बुधवार, 12 अगस्त 2009

शीतल, धवल, ये निश्‍छल मन . . .


शीतल, धवल, ये निश्‍छल मन, करने चले नमन,

लहराने तिरंगा ले के ख्‍वाहिश सब ओर हो अमन ।

चाहत और वफादारी का पैगाम, देता सरहद पे,

बैठा सिपाही निभाने को वादा, देश में हो अमन ।

न ये तेरा है न मेरा है भारत हर हिन्‍दुस्‍तानी का,

रंग-रंग के खिलते फूल जहां ये है वो चमन ।

बना देश को गौरवाशाली लहरा कर शान दिखाये ये,

जीत के संग सम्‍मान दिलाये कहलाये ये मेरा वतन ।

छब्‍बीस जनवरी, पन्‍द्रह अगस्‍त को लाल किले पर,

लहराता जो तिरंगा तो झूमे सदा हर एक मन

सोमवार, 10 अगस्त 2009

रूठ जाता अपने आप से वो . . .

जब भी वो उदास हो जाता है,

तुझे अपने और पास पाता है ।

तनहाईयों में तेरा अक्‍स जब,

दरो-दिवार में नजर आता है ।

रूठ जाता अपने आप से वो,

क्‍यों नहीं तुझे भूल पाता है ।

तेरी हर बात को दिल से लगा,

मसरूफ खुद को ही पाता है ।

सफर कठिन है मान भी लेता,

पर किसी से कह नहीं पाता है ।

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

कितनी राखियों में से ...



यादें बचपन की

सताती हैं अब भी,

जाने कितनी राखियों में से,

खोज लाती थी राखी,

जो मन भायेगी

मेरे भाई को,

दिखलाती थी बड़े चाव से ।

अब भी ढूंढ कर लाती हूं राखी,

डालनी जो होती है लिफाफे में,

भेजनी होती है स्‍नेह के साथ,

कहीं रास्‍तें में,

उसकी सुन्‍दरता बिगड़ ना जाये,

उसके साथ बन्‍द करती हूं,

स्‍नेह, विश्‍वास, परम्‍परा,

रोकती हूं,

आंसुओं की बूंदो को,

लिफाफे पर लिखे,

पते पे गिरने से,

पहुंच जाये,

राखी के दिन तक भाई के पास ।

सोमवार, 3 अगस्त 2009

बच्‍चे ही तो मन के सच्‍चे हैं ...

बच्‍चे ही तो मन के सच्‍चे हैं

इनसे तो जो भी मिले

वो इनके लिये अच्‍छे हैं !


हर बात को शिरोधार्य करते,

सच्‍ची सीधी सादी बातों से,

सब का मन यह पुलकित करते

बुरा लगता जो किसी बात का

आंख में आंसू ले आते,

रोते-रोते उसको कहते जाते

तुम गंदे हो

मन में नहीं द्वेष ये रखते

बच्‍चे ही तो मन के सच्‍चे हैं !


ना लड़की से बुराई

ना लड़के से भलाई

बच्‍चों संग इ‍ठलाते इतराते,

पल में झगड़ा करते

पल में झगड़े फिर मिट जाते

बच्‍चे ही तो मन के सच्‍चे हैं !


लुका छिपी खेल,

बहुत है मन को भाता,

मिकी माउस मन को बड़ा लुभाता

बिटिया को गुडि़या है भाती,

बेटे को बैट बॉल है प्‍यारा,

मुझको तो इनका बपचन है भाता

बच्‍चे ही तो मन के सच्‍चे हैं

शनिवार, 1 अगस्त 2009

सितारों से नजदीकियां . . .

धरती को मां,

चांद को मामा

इन रिश्‍तों से

जिन्‍दा रखी

मुस्‍कराहट मैने ।


बदलियों में छुप जाता,

चांद जब भी

सितारों से नजदीकियां,

रखी मैने ।


रातें खामोशी की,

चादर ओढ़ लेती जब,

उजालों के लिए,

खिड़कियां खु‍ली

रखी मैने ।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....