स्मृतियाँ जब भी तर्क करती
पापा मैं आपको सोचती,
और फिर आपकी हथेली में
होती मेरी उँगली,
जिया हुआ,बेहद सुखद क्षण
सजीव हो उठता,
या फिर …
जब मेरे दोनों बाजू थाम
मुझे आप, हवा में उछालते
मैं चहक कर कहती
और ऊपर …
लगता था वक़्त बस यहीं थम जाये!
...
सबने अपने जीवन में
कभी न कभी, ये जरूर सोचा होगा,
पर वक़्त को गुज़रने की
हमेशा जल्दी ही रही,
पूरे तेईस वर्ष गुज़र गये
बिन आपके पापा,
पर एक भी स्मृति की,
विस्मृति न हुई आज तक!
ना ही कभी होगी!!
…
आज फिर सजा है
मेरे मन का आँगन,आपकी
मीठी स्मृतियों से
नमी हैं पलकों के आसपास,
स्मरण आपका ...
करते-करते, जी लिए
बचपन के अनगिनत पल,
सच आपकी तरह ही
अनमोल हैं ..
ये स्मृतियाँ आपकी !!!
....
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (24अगस्त 2020) को 'उत्सव हैं उल्लास जगाते' (चर्चा अंक-3803) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन रचना 👌
जवाब देंहटाएंपापा की अनमोल स्मृतियां कभी विस्मृत न हों तो ही अच्छा ...उन्हीं स्मृतियों के सहारे कष्ट का समय भी कट जाता है
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब हृदयस्पर्शी सृजन।
आभार आपका
हटाएंबहुत ही सुंदर प्यारी-सी अभिव्यक्ति दी रोम-रोम पुलकित हो उठता है जब उस समय में पहुँच उन यादों में सिमटते हैं हम। बच्चपन बहुत मासूम होता है सराहना से परे आपका सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
वाह अति उत्तम ।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर अभिव्यक्ति! उत्कृष्ट रचना!--ब्रजेन्द्रनाथ
जवाब देंहटाएंआज फिर सजा है
जवाब देंहटाएंमेरे मन का आँगन,आपकी
मीठी स्मृतियों से
नमी हैं पलकों के आसपास,
स्मरण आपका ...
करते-करते, जी लिए
बचपन के अनगिनत पल,
सच आपकी तरह ही
अनमोल हैं ..
ये स्मृतियाँ आपकी !!!
बहुत सुन्दर भाव उस भाग्यशाली पिता के लिये।
जवाब देंहटाएं