विधि का विधान विधना ने कब है टाला,
उसके लिखे से मिले हर मुंह को निवाला ।
कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर कहे,
तो सब पर होवे क्या जब मन हो मतवाला ।
सुख के सेवरे में दुख की काली रात छुपी,
घबराये न होनी से जो वही हिम्मतवाला ।
माला के फेर में मनवा मत पड़ना कहते,
जीते वही जिसने इसे सच्ची राह है डाला ।
माटी की देह माटी में मिल जाएगी किस,
अभिमान में तूने यह भरम मन में पाला ।
चूर होते हैं सपने टूटती आशाएं तब भी तेरे,
मन ने क्यों यह रोग इतने जतन से संभाला ।
आपने बेहद खूबसूरत रचना रच डाला है..
जवाब देंहटाएंबधाई!!!
माटी की देह माटी में मिल जाएगी किस,
जवाब देंहटाएंअभिमान में तूने यह भरम मन में पाला ।
कटु सत्य तो यही है हमे भरम मन मे रह्ता है और सत्य को स्वीकार नही करते --- अहम जो बाधक बन जाता है.
बहुत सुन्दर
jiwan darshan hai .....aapki rachana me bahut bahut badhayi
जवाब देंहटाएंमाटी की देह माटी में मिल जाएगी किस,
जवाब देंहटाएंअभिमान में तूने यह भरम मन में पाला .....
इस सत्य को अगर सब पहचान लें तो जीवन सुखी हो जाए .......... सुन्दर रचना है .....
shabd sanyojan bahut khoobsoorti se kiya hai,,,,,
जवाब देंहटाएंabhut hi achchi rachna
पूरी गीतबद्ध गीता हो गयी..बहुत प्रेरक!
जवाब देंहटाएंखुबसूरत, प्रेरक, सन्देश परक इस बढ़िया कविता पर आपको ढेरों बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंमन प्रसन्न हो गया नवरात्री के इस पर्व में आपकी यह कविता पढ़ कर...............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
nice
जवाब देंहटाएंsadaji...... maine ek sawaal poocha tha ki hum historu kyun padhte hain? uska jawab maine blog pe de diya hai......... plzzzzzzzzzzzzzzzzzz dekhiyega.............
जवाब देंहटाएंaur apna view dijiyega..... plz...