माँ तुम
हमेशा विश्वास की उँगली
थमा देती हो
जिद् की मुट्ठी में
जो नहीं छोड़ती फिर तुम्हें
किसी भी परीस्थिति में !
...
तुम कर्तव्य के घाट पर से
जब भी निकलती हो
साहस की नाव लेकर
लहरें आपस में बातें करती हैं
नदिया का जल
तुम्हारी हथेली की अंजुरी में समा
स्वयं का अभिषेक करने को
हो जाता है आतुर
किनारे तुम्हारे आने की बाट जोहने लगते हैं !!
...
तुम और तुम्हारा व्यक्तित्व
अलौकिक ही रहा सदा हम बच्चों के लिए
भांप लेता है हर खतरे की आहट को
तुम्हारे त्रिनेत्र की हम सब चर्चा करते हैं
और मुस्करा देते हैं तुम्हारी सूझ-बूझ पर
अक्सर तुम सहज़ शब्दों में जब कह देती हो
मुझे तो ये भी पता नहीं :) कैसे करते हैं !
पर हो सब जाता है तुमसे
हो जाते हैं हम सब अचंभित !!!
....
परम्पराओं का पालन तुम करती हो
पर दायरों में नहीं बाँधती अभिलाषाओ को
काट देती हो तर्क से अपने
हर उस विचार को
जो दूषित मंशा रखता है ह्रदय में
तभी तो हर रूप में तुम्हारा
सिर्फ अभिनन्दन ही होता है
जो न कभी कम होता है न कभी अपना विश्वास ही खोता है !!!
हमेशा विश्वास की उँगली
थमा देती हो
जिद् की मुट्ठी में
जो नहीं छोड़ती फिर तुम्हें
किसी भी परीस्थिति में !
...
तुम कर्तव्य के घाट पर से
जब भी निकलती हो
साहस की नाव लेकर
लहरें आपस में बातें करती हैं
नदिया का जल
तुम्हारी हथेली की अंजुरी में समा
स्वयं का अभिषेक करने को
हो जाता है आतुर
किनारे तुम्हारे आने की बाट जोहने लगते हैं !!
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तुम और तुम्हारा व्यक्तित्व
अलौकिक ही रहा सदा हम बच्चों के लिए
भांप लेता है हर खतरे की आहट को
तुम्हारे त्रिनेत्र की हम सब चर्चा करते हैं
और मुस्करा देते हैं तुम्हारी सूझ-बूझ पर
अक्सर तुम सहज़ शब्दों में जब कह देती हो
मुझे तो ये भी पता नहीं :) कैसे करते हैं !
पर हो सब जाता है तुमसे
हो जाते हैं हम सब अचंभित !!!
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परम्पराओं का पालन तुम करती हो
पर दायरों में नहीं बाँधती अभिलाषाओ को
काट देती हो तर्क से अपने
हर उस विचार को
जो दूषित मंशा रखता है ह्रदय में
तभी तो हर रूप में तुम्हारा
सिर्फ अभिनन्दन ही होता है
जो न कभी कम होता है न कभी अपना विश्वास ही खोता है !!!
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति . आभार संजय जी -कुमुद और सरस को अब तो मिलाइए. आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंपरम्पराओं का पालन तुम करती हो
जवाब देंहटाएंपर दायरों में नहीं बाँधती अभिलाषाओ को
काट देती हो तर्क से अपने
हर उस विचार को
जो दूषित मंशा रखता है ह्रदय में
तभी तो हर रूप में तुम्हारा
सिर्फ अभिनन्दन ही होता है
जो न कभी कम होता है न कभी अपना विश्वास ही खोता है !!!
kua khoob ukera hai aapne apne man ke bhavo ko waah .................
परम्पराओं का पालन तुम करती हो
जवाब देंहटाएंपर दायरों में नहीं बाँधती अभिलाषाओ को
काट देती हो तर्क से अपने
हर उस विचार को
जो दूषित मंशा रखता है ह्रदय में
परम्पराओं को निबाहते हुये नए को अपनाते हुये ही जीवन सहज हो पाता है और माँ यह बखूबी जानती है ... सुंदर रचना ।
आपकी माँ पर लिखी हर कविता दिल में उतर जाती है ....
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी कविता .....
जवाब देंहटाएंबढ़िया है आदरणीया ||
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति........
जवाब देंहटाएंऐसी ही होती है माँ , बेहद सुन्दर और भावनात्मक रचना
जवाब देंहटाएंमाँ से ज्यादा बड़ा गुरु नहीं होता कोई ... अपने आचरण और व्यवहार से चीरे चीरे ये बातें बचों में डाल देती है वो ... अच्छी रचना है बहुत ही ...
जवाब देंहटाएंमाँ पर बेहतरीन रचना !!
जवाब देंहटाएंपरम्पराओं का पालन तुम करती हो
जवाब देंहटाएंपर दायरों में नहीं बाँधती अभिलाषाओ को
काट देती हो तर्क से अपने
हर उस विचार को
जो दूषित मंशा रखता है ह्रदय में
तभी तो हर रूप में तुम्हारा
सिर्फ अभिनन्दन ही होता है
जो न कभी कम होता है न कभी अपना विश्वास ही खोता है !!!
बेहद भावपूर्ण!!! अद्भुत!!
माँ को सब पता है न जाने माँ इतनी हिम्मत कहाँ से लाती है
जवाब देंहटाएंMaa pe likhi gayi ek behtareen rachana....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंमांं की छाया आपने बच्चों के लिये एक अदम्य शक्ति ,
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ,
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27/06/2013 को चर्चा मंच पर होगा
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
धन्यवाद
माँ पर बहुत खुबसूरत कविता
जवाब देंहटाएंlatest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
सही है माँ को हर कुछ पता होता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
आभार
अद्भुत!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण अच्छी रचना है .....
माँ नाम ही है विश्वास का , दृढ विश्वास का ! जाने कैसे जान लेती है , कर लेती है !
जवाब देंहटाएंइस विश्वास को नमन !
तुम कर्तव्य के घाट पर से
जवाब देंहटाएंजब भी निकलती हो
साहस की नाव लेकर
लहरें आपस में बातें करती हैं
नदिया का जल
तुम्हारी हथेली की अंजुरी में समा
स्वयं का अभिषेक करने को
हो जाता है आतुर
किनारे तुम्हारे आने की बाट जोहने लगते हैं !!
...
तभी तो सबसे ऊपर दर्जा है माँ का ......बहुत बहुत सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर भाव लिए कविता है सदा जी |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुन्दर ढंग से माँ के स्वरूप को चित्रित किया है और वास्तव में हर माँ ऐसी ही होती है .
जवाब देंहटाएंतुम और तुम्हारा व्यक्तित्व
जवाब देंहटाएंअलौकिक ही रहा सदा हम बच्चों के लिए
भांप लेता है हर खतरे की आहट को
तुम्हारे त्रिनेत्र की हम सब चर्चा करते हैं
और मुस्करा देते हैं तुम्हारी सूझ-बूझ पर
अक्सर तुम सहज़ शब्दों में जब कह देती हो
मुझे तो ये भी पता नहीं :) कैसे करते हैं !
पर हो सब जाता है तुमसे
हो जाते हैं हम सब अचंभित !!!
बहुत सुन्दर भाव
बेहतरीन भाव
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: एक हमसफर चाहिए.
बेहद सुन्दर और भावनात्मक रचना
जवाब देंहटाएंतुम कर्तव्य के घाट पर से
जवाब देंहटाएंजब भी निकलती हो
साहस की नाव लेकर
लहरें आपस में बातें करती हैं....
भावपूर्ण
विश्वास है ही ऐसी चीज कि माँ भगवान् हो जाती है,एक जादू
जवाब देंहटाएंbahut sundar bhaav... sada , sis
जवाब देंहटाएंअलौकिक सत्य..
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावनात्मक प्रस्तुति. माँ तो भगवान से भी ऊपर स्थान रखती है. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर. भाव पूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंमार्मिक अनुभूति
जवाब देंहटाएंसादर
जीवन बचा हुआ है अभी---------
वाह अदभुद प्रस्तुति।।।
जवाब देंहटाएंmaa ki mahima ka sundar rekhaankan
जवाब देंहटाएंबेहद प्रभावशाली
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन..आनंद दायक।
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