ख्वाहिशे दर किनार कर दो सारी,
ज़ो खुशियो की जन्नत चाहते हो !
बंदिशे हटा दो जमाने की सारी ख़ुद से,
पल दो पल जो खुल के हंसना चाहते हो !
तकदीर कैद नही है हांथ की लकीरो मे,
कुछ कर के गर तुम दिखाना चाहते हो !
रूसवाइयों को दूर कर दो तहे दिल से,
मुस्कराहटे किसी की जो देखना चाहते हो !
विश्वास की पूँजी "सदा" अपने पास रख्नना,
सफलता जो अपने नाम करना चाहते हो !
ना तोड़ना दिल किसी का ये नादान होता है,
हर दुआ का हो असर गर ऐसा चाहते हो !
मंगलवार, 31 मार्च 2009
सोमवार, 30 मार्च 2009
कोख में पली हूँ नौ माह मैं भी तो माँ,
रस्म के नाम पर, रिवाज के नाम पर जाने,
कब तक होती रहेगी यूँ ही कुर्बान जिंदगी !
पोछ्कर अश्क अपनी आँख से, पूछती जब,
बेटी माँ से क्यों दी मुझे तूने ऐसी जिंदगी !
मेरा कोई दोष जो मुझे मिला ये कन्या जन्म्,
क्या दर्द, और वेदना बनके रहेगी ये जिंदगी !
तेरी कोख में पली हूँ नौ माह मैं भी तो माँ,
आ के धरा में करती हूँ मैं तेरी भी बंदगी !
माना की मैं पराई हूँ "सदा" से लोग कहते आये,
पीर मेरी समझ ली बिन कहे, तुमने दी जिंदगी !
तिरस्कृत हुई सहा अपमान भी मैंने, नहीं छोड़ा ,
फिर भी मैंने ईश्वर इसे, जो मिली मुझे जिंदगी !
दूँगी संदेश जन-जन को मैं, करूंगी सार्थक जीवन को,
अभिशाप नही वरदान अब बेटी बचाओ इसकी जिंदगी !
कब तक होती रहेगी यूँ ही कुर्बान जिंदगी !
पोछ्कर अश्क अपनी आँख से, पूछती जब,
बेटी माँ से क्यों दी मुझे तूने ऐसी जिंदगी !
मेरा कोई दोष जो मुझे मिला ये कन्या जन्म्,
क्या दर्द, और वेदना बनके रहेगी ये जिंदगी !
तेरी कोख में पली हूँ नौ माह मैं भी तो माँ,
आ के धरा में करती हूँ मैं तेरी भी बंदगी !
माना की मैं पराई हूँ "सदा" से लोग कहते आये,
पीर मेरी समझ ली बिन कहे, तुमने दी जिंदगी !
तिरस्कृत हुई सहा अपमान भी मैंने, नहीं छोड़ा ,
फिर भी मैंने ईश्वर इसे, जो मिली मुझे जिंदगी !
दूँगी संदेश जन-जन को मैं, करूंगी सार्थक जीवन को,
अभिशाप नही वरदान अब बेटी बचाओ इसकी जिंदगी !
सदा उद्धार करती आई है . . .
जब बहती निर्मल नदी हिम गिरि के क़रीब ही,
उसकी निर्मलता देख, गिरि भी अडिग रहते हैं !
अनवरत बहते रहना, प्यासे को पानी देना कैसे,
कर लेती है सब सरिता, मन ही मन कहते हैं !
छुपा के अंतर्मन में रेत के ढेर उजली दिखती,
निर्मल जल इतना, दिखता प्रतिबिम्ब कहते हैं !
कहीं नर्मदा बन बहती है, कहीं सरयू कहलाती ये,
गंगा-जमुना का जहाँ मिलन, उसे संगम कहते हैं !
कितने जीवों का जीवन संजोये अपने आप मे,
पापियों को तार देती, इसमें स्नान से कहते हैं !
शिव की जटा बिराजी ये, भगीरथ धरा में लाये इसे,
ये "सदा" उद्धार करती आई है, जग का सब कहते हैं !
उसकी निर्मलता देख, गिरि भी अडिग रहते हैं !
अनवरत बहते रहना, प्यासे को पानी देना कैसे,
कर लेती है सब सरिता, मन ही मन कहते हैं !
छुपा के अंतर्मन में रेत के ढेर उजली दिखती,
निर्मल जल इतना, दिखता प्रतिबिम्ब कहते हैं !
कहीं नर्मदा बन बहती है, कहीं सरयू कहलाती ये,
गंगा-जमुना का जहाँ मिलन, उसे संगम कहते हैं !
कितने जीवों का जीवन संजोये अपने आप मे,
पापियों को तार देती, इसमें स्नान से कहते हैं !
शिव की जटा बिराजी ये, भगीरथ धरा में लाये इसे,
ये "सदा" उद्धार करती आई है, जग का सब कहते हैं !
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- मन को छू लें वो शब्द अच्छे लगते हैं, उन शब्दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....