कर्तव्य की कोई भी राह लो
उस पर चलते जाने की शपथ
तुम्हें स्वयं लेनी होगी
राहें सुनसान भी होंगी
कोशिशें नाक़ाम भी होंगी
पर मंजिलें कई बार
करती हैं प्रतीक्षा
ऐसे राही की
जो सिर्फ उस तक
पहुँचने के लिए
घर से चला था.
.....
मंजिलों तक जाने के लिए
हमेशा अकेले ही
तय करने होते हैं रास्तें
अकेले ही चलना होता है
और पूछना होता है
पता भी मुश्किलों से
मुझे कितनी दूर
यूँ ही तुम्हारे साथ
तय करने हैं
यूँ ही तुम्हारे साथ
तय करने हैं
मंजिलों के रास्ते!!!
....
बहुत सुन्दर..मुश्किलें ही मंज़िल का सही पता बताती हैं...
जवाब देंहटाएंराहों पे छोड़ कदमों के निशां
जवाब देंहटाएंमंजिल तुझे ख़ुद ढूंड लेगी ........शुभकामनायें |
मंजिल, रस्ता और राही,..तीनों एक दूसरे पर आश्रित हैं..,आशा और विश्वास से भरी पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंकोई न हो! मुश्किलें हमराह होती हैं!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना!
मुश्किलें इतनी भी मुश्किल नहीं......सब सोच की बात है...
जवाब देंहटाएंमुश्किलों में ही आगे बढ़ने का फलसफा भी छुपा है. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंप्रेरक .... मुश्किलों से ही पता करना होता है मंजिल का रास्ता ... बहुत खूब .
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