कुछ रचनाएँ जन्म लेती हैं और
क़ैद होकर रह जाती हैं
डायरी के पन्नों में
उनके मर्म उनके अर्थों को
नहीं जान पाता कोई.
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कितनी पीड़ा कितनी नसीहतों
को उकेरा था उजले पन्नों पर
इस काली स्याही ने
बड़े-बड़े इरादो को
समेटा था कुछ पंक्तियों में
और पहुँचाया था उन्हें बुलंदियों पर
कभी किसी यक़ीन के
टूटने पर उसके टुकड़ों की चुभन से
बचाया था तुम्हें
कतरा-कतरा बहने से पहले
दिया था हौसला भी जब
संभाला था खुद को तुमने
बिखरने से पहले.
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रचनाओं में
जब बिखर जाते हैं शब्द
तब कई बार ये बचाती हैं
व्यक्तित्व को बिखरने से
सहेजती है अक्षरश:
दिखाते हुए उम्मीदों का आईना
रू-ब-रू होते हैं एहसास जहाँ
जिंदगी के रंगमंच पर
अपने संकल्पों के साथ
बारी-बारी!!!!