कुछ बातों पर
यकी़न करना जैसे कील चुभोना होता है
सच की नोक इतनी पैनी
फिर भी झूठ के
आवरण उसे ढंकते रहते हैं
चुभ सकती थी ऐसे जैसे किसी ने
ठोक दिया हो जबरदस्ती
पर वह चुभती रही हर बार
एक नई जगह पर
और छलनी कर देती पूरा का पूरा
...
कुछ बेबसी के लम्हों पर
फिर खा़मोशी ने
तान दी चादर बड़े ही सलीके से
हिचकियों की आवाजें
हलक से बाहर आ रही थीं दबी-दबी सी
उसने चादर का
एक कोना भर लिया मुंह में
सन्नाटा बेताब था
विद्रोह की गर्जना करने को
उसने हथेलियों से
दी थीं थपकियां
वो निढाल हो गया
कहना चाहता था
बेबसी तुम सन्नाटे की
दुलहन न बनती तो अच्छा था
वो मासूम़
जिसका कल रात कत्ल हुआ
वो फक़ीर अंधा था
सौंप गया था बड़े ही यकीन से
तुम्हें मेरे बाजु़ओं में
और मैंने
तुम्हारी हर ख्वाहिश को
चकनाचूर कर दिया !!!
...
सही कहा कि यकीन को भी यकीन करने में शक ही होता है..
जवाब देंहटाएंहिचकियों की आवाजें
जवाब देंहटाएंहलक से बाहर आ रही थीं दबी-दबी सी
उसने चादर का
एक कोना भर लिया मुंह में
मार्मिक. यकीन स्वयं कई पर्दों में छिप गया है.
सन्नाटा बेताब था
जवाब देंहटाएंविद्रोह की गर्जना करने को
उसने हथेलियों से
दी थीं थपकियां
वो निढाल हो गया
बहुत मार्मिक प्रस्तुति
सच मे यकीन से हम हर पल दूर होते जा रहे हैं ...!!
जवाब देंहटाएंप्रबल ...मार्मिक भाव ...!!
ह्रदय द्रवित करती
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक रचना...
तुम्हें मेरे बाजु़ओं में
जवाब देंहटाएंऔर मैंने
तुम्हारी हर ख्वाहिश को
चकनाचूर कर दिया !!!
....बहुत शक्तिशाली मार्मिक अभिव्यक्ति -
बहुत अच्छी...ह्रदयस्पर्शी रचना.....
जवाब देंहटाएंसस्नेह
विश्वास बड़ा शब्द है, स्वयं से भी..
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए हुए ....
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी ..
कुछ बेबसी के लम्हों पर
जवाब देंहटाएंफिर खा़मोशी ने
तान दी चादर बड़े ही सलीके से
हिचकियों की आवाजें
हलक से बाहर आ रही थीं दबी-दबी सी
उसने चादर का
एक कोना भर लिया मुंह में
हाँ ऐसा ही बिल्कुल ऐसा ही होता है और उसको बहुत सुंदर भावों को उससे भी अधिक सुंदर शब्दों में ढाल कर प्रस्तुत किया है.
सदा जी इस बेहतरीन पोस्ट के लिए हैट्स ऑफ ।
जवाब देंहटाएंविश्वास फिर भी पानी माँग रहा है ...
जवाब देंहटाएंbauhat hi marmik kavita!!
जवाब देंहटाएंह्रदयस्पर्शी बहुत मार्मिक रचना..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ।।
बेहद मार्मिक रचना! आभार.
जवाब देंहटाएंकुछ बेबसी के लम्हों पर
जवाब देंहटाएंफिर खा़मोशी ने
तान दी चादर बड़े ही सलीके से
हिचकियों की आवाजें
हलक से बाहर आ रही थीं दबी-दबी सी
उसने चादर का
एक कोना भर लिया मुंह में
भावपूर्ण मार्मिक प्रस्तुति !!
मार्मिक!
जवाब देंहटाएंआशीष
--
इन लव विद.......डैथ!!!
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
जवाब देंहटाएंसशक्त मार्मिक प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना लगी सदा जी ,,,,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
Aap hameshahee sundar likhtee hain!
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील भाव लिए अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंदिल को छू गयी यह कविता. बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंआभार.
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या कहने
मार्मिक!गहन भाव लिए हुए !!!
जवाब देंहटाएंbahut sundar bhavpurn rachna
जवाब देंहटाएंसच की नोक इतनी पैनी
जवाब देंहटाएंफिर भी झूठ के
आवरण उसे ढंकते रहते हैं ...
ये स्थिति क्षणिक होती है ... अंततः सच की नौक झूठ के आवरण को फाड़ के बाहर आ ही जाती है ..... हिम्मत का साथ जरूरी है बस ...
hriday ke dard ko shbd deti achhi rachna
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
सीमा सिंघल जी नमस्कार...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग 'सदा' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 23 जुलाई 'तुम्हारी हर ख्वाहिश को...' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
वाह सदा जी क्या बात है दिल छु गयी आप कि यह रचना। देर से आने के लिए माफी कल ही लौटी हूँ इंडिया से इसलिए इतने दिनों से पढ़ नहीं सकी किसी की भी कोई भी पोस्ट अब पढ़ रही हूँ सब के updates...
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