मन के आँगन में
स्नेह का बीज बचपन से ही
बो दिया गया था जो वक्त के साथ
पल्लिवत होता रहा जिस पर
सम्मान का जल सिचित करते-करते
स्वाभिमान की डालियों ने
अपना लचीलापन नहीं खोया
जब भी आवश्यकता हुई
वो झुकती रहीं
फिर चाहे उन्हें झुकाने वाला
कोई बड़ा होता या बच्चा
वो सहर्ष तैयार रहतीं
तपती दोपहर में वो छाया बन
शीतलता देती
....
जोर की आँधियों में
टूटकर गिरते वक्त भी
कोई आहत न हो
किसी को चोट न पहुँचे
खुद के जख्मों से बेपरवाह
रहते हुए भी वो जिंदगी को जीते-जीते
सूखकर लकड़ी हो जाती
तो जलाई जाती
सुलगती, जलती फिर कोयला होती
यूँ ही फिर वो राख हो,
इक दिन फिर मिल जाती माटी में
किसी बीज के अंकुरित होने का
करती इंतजार
फिर से पल्लिवत होने को!!!!
स्नेह का बीज बचपन से ही
बो दिया गया था जो वक्त के साथ
पल्लिवत होता रहा जिस पर
सम्मान का जल सिचित करते-करते
स्वाभिमान की डालियों ने
अपना लचीलापन नहीं खोया
जब भी आवश्यकता हुई
वो झुकती रहीं
फिर चाहे उन्हें झुकाने वाला
कोई बड़ा होता या बच्चा
वो सहर्ष तैयार रहतीं
तपती दोपहर में वो छाया बन
शीतलता देती
....
जोर की आँधियों में
टूटकर गिरते वक्त भी
कोई आहत न हो
किसी को चोट न पहुँचे
खुद के जख्मों से बेपरवाह
रहते हुए भी वो जिंदगी को जीते-जीते
सूखकर लकड़ी हो जाती
तो जलाई जाती
सुलगती, जलती फिर कोयला होती
यूँ ही फिर वो राख हो,
इक दिन फिर मिल जाती माटी में
किसी बीज के अंकुरित होने का
करती इंतजार
फिर से पल्लिवत होने को!!!!
सस्नेह शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण खुबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंLATEST POST सुहाने सपने
my post कोल्हू के बैल
जीवन में शांतिपूर्ण ढंग से लक्ष्य के प्रति ....कर्तव्य के प्रति सहज और सजग रहना ...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर रचना सदा जी ...
दीदी
जवाब देंहटाएंसदैव जागृत रहने की प्रेरणा
मिलती है आप को पढ़कर
सादर
वाह!!!बहुत बेहतरीन सुंदर रचना,,सदा जी,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: जुल्म
बहुत सुन्दर भाव ... बधाई !
जवाब देंहटाएंजागृत रहने की प्रेरणा का संदेश देती बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंजहां स्नेह के बीज हों वो हर हाल में पल्लवित होने की ख़्वाहिश रखते हैं .... बहुत खूबसूरत भावों को लिए सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वाभिमान की डालियों ने
जवाब देंहटाएंअपना लचीलापन नहीं खोया.....
बहुत सुंदर !
शुभकामनायें!
यही तो आस है जीवन की...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाव्यक्ति...
सस्नेह
अनु
कुछ जीवन केवल सेवा करने हेतु ही होते हैं...जैसे यह प्राणदायी पेड़ ...फिर भी इंसान इनका मूल्य नहीं समझ पाता .....
जवाब देंहटाएंवृक्ष जैसा जीवन जीते लोग भी ऐसे ही होते हैं !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !!
जीवन का यथार्थ बयाँ कर दिया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और लाजवाब.........हैट्स ऑफ इन सुन्दर पंक्तियों के लिए ।
जवाब देंहटाएंवक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आएं ।
भावभीनी रचना...बोध कराती !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने. बचपन में इस तरह के बीज बो दिए जाएँ तो उस पेड़ की छाया ताउम्र मिलती रहती है.
जवाब देंहटाएंस्नेह के बीज हों वो वक्त के साथ
जवाब देंहटाएंपल्लिवत होते ही हैं !बहुत ही सुन्दर !!
शुभकामनायें !!
जीवन्तता है आपकी रचना में ..........बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...सकारात्मक भाव
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसृष्टि-चक्र का सुन्दर निरूपण !
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना सदा जी
जवाब देंहटाएंयह चक्र इसी तरह चलता रहता है.
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता.
एक आशा है तो जीवन भी बना रहता है ...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंyahi to jivn hai ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव लिए ... नेह का अगार लुटाना ही जावन लक्ष्य बनाती रचना ...
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर प्रवाहमयी रचना..
जवाब देंहटाएंभावभीनी....
जवाब देंहटाएंउम्मीद लिए खूबसूरत रचना ।।
जवाब देंहटाएंउम्मीद लिए खूबसूरत रचना ।।
जवाब देंहटाएंkhbsurat ahsaas dilati kavita... :)
जवाब देंहटाएंजोर की आँधियों में
जवाब देंहटाएंटूटकर गिरते वक्त भी
कोई आहत न हो
किसी को चोट न पहुँचे
खुद के जख्मों से बेपरवाह
रहते हुए भी वो जिंदगी को जीते-जीते
सूखकर लकड़ी हो जाती
तो जलाई जाती-------
अदभुत निःशब्द
बहुत सुंदर
बधाई
जोर की आँधियों में
जवाब देंहटाएंटूटकर गिरते वक्त भी
कोई आहत न हो
किसी को चोट न पहुँचे
खुद के जख्मों से बेपरवाह
रहते हुए भी वो जिंदगी को जीते-जीते
सूखकर लकड़ी हो जाती
तो जलाई जाती
सुलगती, जलती फिर कोयला होती
यूँ ही फिर वो राख हो,
इक दिन फिर मिल जाती माटी में
किसी बीज के अंकुरित होने का
करती इंतजार
फिर से पल्लिवत होने को!!!!
ज़िन्दगी के खुबसूरत पहलू को उजागर करती सुन्दर भाव भरी रचना ......
जीवन की सरल अपेक्षाओं को बहुत सुन्दर चित्रित किया है।
जवाब देंहटाएं