बुधवार, 16 सितंबर 2009

तेरे बिन धड़कन नहीं ...

मैं आज भी तुझे अपने आस-पास पाता हूं

तेरी यादों को नये-नये रंगों में सजाता हूं ।

हर तस्‍वीर पूरी हो जाती मगर फिर भी,

उनको तेरे बिन धड़कन नहीं दे पाता हूं ।

मैं जिस राह पर चला तू हमसफर रही मेरी,

तेरे जाने के बाद भी अपने साथ ही पाता हूं ।

हर कोई तेरे होने की निशानी मांगे मुझसे,

तू मेरे साथ है हर पल बस यही कह पाता हूं ।

हर आंख में अमृत की बूंदों सी उभरी थी तू,

म‍हफिल जब भी तेरे गीतों की सजाता हूं ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. मैं आज भी तुझे अपने आस-पास पाता हूं

    तेरी यादों को नये-नये रंगों में सजाता हूं ।

    हर तस्‍वीर पूरी हो जाती मगर फिर भी,

    उनको तेरे बिन धड़कन नहीं दे पाता हूं ।




    REALLY .....AWESOME

    KEEP IT UP

    THANK YOU VERY MAUCH....

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  2. हर कोई तेरे होने की निशानी मांगे मुझसे,

    तू मेरे साथ है हर पल बस यही कह पाता हूं ।...mujhe tippani samjh nahi aa rahi ki kya kahu..kayee baar kuchh aisa padne ko milta hai ki aap hairaan ho jate hai ki apke dil ki baat kisi or ne kaise likh di.....jitna bhi kahun usse kahi badkar aapki rachna...

    जवाब देंहटाएं
  3. तू मेरे साथ है हर पल बस यही कह पाता हूं । बहुत खूब ..सुन्दर लिखा है आपने

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  4. हर तस्‍वीर पूरी हो जाती मगर फिर भी,
    उनको तेरे बिन धड़कन नहीं दे पाता हूं.........

    SACH MEIN YE PREM KI UTKRISHT ABHIVYAKTI HAI ....LAJAWAAB LIKHA HAI ....

    जवाब देंहटाएं
  5. हर कोई तेरे होने की निशानी मांगे मुझसे,

    तू मेरे साथ है हर पल बस यही कह पाता हूं ।

    Behad Khubsura rachana..badhayi

    जवाब देंहटाएं
  6. हर तस्‍वीर पूरी हो जाती मगर फिर भी,

    उनको तेरे बिन धड़कन नहीं दे पाता हूं


    bahut hi achchi lines ..........

    poori kavita khoobsoorat hai......

    जवाब देंहटाएं
  7. हर कोई तेरे होने की निशानी मांगे मुझसे,
    तू मेरे साथ है हर पल बस यही कह पाता हूं ।



    bahut hi khoobsoorat kavita hai
    aapko badhayi

    जवाब देंहटाएं
  8. हर तस्‍वीर पूरी हो जाती मगर फिर भी,
    उनको तेरे बिन धड़कन नहीं दे पाता हूं...
    बहुत खूब क्या बात है बधाई

    जवाब देंहटाएं
  9. मैं आज भी तुझे अपने आस-पास पाता हूं
    तेरी यादों को नये-नये रंगों में सजाता हूं ।

    बेहतरीन ग़ज़ल
    हर शेर उम्दा




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  10. हर आंख में अमृत की बूंदों सी उभरी थी तू,
    म‍हफिल जब भी तेरे गीतों की सजाता हूं ।

    सुन्दर, बहुत सुन्दर पंक्तियाँ है.

    हार्दिक बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....