सोमवार, 22 अप्रैल 2013

पुराने नियम बदल डालो !!!!!!

शब्‍द आहत हो गये हैं
चीखते-चीखते
मर्यादायें सारी
बेपर्दा हुई हैं जबसे  !
माँ मुझे तुमने
खेलने के लिये गुडि़या नहीं
बल्कि हथियार दिये होते
तो हर बुरी नज़र के उठने से पहले ही
मैने जाने उन पर कितने ही
वार किये होते !!
....
नज़र बदली है इनकी तो,
तुम भी हौसले से
अपनी सारी नसीहते बदल डालो,
बेटी को या तो जन्‍म मत दो
देती हो जन्‍म तो
इनको नज़ाकत से पालने के सारे
पुराने नियम बदल डालो !!!
...
तुम्‍हारे अंश पर बुरी नज़र,
बुरी नियत की शंका
कैसे करता है कोई
उसके लिये तिरस्‍कार की सीख
अपनी परवरिश में डालो
मुझको सुरक्षित रखने की नहीं
बल्कि सुरक्षित होने की
आदत जन्‍म से डालो !!!!!!
....
भरोसे की चादर
ओढ़कर घर से नहीं निकलना है मुझे अब,
जाने कब हवायें
वहशत की चलने लगें !!!
...
परी कथा या लोरी सुनाने के बजाये,
तुम सुनाना उनको अब
दामिनी औ' गुडि़या के साथ
क्‍या हुआ था
सच माँ देती हो जन्‍म तो
इनको नज़ाकत से पालने के सारे
पुराने नियम बदल डालो !!!!!!

36 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी रचना है,पर क्या एक ही भाव होते हैं जीने के - रुदन? नहीं - किसने क्या दिया क्या नहीं दिया ...उससे परे समय पर हमें खुद को हथियार बनाना होगा .पर छोटी सी बच्ची !

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  2. भरोसे की चादर
    ओढ़कर घर से नहीं निकलना है मुझे अब,
    जाने कब हवायें
    वहशत की चलने लगें !!!
    व्यथित मन क्या करे.....

    भावपूर्ण !!!
    सस्नेह
    अनु

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  3. सच है.आज हर माँ को बेटियों को पालने का तरीका बदलना होगा..सुन्दर सटीक रचना..

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  4. समय की सच्ची पुकार ....बस अब तो येही है दरकार !

    जवाब देंहटाएं
  5. परी कथा या लोरी सुनाने के बजाये,
    तुम सुनाना उनको अब
    दामिनी औ' गुडि़या के साथ
    क्‍या हुआ था
    सच माँ देती हो जन्‍म तो
    इनको नज़ाकत से पालने के सारे
    पुराने नियम बदल डालो !!!!!!

    बड़ी कड़वी सच्चाई है जो अब गले उतारने के लिए तैयार होगा , बेटियों को नाजुक नहीं बल्कि बनाना होगा ताकि कोई उनकी तरफ नजर उठाने से पहले बार बार सोचे.

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  6. क्‍या हुआ था
    सच माँ देती हो जन्‍म तो
    इनको नज़ाकत से पालने के सारे
    पुराने नियम बदल डालो !!!!!!

    ......सच्ची पुकार सादर अभिनन्दन सदा दी .......शुभ कामनायें !!

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  7. सच्ची सार्थक सामयिक रचना
    ऐसा ही होना चाहिए
    हार्दिक शुभकामनायें

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  8. सामयिक मुद्दे पर बहुत अच्छी रचना है. आत्मरक्षा ही सुरक्षा का सर्वोत्तम रास्ता है. सिर्फ कानून बना देने से कुछ नहीं होता. इसका कटु उदाहरण देश के सामने है. बदलती सामाजिक व्यवस्था में लोकलाज, मर्यादा और संस्कार का विलोप हो चुका है. संयमित और अनुशासित समाज के लिये यह जरूरी तत्व हैं. कृषि युग में घर के बुजुर्ग इसकी पाठशाला हुआ करते थे. औद्योगिक युग में इनकी जगह कौन सी संस्था लेगी तय नहीं हो सका है. मनोवैज्ञानिकों और समाज शास्त्रियों को इसका हल ढूंढना है. पता नहीं क्यों वे मौन हैं. इनका संचार वाममार्ग से होगा या दक्षिणमार्ग से पता नहीं है लेकिन इसकी नितांत आवश्यकता है. इसके बगैर किसी स्वस्थ सामाजिक व्यवस्था की उम्मीद नहीं की जा सकती.

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  9. समय की यही पुकार है ..
    सटीक पोस्ट ...

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  10. नियम तो बदल ही रहे हैं .... तभी न कुंठाओन से ग्रस्त हो रहे हैं लोग ...

    बस अब हथियार ही उठाना बाकी है .... बहुत सटीक और सार गर्भित रचना

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  11. यही जरूरी है. परवरिश के तरीके बदलने होंगे.
    बहुत अच्छी रचना

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  12. बेटी को या तो जन्‍म मत दो
    देती हो जन्‍म तो
    इनको नज़ाकत से पालने के सारे
    पुराने नियम बदल डालो !!!
    बदलना ही होगा, वक़्त आ गया है... सटीक अभिवयक्ति... शुभकामनायें

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  13. मार्मिक-
    शुभकामनाये आदरेया-

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  14. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २३ /४/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।

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  15. अब यही करना होगा …………ये हुंकार होनी चाहिये।

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  16. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
    --
    शस्य श्यामला धरा बनाओ।
    भूमि में पौधे उपजाओ!
    अपनी प्यारी धरा बचाओ!
    --
    पृथ्वी दिवस की बधाई हो...!

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  17. सटीक रचना .हर माँ यह सिख लें की बेटा,बेटी में अंतर करना महा पाप है, परिवेश पहले घर में परिवर्तन करने की आवश्यकता है तभी लड़के लड़कियों को इज्जत देंगे,
    latest post सजा कैसा हो ?
    latest post तुम अनन्त
    l

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  18. सुन्दर भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी जिम्मेदारी से न भाग-जाग जनता जाग" .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-2

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  19. पुराने नियम बदल डालो !!!!!!
    शब्‍द आहत हो गये हैं
    चीखते-चीखते
    मर्यादायें सारी
    बेपर्दा हुई हैं जबसे !
    माँ मुझे तुमने
    खेलने के लिये गुडि़या नहीं
    बल्कि हथियार दिये होते
    तो हर बुरी नज़र के उठने से पहले ही
    मैने जाने उन पर कितने ही
    वार किये होते !!

    बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  20. बहुत सशक्त रचना सदा जी ! अब बच्चियों को सिखाना होगा को अपने साथ पर्स में लिपस्टिक, मॉइश्चराइजर एवँ फेस पाउडर की जगह लाल मिर्च की बुकनी , एक शीशी में एसिड और एक मल्टी परपज़ चाकू रखने की मानसिकता बनायें ! समाज में सभ्यता और मानवीयता के राज की जगह जंगल राज् व्याप्त हो गया है जहाँ खुद को सुरक्षित रखने के लिये इन उपकरणों की बहुत ज़रूरत होगी !

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  21. ye atyachar... vyabhichar
    sach me bata raha ki
    badalna hi hoga purane niyamo ko..!!
    kuchh to aisaa karna hoga..
    taaki ye nar pishach kam ho payen..
    marmik shabd chitran...

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  22. समसामयिक संदर्भों में भारत में महिला उत्पीड़न ,बर्बर वहशीपन पर सशक्त टिप्पणी और सीख .

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  23. ...कठोर धरातल पर जीना ..तो सिखाया जाता है ...पर कठोरता से जीना नही ......नियम बदल रहे हैं पर जीवन जीने से उतर मार्ग पर आ गया है ...कौन क्या करे क्या नही ...स्वयंम को जागृत करना है ...पर उन कुंठित बहशी सोच ...इरादों का क्या ...जो अंधी हो चुकी है धन मद सत्ता से ...// नही देख पाती माँ बहन का चेहरा उस दुष्कृत्य से पहले ...बहुत भाव पूर्ण दर्द को महसूस करती करवट रचना ...जो जीवित है स्पंदन करती है ...

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  24. भरोसे की चादर
    ओढ़कर घर से नहीं निकलना है मुझे अब,
    जाने कब हवायें
    वहशत की चलने लगें !!!----

    बिटिया पालने और सिखाने की भावुक चेतावनी
    वाकई बेटिओं में आत्मबल होना चाहिये
    लड़कों से अधिक-----

    सुंदर,सार्थक रचना
    बहुत बहुत बधाई इस पारदर्शी रचना हेतु

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  25. क्या कहूँ.. अवाक हूँ इस कविता की पृष्ठभूमि के विषय में सोचकर.. और असमर्थ पाता हूँ इस विषय पर अपनी राय देने में.. बहुत ही आवश्यक है वह सब जो आपने सुझाया है..!!
    बहुत अच्छे!!

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  26. अब बहुत हो चुका हम सभी को जागना होगा ...................बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!

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  27. विचारणीय भाव..... परिवर्तन की राह तो खोजनी ही होगी

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  28. कटु सत्य को उजागर करतीं सार्थक पंक्तियाँ...

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  29. सार अब अंगार में हो,
    अनकहे अधिकार में हो।

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  30. आपकी यह अप्रतिम् प्रस्तुति ''निर्झर टाइम्स'' पर लिंक की गई है।
    http//:nirjhat-times.blogspot.com पर आपका स्वागत है।कृपया अवलोकन करें और सुझाव दें।
    सादर

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  31. वर्तमान हालातों के चलते तो अब वाकई नियम बदलना ही ज़रूरी होगया है अब परी कथाएँ नहीं बल्कि लक्ष्मी बाई और दुर्गावती की कहानिया सुनना होगा अपनी बेटियों को अब कोमल नहीं कठोर बनाना होगा अपनी बेटियों को तभी शायद निर्भया और गुड़िया जैसी मासूम जानों को बचाया जा सकता है

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....