बसंत पंचमी को
माँ सरस्वती का वंदन
अभिनन्दन करते बच्चे आज भी
विद्या के मन्दिरों में
पीली सरसों फूली
कोयल कूके अमवा की डाली
पूछती हाल बसंत का
तभी कुनमुनाता नवकोंपल कहता
कहाँ है बसंत की मनोहारी छटा
वो उत्सव वो मेले
सब देखो हो गये हैं कितने अकेले
मैं भी विरल सा हो गया हूँ
उसकी बातें सुनकर
डाली भी करूण स्वर में बोली
मुझको भी ये सूनापन
बिल्कुल नहीं भाता!
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विचलित हो बसंत कहता
मैं तो हर बरस आता हूँ
तुम सबको लुभाने
पर मेरे ठहरने को अब
कोई ठौर नहीं
उत्सव के एक दिन की तरह
मैं भी पंचमी तिथि को
हर बरस आऊंगा
तुम सबके संग माता सरस्वती के
चरणों में शीष नवाकर
बासन्ती पर्व कहलाऊंगा !!!!
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