रविवार, 26 अक्तूबर 2014

'मैं' रिश्‍तों का सूत्रधार !!!!

मैं का संसार
अनोखा होता है
कभी विस्‍तृत तो
कभी शून्‍य
मैं गुरू जीवन का
इसका ज्ञान इसका मंत्र
मैं का ही रूप
जिसके भाव अनेक
मैं परम साधक
तप की साधना में
मैं हिमालय पे नहीं जाता
ना ही रमाता है धूनी
ना ही जगाता है
सुप्‍त भावनाओं को
अलख निरंजन बोल के !
....
मैं तो बस
चलता है साथ मैं के
मंजिल पर पहुँच जाने तक
मुश्किलों में साथ
निभाने के लिए
निराशा के क्षणों में
उम्‍मीद की एक किरण
हो जाने के लिए !!
...
मैं होता है
रिश्‍तों का सूत्रधार
जुड़ता कड़ी दर कड़ी
हम हो जाने के लिए
जीवन के अर्थों को देखता है
कर्तव्‍य की हथेलियों में
जितनी बार कोई
उँगली उसकी मुट्ठी में
क़ैद होती !!!

... 

बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

तो कभी चाहत में !!!!!


प्रेम को जब भी देखती हूँ मैं
अपेक्षाओं की आँखों में
रंग सारे बारी-बारी
बिखर जाते हैं
कभी प्रेम माँगता बदले में प्रेम
तो कभी चाहत में बलिदान माँगता
मैं हैरानी के सोपानों को 
पार करते हुए
इसकी हर ऊँचाई का
क़द मापती
पर कहाँ संभव था
प्रेम का आँकलन !!
...
जब याचना से परे
प्रेम दाता बना,
टूटा, बिखरा
फिर भी मुस्कराया
खुद हँसा
लम्हों को जीना सिखाया
सोचती हूँ तो
होता है एहसास
बेमक़सद कहाँ रब ने
दिया था ये रूहानी जज्बा
सौग़ात में !!!

...

शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

एहसासों की खिड़कियाँ ...

बड़ी तीक्ष्‍ण होती है
स्‍मृतियों की
स्‍मरण शक्ति
समेटकर चलती हैं
पूरा लाव-लश्‍कर अपना
कहीं‍ हिचकियों से
हिला देती हैं अन्‍तर्मन को
तो कहीं खोल देती हैं
दबे पाँव एहसासों की खिड़कियाँ
जहाँ से आकर
ठंडी हवा का झौंका
कभी भिगो जाता है मन को
तो कभी पलकों को
नम कर जाता है 
...
कुछ रिश्‍तों को
कसौटियों पर
परखा नहीं जाता
इन्‍हें निभाया जाता है
बस दिल से
स्‍मृतियों को कभी
जगह नहीं देनी पड़ती
ये खुद-ब-खुद
अपनी जगह बना लेती हैं
एक बार जगह बन जाये तो
फिर रहती है अमिट
सदा के लिए

....

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....