मैं का संसार
अनोखा होता है
कभी विस्तृत तो
कभी शून्य
मैं गुरू जीवन का
इसका ज्ञान इसका मंत्र
मैं का ही रूप
जिसके भाव अनेक
मैं परम साधक
तप की साधना में
मैं हिमालय पे नहीं जाता
ना ही रमाता है धूनी
ना ही जगाता है
सुप्त भावनाओं को
अलख निरंजन बोल के !
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मैं तो बस
चलता है साथ मैं के
मंजिल पर पहुँच जाने तक
मुश्किलों में साथ
निभाने के लिए
निराशा के क्षणों में
उम्मीद की एक किरण
हो जाने के लिए !!
...
मैं होता है
रिश्तों का सूत्रधार
जुड़ता कड़ी दर कड़ी
हम हो जाने के लिए
जीवन के अर्थों को देखता है
कर्तव्य की हथेलियों में
जितनी बार कोई
उँगली उसकी मुट्ठी में
क़ैद होती !!!
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