शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

एहसासों की खिड़कियाँ ...

बड़ी तीक्ष्‍ण होती है
स्‍मृतियों की
स्‍मरण शक्ति
समेटकर चलती हैं
पूरा लाव-लश्‍कर अपना
कहीं‍ हिचकियों से
हिला देती हैं अन्‍तर्मन को
तो कहीं खोल देती हैं
दबे पाँव एहसासों की खिड़कियाँ
जहाँ से आकर
ठंडी हवा का झौंका
कभी भिगो जाता है मन को
तो कभी पलकों को
नम कर जाता है 
...
कुछ रिश्‍तों को
कसौटियों पर
परखा नहीं जाता
इन्‍हें निभाया जाता है
बस दिल से
स्‍मृतियों को कभी
जगह नहीं देनी पड़ती
ये खुद-ब-खुद
अपनी जगह बना लेती हैं
एक बार जगह बन जाये तो
फिर रहती है अमिट
सदा के लिए

....

13 टिप्‍पणियां:

  1. स्मृति में जो बस गया वो बार बार वहीँ से झांकता है!

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  2. यादों के कदमों के निशाँ होते ही हैं इतने प्रखर और स्पष्ट कि मन पर अपने चिन्ह सदा के लिये छोड़ जाते हैं ! बहुत ही प्यारी रचना !

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  3. कुछ रिश्‍तों को
    कसौटियों पर
    परखा नहीं जाता
    इन्‍हें निभाया जाता है
    बस दिल से..........
    सदा आपकी कवितायें हमेशा अपना स्मृति चिन्ह छोड जाती हैं दिल पे....:)

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  4. सच ....हर रिश्ता परखा नहीं जाता . हर स्मृति जानबूझकर सहेजने का जतन नहीं करना पड़ता .....

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  5. बहुत ही संवेदनशील रचना। धन्यवाद।

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  6. वाह , और यह सच है।, मंगलकामनाएं आपको !!

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  7. कुछ रिश्‍तों को
    कसौटियों पर
    परखा नहीं जाता
    इन्‍हें निभाया जाता है
    बस दिल से------ रिश्तों का सच तो यही है वाकई कुछ रिश्ते सहेजकर ही रखे जाते हैं --
    भावपूर्ण और सुंदर रचना --
    सादर

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  8. अपनों की स्मृतियाँ कैसे जा सकती हैं , मंगलकामनाएं !!

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  9. रिश्तों को बस जिया जाता है... स्मृतियाँ तो खुद बा खुद बनती ही है, बस खूबसूरत हो रिश्ते. बहुत सुन्दर रचना.

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  10. रिश्ते तो होते ही हैं निभाने के लिए ... अपने से अलग कहाँ हो पाते हैं ...

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  11. स्मृतियों की स्मरण शक्ति बहुत तीव्र होती हैं । रिश्ते निभाने पड़ते। हैं । यथार्थ को कहती सुन्दर रचना ।

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