21 मई 2012

... गुज़रा हुआ हर लम्‍हा














आज मैने कुछ उदासियों को
कमरे में आने नहीं दिया
यादें बिखरी थीं
हर तरफ मैने उन्‍हें
खुद से दूर
कहीं जाने नहीं दिया
 ...
एक वो लम्‍हा
जिसमें तुमने मेरी जिद पर
गाया था गाना
मुझसे कहा था अपना मुँह
दीवार की तरफ कर लो
मैने कहा चलो गनीमत है
कान में उंगली डालने को नहीं कहा :)
याद करके अकेले में भी
हँसी बिखर गई कमरे में चारो तरफ
...
गुज़रा हुआ हर लम्‍हा
यादों के कमरे में
देता है दस्‍तक़
तभी झांकती है इक
अलसायी सी याद
ये कहतें हुए
आज सूरज़ को मेरे कमरे में
आने मत देना
आ भी जाए ये जिद से
तो मुझे जगाने मत देना  .
सुबह का सपना सच होता है  !
मुझे अपना सपना
सच होते हुए देखना है !!!
...

शनिवार, 19 मई 2012

वैसे ही हो तुम इन शब्‍दों की जननी ... !!!















एक संसार मेरा तुम्‍हारे शब्‍दों से,
तुमसे बन गया है
मेरे शब्‍द तुम्‍हारे शब्‍दों की
उंगली थाम कर चलने लगे हैं
कोई कुछ कहे इनसे पहले
वो तुम्‍हारे शब्‍दों का
अनुसरण कर अपना सच कहते हैं
तुम्‍हारी परिक्रमा
मेरा सबसे बड़ा सच है 
...
ये सच है  कि गीता पढ़ी मैने
पर उसके अर्थ तब समझे
जब तुमने उन्‍हें अपने शब्‍द दिये
मीरा को पढ़ा मैने
भक्ति और प्रेम की दीवानगी
विष के प्‍याले को अमृत
कर गई ये जाना जब तुमने
निस्‍वार्थ प्रेम की महत्‍ता बतलाई
गीता का सार
सत्‍य गीता का
कोई समझता कैसे
यदि श्रीकृष्‍ण स्‍वयं यह उपदेश
अर्जुन को नहीं देते
मर्यादाओं के दायरे में
संस्‍कारों का गांडीव  लिए
अर्जुन निहत्‍थे थे जैसे वैसे ही मैं
बिन तुम्‍हारे आशीर्वचनों के
....
खुश रहो .. दुआ का यह मूलमंत्र
तुम्‍हारे मुँह से सुना होता
तो जाना होता
कितना शक्तिशाली है यह
उदासियों के बादल
छट जाते हैं मन के आकाश से
आंसुओं की बारिश थम जाती है
बोझिल पलकों से
एक इन्‍द्रधनुष बिन सात रंगों के
अपनी आभा बिखेर देता है
मन मस्तिष्‍क में जैसे
वैसे ही हो तुम इन शब्‍दों की जननी ... !!!

गुरुवार, 17 मई 2012

संस्‍कारों की हथेली पर ....!!!













मैं सोचती रही
शब्‍दों की विरासत
मिली थी तुम्‍हें
या आत्‍ममंथन ने की थी रचना
शब्‍दों की
जब भी तुम भावनाओं के
दीप प्रज्‍जवलित करती तो
उनकी रोशनी से
जगमगा उठती मंदिर की मूर्तियाँ
ईश वंदना में झुके हुए शीष
घंटे की ध्‍वनि से
खुद को तरंगित महसूस करते
जैसे आशीष बरस रहा हो
एक अधीर मन की छटपटाहट
जिसे कहना कठिन था
बस समझा जा सकता था
पारखी नज़रों से
यही वरदान मिला था तुम्‍हें भी
परखने का ..
..............
मैने देखा है
तुम्‍हारी आंखों में अपनापन
बोली में सहजता
संस्‍कारों की हथेली पर
अखंड ज्‍योत जलती रहती है संयम की
तेज हवाओं में भी
उस लौ की स्थिरता 
तुम्‍हारे बुलंद इरादों का दर्श दिखलाती है
....
तम घबराता है
सत्‍य अडिग रहता है
भय हार जाता है जब तुम्‍हें डराकर
ईश्‍वर को भी जब तुम कहती हो
मैं तैयार हूँ हर चुनौती के लिए
सोचो परिस्थितियाँ विचारमग्‍न होकर
जस की तस
उचित समय का इन्‍तजार करने लगें जब
उन लम्‍हों का साक्षी
कौन होगा सिवाय ईश्‍वर के
जो देखकर सब
अपनी मंद मुस्‍कान कायम रखता है
विजय तो होनी ही थी
विश्‍वास का बीज़ मंत्र विरासत में जो मिला था ...

सोमवार, 14 मई 2012

अभी ये तय होना बाक़ी है ... !!!


















जब भी कुछ लिखती हूँ
मन को सुकून देने के लिए
जाने क्‍यूँ दिल में
ये अहसास होता कहीं
मैं तुमसे शिकायत तो नही कर रही
तुम्‍हें पता चलेगा तो
तुम्‍हारा मन दुखी होगा
ऐसे ही जाने कितने पन्‍नों की
मैने जिन्‍दगी छीन ली
कितनी रचनाओं का कत्‍ल कर डाला
क्‍या कुसूर था सोचती हूं तो
यह ख्‍याल ज़ेहन में आता है
जो वक्‍़त की किताब में पढ़ा था बस
उन्‍हें ही तो उतारा था हू-ब-हू
पर एक दिन
तुमने ही कहा था न
लिखा हुआ सुबूत होता है
बस इसी घबराहट में आकर
मैने इन्‍हें जीवन दान नहीं दिया
...
कोई ऐसा सुबूत
जो तुम्‍हारे सामने आए
मेरे वज़ूद की निशानी की तरह
नहीं रहने देना चाहती
नहीं कहना चाहती
तुमसे कुछ ऐसा जिसे सुनकर
तुम्‍हारा मन खराब हो
कुछ पन्‍ने आज़ भी गव़ाह हैं  हमारी
हँसी के ..  कुछ बेबसी के ... कुछ खाम़ोशी के
पर इन सबके बीच
एक खा़ली पन्‍ना भी है जिसे इन्‍त़ज़ार है
कौन पहल करेगा
एक दूसरे को मनाने की
दोनो ही नाराज़ हैं एक दूसरे से
या फिर अपने आप से
अभी ये तय होना बाक़ी है ... !!!

बुधवार, 9 मई 2012

कभी डराना चाहिए ... !!!

कुछ ज़ख्‍मों पे
कभी - कभी लगता है
मरहम़ लगाने की जगह
नमक डाल दो
उसकी टीस से मन व्‍यथित होना
भूल ही जाए
कई ज़ख्‍म ऐसे होते हैं
जो सिर्फ नासूर ही हो सकते हैं
कभी सूखे हुए निशान नहीं
....
जैसे कुछ दर्द होते हैं
कितना भी उन्‍हें वक्‍़त दो
कितना भी उनपर
भावनाओं का  स्‍नेह उड़ेलते रहो
उन्‍हें तो दामन को तुम्‍हारे
नम ही करना होता है
भूलना जानते ही नहीं
हँसी को पहचानते ही नहीं
एक कतरा खुशी के लिए
मुट्ठी भर दर्द देना
शामिल होता है हर बात पर
 ...
कुछ परेशानियों को तो
ज़रूरत होती है
आत्‍मविश्‍वास की छड़ी की
जब तक उन्‍हें बाहर का
रास्‍ता न दिखाओ
वे उसे अपना घर समझ  :)
उस पर राज़ करती रहती हैं
कोई मुश्किल आये तो
हम कैसे उसका स्‍वागत करें
अपना दु:ख दूसरों के संग
कैसे साझा करें
इन्‍हें सीधा करना हो तो बस
मां की तरह आंखे तरेरना आना चाहिए
अरे !!! आंसुओं को भी तो
कभी डराना चाहिए !!!
मुस्‍कराहट से कोई नाता है अपना
सबको ये खुलकर बताना चाहिए ... :)  

सोमवार, 7 मई 2012

अविचल रहता सत्‍य ...!!!














सत्‍य क्‍या है
किसी बात पर हम
अटल होते हैं
चट्टानों से
डिगाये नहीं डिगते
घात, आघात, कुठाराघात
कितने भी
कोई कर ले
पर सत्‍य सदैव
हर अवस्‍था में
निर्भीक ही रहता है
भय रहित प्रबल
उसे डर नहीं होता
आदि और अंत से परे
उसका कोई क्‍या
अंत कर पाएगा
अटल, अडिग, अविचल
रहता सत्‍य
बस एक विश्‍वास के साथ
वह हर बाज़ी जीतने को
तत्‍पर जानते हो क्‍यों ...?
उसे आत्‍मा से विजयी होने का
आशीर्वाद प्राप्‍त है ....।

गुरुवार, 3 मई 2012

जिसकी जैसी नज़र ....!!!















शब्‍दो का अलाव
मत जलाओ इनकी जलन से
तुम्‍हारे मन की तपिश
शीतलता में नहीं बदलेगी
जो शब्‍द अधजले हैं
उनके धुंए से
दम घुट जाएगा
भावनाओं को आंच पर
जिस किसी ने भी रखा है
उसकी तपिश से  वह भी
सुलग गया है भीतर ही भीतर
इन भावनाओं की
समझ तो है न तुम्‍हें
ये जितना दुलार देती हैं 
जितना समर्पण का भाव रखती हैं
हृदय में उतनी ही निष्‍ठुर भी हो जाती हैं
इनका निष्‍ठुर होना मतलब
पूरी तरह तुमसे मुँह फेर लेना
....
भावनाओं को जानना है तो
जिन्‍दगी से पूछना
बड़ा ही प्‍यारा रिश्‍ता होता है
इनका जिन्‍दगी के साथ
ये जन्‍म से ही आ जाती हैं साथ में
फिर मरते दम तक
हमारी होकर रह जाती हैं
हमारे दुख में दुखी  तो
हमारी खुशी में खुश रहना
इनकी फि़तरत होती है 
...
इनका समर्पण रूह तय करती है
प़ाक लिब़ास में लिपटी
भावनाएं जैसे मां के आंचल में
कोई अबोध शिशु
बस उतनी ही अबोध होती हैं  ये भी
जिसकी जैसी नज़र होती है
बिल्‍कुल वैसे ही दिखती हैं ये  भावनाएं  भी ...!!!

ब्लॉग आर्काइव

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....