कुछ शब्द चोटिल हैं,
कुछ के मन में दर्द है अभिव्यक्ति का,
हाथ में कलम हो तो
सबसे पहले खींच लो एक हद़ की लक़ीर
जिसे ना लांघा जा सके यूँ सरेआम
बना लो ऐसा कोई नियम
कि फिर पश्चाताप की अग्नि में ना जलना पड़े
मन की खिन्नता ज़बान का कड़वापन
जिन्हें शब्दों में उतारकर
तुमने उन्हें अमर्यादित करने के साथ् ही
कर दिया ज़ख्मी भी !
.....
उठती टीसों के बीच
सिसकियाँ लेते हुए शब्द सारे
अपनी व्यथा कहते रहे
पर सुनने वाला कोई ना था
सबके मन में अपना-अपना रोष था
अम़न का प़ैगाम बाँटने निकले थे
ज़ोश में खो बैठे होश
अर्थ का अनर्थ कर दिया !!!
....
मन के आँगन में जहाँ
शब्द-शब्द करता था परिक्रमा भावनाओं की
जाने कब वर्जनाओं के घेरे पार कर
बनाने के बदले बिगाड़ने में लग गया
रचनाकार उसके स्वरूप को
वक़्त औ' हालात की ज़रूरत एकजुटता है
क़लम ताक़त है न कि कोई क़टार
जिसे जब चाहा उतार दिया
शब्दों के सीने में और कर दिया उन्हें बेजुबान
अगर कहीं जरूरी है कुछ तो वो है
हद़ की लक़ीर !!!
जिसे खींचने के लिए फिर चाहे
क़लम आगे आए अथवा व्यक्तित्व !
....
दीदी
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
कुछ दिनों से मैं व्यस्त हूँ
बिना काम के
बस...
बैठना पड़ रहा है सब के बीच
रिश्ते-नातों में
सादर....
शब्द ही व्यक्त कर पायेंगे, मन को भी, व्यक्तित्व को भी।
जवाब देंहटाएंवे भी शब्द ही थे बेलगाम हो कर जो दिल को भेद गये… और ये भी शब्द हैं जो दिल को छू रहे हैं… चुभन को व्यक्त कर रहे हैं और हद की लकीर की ज़रूरत को रेखांकित कर रहे हैं…
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या बात
\बहुत भावपूर्ण रचना है |सीमा तो अति आवश्यक होती है |जो भी सीमा का उल्लंघन
जवाब देंहटाएंकरता है स्वयं मुसीबत मोल लेता है |
आशा
बहुर अर्थ पूर्ण और सटीक रचना
जवाब देंहटाएंlatest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?
क़लम ताक़त है न कि कोई क़टार
जवाब देंहटाएंजिसे जब चाहा उतार दिया
शब्दों के सीने में और कर दिया उन्हें बेजुबान
अगर कहीं जरूरी है कुछ तो वो है
हद़ की लक़ीर !!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
बहुत बढ़िया ...
जवाब देंहटाएंएक दम सटीक बात कही.....
सस्नेह
अनु
बहुत ही भावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंअम़न का प़ैगाम बाँटने निकले थे
जवाब देंहटाएंज़ोश में खो बैठे होश
अर्थ का अनर्थ कर दिया !!!
बहुत प्रभावशाली पंक्तियां...
बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति ,
जवाब देंहटाएंहाथ में कलम भी होती है और मन में संवेदनाएं भी फिर भी कुछ लिख कर फिर मिटा देते हैं क्योंकि लगता है कि हम वह व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं जो उस आत्मा के सही अर्थों में न्याय की बात कह सके और सिफ कहने से क्या होगा कुछ करने की भी हिम्मत और ताकत हो तो कुछ बात है .
baawpuran...
जवाब देंहटाएंजिंदगी में कुछ चीजें इन्हीं में से अगर अपना लें तो बहुत होगा ।
जवाब देंहटाएंउठती टीसों के बीच
जवाब देंहटाएंसिसकियाँ लेते हुए शब्द सारे
अपनी व्यथा कहते रहे
पर सुनने वाला कोई ना था..
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सच्ची और प्रभावशाली पंक्तियाँ ....
शब्द सच ही ऐसा घाव कर जाते हैं जिंका जख्म भरना मुश्किल हो जाता है विचारणीय बात लिखी है .... हद निर्धारित करना आवश्यक है ।
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेने वाली लेखनी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए धन्यवाद!
सब समाया है शब्दों में .....
जवाब देंहटाएंउठती टीसों के बीच
जवाब देंहटाएंसिसकियाँ लेते हुए शब्द सारे
अपनी व्यथा कहते रहे
पर सुनने वाला कोई ना था
सबके मन में अपना-अपना रोष था
अम़न का प़ैगाम बाँटने निकले थे
ज़ोश में खो बैठे होश
अर्थ का अनर्थ कर दिया !!!-------
संवेदना के धरातल की रचना-
गहन अनुभूति पर सहजता के साथ
गजब
साधुवाद
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंएक लकीर जरुरी है आत्मसम्मान , स्वाभिमान और अपनी पहचान बनाये रखने को !
जवाब देंहटाएंकविता के भावों से सहमति !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंहर बार नहीं ढलते
शब्द उस सांचे में
जब लगती है दूसरों की
पीड़ा सबको अपनी
कागज का टुकड़ा
छटपटाहट लिए
रोता है तब कलम भी
थक जाता है बताकर
लाचारी अपनी
मौन रह जाता है
अंतर्मन ,और आँखे सूनी
कोलाहल सा मच जाता है
हृदय में तब मेरे कसमसाते
शब्दों की पीड़ा कैसे समझाऊं अपनी .......Neelima
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा अभिव्यक्ति !!!
जवाब देंहटाएंRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
क़लम ताक़त है न कि कोई क़टार
जवाब देंहटाएंजिसे जब चाहा उतार दिया
शब्दों के सीने में और कर दिया उन्हें बेजुबान
अगर कहीं जरूरी है कुछ तो वो है
हद़ की लक़ीर !!!
जिसे खींचने के लिए फिर चाहे
क़लम आगे आए अथवा व्यक्तित्व !bahut shaandaar abhiwykti ....sundar kathan
बहुत ही सुन्दर उत्कृष्ट रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है विचार शील बनाती हुई पाठक को .एक सन्देश थमाती हुई अपने आप को अपनी हद को जानो .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सदा जी
जवाब देंहटाएंअगर कहीं जरूरी है कुछ तो वो है
जवाब देंहटाएंहद़ की लक़ीर !!!
जिसे खींचने के लिए फिर चाहे
क़लम आगे आए अथवा व्यक्तित्व !
....सच में इस हद को पहचानना बहुत ज़रूरी है...बहुत प्रभावी और सशक्त रचना..
kahan khinch paati hain ye lakeeren..
जवाब देंहटाएंsoch ke hi rah jate hain...
बहुत सुन्दर रचना ......
जवाब देंहटाएंहद़ की लक़ीर !!!
जवाब देंहटाएंजिसे खींचने के लिए फिर चाहे
क़लम आगे आए अथवा व्यक्तित्व !
सार्थक ...सशक्त अभिव्यक्ति सदा जी ....
बेहद खूबसूरत रचना | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
दिल को छू लेने वाली बहुत ही सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंशानदार रचना
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंहद तय करना जरूरी है जिससे आगे निर्णय आसान हो जाते है.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
शानदार,बढ़िया सदा जी
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जवाब देंहटाएंcomplexe bachar lkhir by yassir the hacker ... ... complexe bachar lkhir by yassir the hacker (Casablanca). Morocco / Casablanca / Casablanca / haramain ...
क़लम ताक़त है न कि कोई क़टार..
जवाब देंहटाएंक्या खूब कही.. कमाल..पर सब समझे तो न..
बड़ी गहरी बात कही है सदा जी ! जब तक हद की लकीरें नहीं खींची जायेंगी शब्द भी बेलगाम हो अपनी मर्यादा भूल जायेंगे और विप्लव छा जायेगा ! बहुत सुंदर प्रस्तुति !
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