सोमवार, 26 दिसंबर 2011

धड़कन है तभी तो ...!!!












धुंआ अकेला कहां होता है
उसके लिए आग का होना जरूरी है
फिर वह धुंआ
मन्दिर में जलते अगर का हो
या किसी यज्ञशाला में
होते हवन का ...
उसकी पहचान तो हो ही गई ...
लेकिन जिन्‍दगी का
धुंए सा होना
मुमकिन नहीं है
वह तो एक लक्ष्‍य लेकर चलती है
जिन्‍दगी का लक्ष्‍य मृत्‍यु है
लेकिन इस लक्ष्‍य की प्राप्ति होने तक
वह रूह से रूह का नाता
बड़ी ही बेबाकी से निभाती है
जैसे दिये में तेल भी है बाती भी है
लेकिन अग्नि का स्‍पर्श नहीं हुआ तो
कैसे कहेंगे ज्‍योति है ?... दीपक है ?
जब अग्नि है तभी तो धुंआ है
जिन्‍दगी है तभी तो मृत्‍यु है
धड़कन है तभी तो
रूह का होना भी सत्‍य है ...
वर्ना शरीर क्‍या है ?...एक पुतला
ज्‍यों माटी का खिलोना ... !!!


33 टिप्‍पणियां:

  1. धुंआ है , रूह है .... फिर भी सन्नाटा तो है

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

    जैसे दिये में तेल भी है बाती भी है
    लेकिन अग्नि का स्‍पर्श नहीं हुआ तो
    कैसे कहेंगे ज्‍योति है ?... दीपक है ?
    वाह!!

    जवाब देंहटाएं
  3. जिन्‍दगी है तभी तो मृत्‍यु है
    धड़कन है तभी तो
    रूह का होना भी सत्‍य है ...

    rahasya hi to hai jindgi

    जवाब देंहटाएं
  4. धड़कन है तभी तो
    रूह का होना भी सत्‍य है ...
    वर्ना शरीर क्‍या है ?...एक पुतला
    ज्‍यों माटी का खिलोना ... !!!

    गहन दार्शनिक कविता।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. कल 27/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  6. जब अग्नि है तभी तो धुंआ है
    जिन्‍दगी है तभी तो मृत्‍यु है
    .......क्या बात है कितनी सकारात्मक बात सच है सदा जी से सहमत अच्छी व सच्ची रचना...!

    जवाब देंहटाएं
  7. वर्ना शरीर क्या है?..एक पुतला,माटी का खिलोना!!!!!
    सुंदर पन्तियाँ भावपूर्ण बहुत अच्छी रचना,.....

    मेरी नई रचना"काव्यान्जलि".."बेटी और पेड़".. में click करे,.....

    जवाब देंहटाएं
  8. लाजबाब है आपकी प्रस्तुति.
    पढकर मन प्रसन्न हो गया है.
    आभार.

    आने वाले नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  9. भावपूर्ण अभिव्यक्ति.वाह ,क्या बात है..

    जवाब देंहटाएं
  10. ज़िंदगी है तभी मृत्यु है ..आग है तो धुआं है ..सुन्दर प्रस्तुति ..

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट|

    जवाब देंहटाएं
  12. सुन्दर चिंतन... भावप्रवण अभिव्यक्ति...
    सादर बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  13. agni ka dhuna se sharir ka ruh se......... bhavpran srthak post .

    जवाब देंहटाएं
  14. sab ko sahaare kee
    zaroorat hotee hai
    ek ke binaa doosraa adhooraa

    जवाब देंहटाएं
  15. बेहद गहन अभिव्यक्ति सत्य को उदघाटित करती।

    जवाब देंहटाएं
  16. जीवन और मृत्यु का सटीक विशलेषण किया है आपने।
    आपकी कविता को समर्पित चंद लाइने:-
    जीवन क्षणिक,सतत है मृत्यु।
    जीवन झूठ,मगर सच मृत्यु।
    जीवन का है नहीं भरोसा,
    लेकिन सबकी निश्चित मृत्यु।
    जीवन में दुख ही दुख होते।
    दुख से मुक्ति,हो जब मृत्यु।

    जवाब देंहटाएं
  17. सुंदर रचना।
    गहरी अभिव्‍यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  18. जीवन दर्शन समेटे हुए है आपकी यह रचना...

    जवाब देंहटाएं
  19. गहन जीवन दर्शन की प्रभावी अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  20. और इस खिलौने का नाजो-नखरा संभाले नहीं संभलता है ..

    जवाब देंहटाएं
  21. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-741:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

    जवाब देंहटाएं
  22. धुंआ है तो आग होगी। आग है तो धुंआ होगा ही। जीवन की यही कहानी है।

    जवाब देंहटाएं
  23. सांसों का चलना ही धड़कन है धड़कन है तो जीवन है ...
    सत्य!

    जवाब देंहटाएं
  24. वह तो एक लक्ष्‍य लेकर चलती है
    जिन्‍दगी का लक्ष्‍य मृत्‍यु है...
    jivan ko parbhashit karti kavita ....bahut hi sundar
    '

    जवाब देंहटाएं
  25. आग,दिया,बाती,तेल जैसे..रुह,शरीर,ज़िंदगी,मौत सबका आपस में संबंध है और इस गहन संबंध को बहुत ही खूबसूरती से लिखा है आपने!!!

    जवाब देंहटाएं

ब्लॉग आर्काइव

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....