स्मृतियां आने से पहले
नहीं देती दस्तक़
वरना मैं आपको आज भी
हँसती हुई मिलती पापा
बना रही हूँ
मीठी सिवइयां
इनके बिना फीका लगता था
आपको हर त्यौहार
नेह के बन्धनों में बंधे हम
विस्मृत नहीं होते
कभी इन स्मृतियों से !
…
अक्षत से रोली
हँस के बोली
तुम भी मेरे भाई के माथे पर
सितारों से चमकते हो
मेरे रतनारी रँग पर
पावन सी दुआ बनते हो
इस विश्वास के साथ कि
मेरे भाई की कोई क्षति नहीं होगी
धागा नेह का
बंध के कलाई पर
अडिगता से निभाता है वचन
पवित्र रिश्ते का
सम्मान के संग !!
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