सम्बंधों का सेतु
अपनी अडिगता पर
कई बार होता है अचंभित
जब वो कई बार चाहकर भी
अपने दायित्वों से
विमुख नहीं हो पाता
हर परीस्थिति में
टटोलता है खुद को
करता है अनगितन प्रश्न
अपने ही आप से
सम्बंधों का सेतु !
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उसके स्तंभों में
विश्वास का सीमेंट
भरा गया था कूट-कूटकर
उसने सीख लिया था
अडिगता का पाठ
कल-कल करती नदिया के बीच
जो कहती जाती थी
उससे दूर जाते हुए हर बार
तुम्हें परखा जाएगा
पर तुम्हें रहना होगा अडिग
मेरी नियति बहना है जैसे वैसे ही तुम्हें
बस हर हाल में अडिग रहना है !!!
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